जब फागुन के रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।


जब फागुन के रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और डफ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
खम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हों, तब देख बहारें होली की।
गुलजार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुंह लाल, गुलाबी आंखें हों और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।

उसका नाम क्या था?

-'मम्मी, शिमला में जो लड़का मिला था, उसका नाम क्या था?' 
-'कौनसा लड़का बेटी?' 
-'वही, जिसके बारे में मैंने कहा था कि मैं उसके बिना जिंदा नहीं रह सकती।'

प्रशंसा

महिला- 'मेरे पति की खास विशेषता यह है कि वे खराब से खराब चीज की भी खूब बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा किया करते हैं। 
पड़ोसन- 'ठीक कह रही हो बहन, तभी वे तुम्हारी तारीफों के पुल बाँधा करते हैं।

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