महेश नवमी 30 मई, 2012 (बुधवार) को : माहेश्वरी जाति का उत्पति दिवस.....
मयाध्यछेन्न प्रकृति: सूयते सचराचरम l हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ll (गीता अ.६/१०).
(मुझ अधिष्ठाता संकास से प्रकृति चर-अचर सहित सर्वजगत को रचती है l हे कौन्तेय ! इस हेतु यह संसार आवागमन रूप चक्र में घूमता है l
माहेश्वरी जाति का उत्पति-प्रकाश.....
सूर्यवंशी राजाओं में चौहान जाति के खड्गल सेन राजा खंडेला नगर में राज्य करते थे l वाह बड़े दयालु और न्यायप्रिय थे l उनके राज्य में प्रजा बड़े सुख से रहती थी l मृग और मृगराज एक घाट में पानी पीते थे l राजा को हमेशा एक ही चिन्ता रहती थी कि उनके एक भी पुत्र नहीं था l एक समय राजा ने बड़े आदर भाव से जगतगुरु ब्राह्मणों को अपने यहाँ बुलाकर बड़ा सत्कार किया l राजा की सेवा भक्ति से ब्राह्मण लोग बड़े संतुष्ट हुए l ब्राह्मणों ने राजा को वर मांगने को कहा l तब राजा ने कहा कि मेरे पुत्र नहीं है, कृपा करके मेरी इच्छा पूरी करायें l तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि यदि आप भगवान् शिव की उपासना करोगे तो आपको एक होनहार, पराक्रमी और चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त होगा, परन्तु उसे सोलह वर्ष तक उत्तर दिशा में मत जाने देना और जो उत्तर दिशा में 'सूर्य कुण्ड' है, उसमें स्नान मत करने देना l यदि वाह ब्राह्मणों से द्वेष नहीं करेगा तो चक्रवर्ती राज करेगा, अन्यथा इसी देह से पुनर्जन्म लेगा l इस प्रकार ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर राजा बड़ा प्रसन्न हुवा l राजा ने उनको वस्त्र, आभूषण, गाय आदि देकर प्रसन्नचित विदा किया l राजा के चौबीस रानियाँ थी l कुछ समय बाद उनके एक रानी चम्पावती के पुत्र जन्म हुवा l राजा ने बड़ा आनन्द मनाया और नवजात शिशु का नाम सुजान कुँवर रखा l सात वर्ष का होते ही राजकुमार घोड़े पर चढ़ना, शस्त्र चलाना सीख गया l जब वह बारह वर्ष का हुवा तो शत्रु लोग उससे डरने लगे l वाह चौदह विद्या पढ़कर होशियार हो गया l राजा उसके काम को देखकर संतुष्ट हुए l राजा ने इस बात का ध्यान रखा कि सुजान कुँवर उत्तर दिशा में न जाने पाये l
इसी समय में एक बौद्ध (जैन) साधू ने आकर राजपुत्र को जैन धर्म का उपदेश देकर शिवमत के विरुद्ध कर दिया l ब्राह्मणों के नाना प्रकार के दोष वर्णन किये और 14 वर्ष की उम्र में राजकुमार शिवमत के विरुद्ध होकर जैन धर्म मानने लगा l वाह देव पूजा नहीं होने देता था l उसने तीनों दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दच्छिन में घूम कर जैन मत का प्रचार किया l ब्राह्मणों को बड़ा दुःख दिया, उनके यज्ञोपवीत तोड़े गये l यज्ञ करना बन्द हो गया l राजा के भय से राजकुमार उत्तर दिशा में नहीं जाता था, परन्तु प्रारब्ध रेखा कौन मिटा सकता है l राजकुमार अपने 72 उमरावों को साथ लेकर उत्तर दिशा में सूर्य कुण्ड पर चला ही गया, जहाँ पर छ: ऋषेश्वर परासुर, गौतम आदि को यज्ञ करता देख बड़ा क्रोधित हुवा l राजकुमार की आज्ञा से उमरावों ने इन ऋषेश्वरों को बड़ा कष्ट दिया l यज्ञ की सब सामग्री नष्ट कर दी l इन कुकृत्यों पर ऋषेश्वरों ने शाप दिया कि तुम सब इसी समय जड़ बुद्धि पाषाणवत हो जावो l तब 72 उमराव और राजकुमार घोड़ों सहित जड़ बुद्धि पाषाणवत हो गये l राजकुमार के शाप ग्रसित होने की खबर चारों तरफ फ़ैल गई l
