दुनिया की सबसे क्रूरतम सजाएं

मध्यकाल में कैदियों को दी जाने वाली दुनिया की सबसे क्रूरतम सजाएं

यह वाकई काफी दुखद है कि मानवीय भूलों की सजा देने के लिए इतने क्रूर और दर्दनाक तरीके का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यहां दी जा रही जानकारी कल्पना नहीं यथार्थ है। आज के समय में भले ही कैदियों के मानव अधिकारों की चिंता की जाती हो और उन्हें ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हों, लेकिन आज से कुछ सौ साल पहले हालात यह नहीं थे। 
तस्वीरें- मध्यकाल में कैदियों को दी जाने वाली दुनिया की सबसे क्रूरतम सजाएं


सार्वजनिक मौत। यंत्रणा और दण्ड के इस सबसे चर्चित और सरल तरीके को आज भी दुनिया के कुछ कठोर देशों में अपनाया जाता है। इस तरीके में दण्डभोगी को सार्वजनिक जगह पर जंजीरों से बांधकर रखा जाता था। अगर कुछ दिनों तक सूरज की गर्मी, ठंड और भूख-प्यास को सहन करने के बाद भी कैदी जि़दा रहता तो उसे माफ कर दिया जाता और छोड़ दिया जाता। इस सजा को सार्वजनिक जगहों पर इसलिए दिया जाता था, ताकि सभी लोग न्याय का उल्लंघन करने से डरें।
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चूहों से यातना देना। चूहे भले ही आपको छोटे प्राणी नज़र आते हों, लेकिन अगर सैकड़ों चूहे आपके जिस्म पर एक-साथ काटें तो इस दर्द के अनुभव का अंदाजा आप लगा सकते हैं। मध्यकालीन दौर में कैदियों को एक पिंजरे में रखा जाता था, जिसमें सैकड़ो चूहे छोड़ दिए जाते थे। उसके बाद क्या होता होगा, इसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं।
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स्तन यातना। स्त्रियों को दी जाने वाली यह यातना काफी दर्दनाक होती थी। इस तरह की सजा में इसी उद्देश्य के तहत तैयार किए गए यंत्र से महिला कैदी के स्तन को काट डाला जाता था। धातु के नुकीले चंगुल को महिला के स्तन में फंसाकर इसे खींचा जाता था, जिससे स्तन शरीर से अलग हो जाते थे। यह काफी वीभत्स और दर्दनाक प्रक्रिया थी।
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पीड़ा का नाशपाती। पीड़ा का नाशपाती कहे जाने वाला यह यंत्र एक ख़तरनाक दण्ड का प्रतीक है। इस दण्ड प्रक्रिया में मेटल से बने नाशपाती के यंत्र को कैदी की गुदा में प्रवेश कराया जाता था और फिर उसके फलकों को खोल दिया था। धारदार और नुकीले सिरे होने के कारण कैदी को भीषण दर्द सहन करना पड़ता था। अधिकांश मौकों पर सजा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की कुछ ही देर में मौत हो जाती थी। यह तरीका समलैंगिकता के आरोप में सजा प्राप्त व्यक्ति को दी जाती थी।
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द रैक। इस प्रकार की यंत्रणा में दोषी को भयंकर शारीरिक पीड़ा के अलावा गहरा मानसिक आघात भी पहुंचता था। इस दण्ड में व्यक्ति को एक रैक पर लिटाकर उसके हाथ पैर दो अलग-अलग सिरों से बांध दिए जाते थे। फिर हाथों और पैरों से बंधी जंजीरों को इतना खींचा जाता था कि व्यक्ति के हाथ-पांव शरीर से अलग हो जाते थे। यह भी बेहद अमानवीय, वीभत्स और दर्दनाक दण्डप्रक्रिया थी।
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पैरों को आग में झुलसाना। यह कुछ ऐसा है, जिसमें आपकी आंखों के सामने आपके किसी अंग को पीड़ा पहुंचाई जा रही हो और आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते। 'फुट रोस्टिंग' दण्ड प्रक्रिया में कैदी को बांधकर केवल उसके पैरों को जलाया जाता था। इस प्रक्रिया में पैरों के नीचे जलाई जाने वाली आग की ज्वाला को बीच-बीच में बंद या कम कर दिया जाता था, जिससे व्यक्ति मूर्छित न हो और उसे दर्द का अधिक से अधिक अनुभव हो।
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