भक्ति का सुख

भक्ति का सुख

संत तिरुवल्लुवर की सभा में आए एक श्रद्धालु ने उनसे पूछा-महाराज, मैं हर रोज प्रभु का भजन-कीर्तन करता हूं, ध्यान भी लगाता हूं पर पता नहीं क्यों कोई खास सुख नहीं मिला। सुनता हूं कि ईश्वरोपासना में अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है। पर मुझे क्यों नहीं हो रही? संत ने कहा- तुम आज और कल व्रत रखना और परसों यहीं आकर मेरे सामने व्रत खोलना। फिर इस बारे में विस्तार से चर्चा होगी।
उस व्यक्ति ने दो दिनों तक कुछ नहीं खाया। इस तरह व्रत रखने का यह उसका पहला अनुभव था। वह काफी परेशान हो गया। लेकिन उसने संत को वचन दिया था। इसलिए उसने अपना जी कड़ा कर रखा था। अगले दिन सुबह होते ही वह संत के पास भागता हुआ पहुंचा। लेकिन संत उस समय ध्यानमग्न थे। इसलिए वह कुछ नहीं कह पाया। वह वहीं बैठकर ध्यान टूटने की प्रतीक्षा करने लगा।
वह कुछ खाने के लिए तड़प रहा था। दोपहर में संत विश्राम के लिए कुटिया में चले गए। उस व्यक्ति का धैर्य जवाब दे रहा था। शाम होते ही जब संत बाहर निकले तो वह उनके चरणों में गिर पड़ा। फिर गिड़गिड़ाते हुए बोला- महाराज, अब मेरा व्रत तुड़वाइए नहीं तो मेरे प्राण निकल जाएंगे। संत ने तुरंत उसके लिए भोजन मंगवाया। जब वह खाने लगा तो संत ने पूछा- कहो, खाना कैसा लग रहा है? वह बोला- महाराज, ऐसा सुख तो आज तक नहीं मिला। तब संत ने समझाया-इसी भूख जैसी तड़प जिस दिन तुम ईश्वर के लिए पैदा कर लोगे तुम्हें भक्ति में ऐसा ही अद्भुत सुख मिलने लगेगा।

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