राजा और नगर निवासी यह खबर सुनकर बड़े दुखी हुए l महाराज खड्गल सेन ने इसी दुःख में प्राण त्याग दिये l इनके साथ इनकी सोलह रानियाँ सती हो गई l शेष आठं रानियाँ रावले में रही l अब राज्य की रछा करने वाला कोई नहीं रहा तो आस-पास के राजाओं ने हमले करके राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और अपना जीता हुवा भाग अपने-अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया l इधर राजकुमार की रानी चन्द्रावती 72 उमरावों की पत्नियों के सहित रुदन करती हुई उन्ही ब्राह्मणों की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को श्राप दिया था l ये उन ब्राह्मणों के चरणों में गिर पड़ी, रोई और नम्रता से प्रार्थना करने लगी l यह हाल देखकर ब्राह्मणों को उन पर दया आई l उन्होंने धर्म उपदेश दिया और कहा कि हम शाप दे सकते हैं लेकिन शाप मुक्त करना हमारा काम नहीं है l ब्राह्मणों ने उनको सलाह दी कि पास ही गुफा में जाकर भगवान् शिव कि आराधना करो l तुम्हारी आराधना से प्रसन्न होकर शिव जी और पार्वती जी ही इन लोगों का शाप से छुटकारा दिला सकेंगे l सब स्त्रियाँ गुफा में गई और वहीँ भक्तिपूर्वक शिव जी कि साधना करने लगी l
कुछ समय बाद भगवान् शिव और पार्वती घूमते-घूमते उधर ही आ निकले जहाँ राजकुमार अपने 72 उमरावों और घोड़े सहित पत्थर के होके पड़े थे l पार्वती जी ने भगवान् शिव जी से इन पत्थर की मूर्तियों के बारे में पूछा, तब शिव जी ने इन मूर्तियों का पूर्ण इतिहास पार्वती जी को समझाया l
इसी समय राजकुमार की रानी और 72 उमरावों की स्त्रियाँ आकर पार्वती जी के चरणों में गिर पड़ी और अपनी व्यथा प्रगट करने लगी l पार्वती जी ने उनके कष्ट से व्यथित होकर शिव जी से इनको शाप मुक्त करने की प्रार्थना की l इस पर शिव जी ने उनकी मोह निद्रा छुड़ाकर उनको चेतन किया l सब चेतन हो भगवान् शिव जी को प्रणाम करने लगे l राजकुमार जैसे ही अपने होश में आया, श्री पार्वती जी के स्वरुप से लुभायमान हो गया l यह देखकर पार्वती जी ने उसको शाप दिया कि हे कुकर्मी, तू भीख मांगकर खायेगा और तेरे वंश वाले हमेशा भीख मांगते रहेंगे l वे ही आगे चलकर जागा के नाम से विदित हुए l 72 उमराव बोले - हे भगवान् ! अब हमारे घर-बार तो नहीं रहे, हम क्या करें ? तब शिव जी ने कहा, तुमने पूर्वकाल में छत्रिय होकर स्वधर्म त्याग दिया, पर इसी कारण तुम छत्रिय न होकर अब वैश्य पद के अधिकारी होंगे l जाकर सूर्यकुंड में स्नान करो l सूर्यकुंड में स्नान करते ही तलवार से लेखनी, भालों की डांडी और ढालों से तराजू बन गई और वे वैश्य बन गए l भगवान् महेश के द्वारा प्रतिबोध देने के कारण ये 72 उमराव 'माहेश्वरी वैश्य' कहलाये l
जब यह खबर ब्राह्मणों को मिली कि शिव जी ने 72 उमरावों को शाप मुक्त किया है तो उन्होंने आकर शिव जी से प्रार्थना की, कि हे भगवान् ! आपने इनको शाप से तो मुक्त कर दिया लेकिन हमारा यज्ञ कैसे पूरा होगा ? तब शिव जी ने उन उमरावों को उपदेश दिया कि आज से यह ऋषि तुम्हारे गुरु हुए l इन्हें तुम अपना गुरु मानना l शिव जी ने ब्राह्मणों से कहा कि इनके पास देने को इस समय कुछ नहीं है परन्तु इनके घर में मंगल उत्सव होगा तब यथा शक्ति द्रव्य दिये जायेंगे, तुम इनको स्वधर्म में ही चलने कि शिच्छा दो l ऐसे वर देकर शिव जी पार्वती जी सहित वहां से अंतर्ध्यान हो गये l ब्राह्मणों ने इनको वैश्य धर्म धारण कराया l तब 72 उमराव इन छ: ऋषेश्वरों के चरणों में गिर पड़े l 72 उमरावों में से एक-एक ऋषि के बारह-बारह शिष्य हुए l वही अब यजमान कहे जाते हैं l कुछ काल के पीछे यह सब खंडेला छोड़कर डीडवाना आ बसे l वे 72 उमराव खांप के डीड माहेश्वरी कहलाये l यही दिन जेठ सुदी नवमी का दिन था, जब "माहेश्वरी वैश्य" कुल कि उत्त्पति हुई l दिन-प्रति-दिन यह वंश बढ़ने लगा l जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक-एक जाती बनी जो 72 खाप (गोत्र ) कहलाई l फिर एक-एक खाप में कई नख हो गए जो काम के कारण गाँव व बुजुर्गो के नाम बन गए है l
कहा जाता है की आज से लगभग 2500-2600 वर्ष पूर्व (इस्वी सन पूर्व 600 साल) 72 खापो के माहेश्वरी मारवाड़ (डीडवाना) राजस्थान में निवास करते थे l इन्ही 72 खापो में से 20 खाप के माहेश्वरी परिवार धकगड़ (गुजरात) में जाकर बस गए l वहां का राजा दयालु, प्रजापालक और व्यापारियों के प्रति सम्मान रखने वाला था l इन्ही गुणों से प्रभावित होकर और 12 खापो के माहेश्वरी भी वहा आकर बस गए l इस प्रकार 32 खापो के माहेश्वरी धकगड़ (गुजरात) में बस गए और व्यापर करने लगे तो वे धाकड़ माहेश्वरी के नाम से पहचाने जाने लगे l समय व परिस्थिति के वशीभूत होकर धकगड़ के कुछ माहेश्वरियो को धकगड़ भी छोडना पड़ा और मध्य भारत में आष्टा के पास अवन्तिपुर बडोदिया ग्राम में विक्रम संवत 1200 के आस-पास आज से लगभग 810 वर्ष पूर्व, आकर बस गए l वहाँ उनके द्वारा निर्मित भगवान महेशजी का मंदिर जिसका निर्माण संवत 1262 में हुआ जो आज भी विद्यमान है एवं अतीत की यादो को ताज़ा करता है l माहेश्वरियो के 72 गोत्र में से 15 खाप (गोत्र) के माहेश्वरी परिवार अलग होकर ग्राम काकरोली राजिस्थान में बस गए तो वे काकड़ माहेश्वरी के नामसे पहचाने जाने लगे (इन्होने घर त्याग करने के पहले संकल्प किया की वे हाथी दांत का चुडा व मोतीचूर की चुन्धरी काम में नहीं लावेंगे अतः आज भी काकड़ वाल्या माहेश्वरी मंगल कारज (विवाह) में इन चीजो का व्यवहार नहीं करते है) इसी कारण माहेश्वरीयों में परस्पर रोटी तथा बेटी व्यवहार है l पुनः माहेश्वरी मध्य भारत और भारत के कई स्थानों पर जाकर व्यवसाय करने लगे....l आज पूरी दुनिया में 'माहेश्वरी समाज' की एक अलग पहचान है l
माहेश्वरी समाज एक धर्मनिष्ठ समाज है l परन्तु कई पीढ़ियों से अन्यंत्र बस जाने के कारण कुछ बन्धुवों को, हो सकता है, अपने गोत्र व कुलदेवी (माता जी) के सम्बन्ध में उपयुक्त जानकारी न हो l अत: निम्न संछिप्त जानकारी प्रस्तुत है l खांपों का क्रम वही है जो स्व. श्री शिवकरण जी दरक ने दिया था l
माहेश्वरी खांपें - गौत्र - कुलदेवियाँ एवं मन्दिर :-
क्र.सं.--खांप---------गौत्र--- --------कुलदेवी--------------- मन्दिर.
01.----सोनी---------धुम्रांस-- -----सेवल्या माता---------बगोव, तह, मांडल, जि. भीलवाडा/ओसियां में भी.
02.----सोमानी------लियांस----- -बंधर माता------------उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव) जम्मू में भी.
03.----जाखेटिया----सीलांस----- -सिसनाय माता------मांडल गाँव, भीलवाडा.
04.----सोढानी-------सोढास----- --जीण माता-----------अरावली पर्वतमाला में, सीकर से 10 मील.
05.----हुरकुट--------कश्यप---- ---विषवंत माता--------फलौदी गाँव के पास में है.
06.----न्याती--------नाणसैण--- -चांदसेन माता--------वाचर्देचण, मानपुरा गाँव के पास.
07.----हेडा------------धनांस-- -----फलोदी माता---------रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी.
08.----करवा---------करवास----- -सच्चियाय माता-----जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
09.----कांकाणी------गौतम------ --आमल माता---------रीछेड गाँव, तह. कुम्भलगढ़, जि. राजसमन्द.
10.----मालू/ मालूदा-खलांस-------संचाय माता----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
11.----सारडा---------थोम्बरास- ---संचाय माता----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
12.----काह्ल्या-------कागायंस- ---लीकासन माता------ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील).
13.----गिलडा--------गौत्रम---- ---- डायल माता/---------डेरू गाँव, नागौर से 20 किमी.
------------------------------ -----------मात्री माता-----------हनुमानगढ़.
14.----जाजू----------वालांस--- -----फलोदी माता---------रामगंज स्टेशन के पास, मेड़ता रोड (नागौर).
15.----बाहेती--------गौकलांस-- ----सिंदल माता---------राम गाँव, जैसलमेर के पास.
---------(डांगरा, पंसारी) (भिन्न 2)
16.----बिदादा--------गजांस---- -----पाढाय माता---------डीडवाना.
17.----बिहाणी-------वालांस---- -----संचाय माता--------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
18.----बजाज--------भंसाली----- ----गाहिल माता-------आसोप, मेड़ता रोड से 40 किमी.
19.----कलंत्री--------कश्यप--- -------पाण्डुका माता------ग्रा. जायल, जि. नागौर.
------------------------------ ------------चावड़ा माता--------मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य.
------------------------------ ------------चावड़ा माता--------पुष्कर, अजमेर के बीच में भी, जोधपुर दुर्ग में.
20.----कासट---------अचलांस---- ---सच्चियाय माता---जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
21.----काचोला-------सीलांस---- -----पाढाय माता--------डीडवाना.
22.----कालाणी-------धौलांस---- -----चावडां माता--------मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य.
23.----झंवर----------घुम्रक्ष- ----------गाहील माता--------करमीसर गाँव, जि. बीकानेर.
-------------(भिन्न 2)मनमंस--------गायल माता--------आसोप, मेड़ता सिटी से 40 किमी. जोधपुर रोड.
24.----काबरा---------अचित्रांस -------सुसमाद माता------कृषिमंडी, कुचेरा (नागौर), मेड़ता रोड के पास.
25.----डाड़------------आमरांस- -------भद्रकाली माता-----हनुमानगढ़, (बीकानेर).
26.----डागा-----------राजहंस-- -------सच्चियाय माता----जोधपुर से 65 किमी ओसियां में
27.----गट्टानी-------ढालांस--- -------चावड़ा माता---------मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य.
-------------------------(भिन् न 2 )----माँसतीमाता चामुंडी-राबडियास, ब्यावर से 70 किमी.
28.----राठी-----------कपिलांस- ------संचाय माता----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
29.----बिड़ला--------वालांस--- -------संचाय माता----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
30.----दरक-----------हरिद्रास- --------नागणेची माता-------नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
31.----तोषनीवाल---कौशिक------- ---खुखर माता----------तिंवरी, जि.जोधपुर से 32 किमी.
32.----अजमेरा-------मानांस---- ------नौसार माता---------कनेर, जि. चित्तोड़गढ़, पुष्कर घाटी में.
33.----भण्डारी--------कोशिक--- -------नागणेची माता------नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
34.----छापरवाल-----कौशिक------ ---बंधर माता------------उदयपुर से 70 किमी. तानागाँव, (मोरगांव).
35.----भट्टड---------भट्टयास-- -----बिसल माता---------भादरिया, जैसलमेर (पोकरण से 50 किमी).
36.----भूतड़ा---------अचलांस-- ------खीवंज माता----------पोकरण/ कटौती तह. जायल, नागौर में भी.
37.----बंग------------सौढ़ास-- ---------खांडल माता----------मूंडवा, (नागौर).
38.----अटल----------गौतम------ -----सच्चियाय माता-----जोधपुर से 65 किमी ओसियां में
39.----इन्नाणी-------शैषांश--- ---------जैसल माता----------
40.----भराडिया------अचित्र---- --------दधीमचि माता-------किरणसरिया, मांगलोर जि. नागौर (रोलगाँव).
41.----भन्साली------भंसाली---- ------चावड़ा माता----------पाण्डुका जायल, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
42.----लड्ढा----------सीलांस-- --------बाकला माता---------उम्मेदनगर, तह. ओसियां, जि. जोधपुर.
------------------------------ ---------------बिसल/ बैकेश्वरी------नई बागड़, जि. सीकर में भी.
43.----मालपाणी-----भट्टयास---- ----बिसल माता---------भादरिया, जैसलमेर (पोकरण से 50 किमी).
44.----सिकची--------कश्यप----- ------संचाय माता----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
45.----लाहोटी---------कांगास-- --------गाहिल माता---------आसोप, मेड़ता रोड से 40 किमी.
46.----गदहया(गोयल)गौरांस------ ----बंधर माता------------उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव).
47.----गगराणी-------कश्यप----- ------पाढाय माता----------डीडवाना.
48.----खटोड----------मूंगास--- --------नौसाल्या माता-------दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा).
49.----लखोटिया-----फाफडांस---- ----संचाय माता-----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
50.----असावा---------बालांस--- -------आसावरी माता-------ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी.
51.----चेचाणी---------सीलांस-- --------दधवंत माता---------मांगलोर (किरणसरिया), रोलगाँव जि. नागौर.
52.----मानधना-------जेसलानी/ ------माणधनी माता-------कोट मोहल्ला, डीडवाना.
--------------------------पोला ंस भी.
53.----मूंधड़ा----------गोवांस -----------मूँदल माता-----------मुंदीयाड, जि. नागौर.
54.----चोखाड़ा--------चंद्रास- -----------जीवन माता-----------
55.----चांडक----------चंद्रास- -----------आसापुरा माता-------आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील.
------------------------------ ------------------------------ ----------पीपल गाँव में, नाडोल (पाली) में भी.
56.----बलदेवा--------बालांस--- --------हिंगलाज माता-------मूल मन्दिर बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में.
------------------------------ ------------------------------ ----------जैसलमेर, थानमात बाड़मेर, सीकर में भी.
57.----बाल्दी----------लौरस--- ---------गारस माता-----------
58.----बूब-------------मूसाइंस ---------भद्रकाली माता--------हनुमानगढ़.
59.----बांगड़----------चूडांस- -----------संचाय माता-----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
60.----मंडोवर---------बछांस--- --------धौलेसरी रुई माता----बहतु गाँव, जि. अलवर.
61.----तोतला---------कपिलांस-- ------खुखर माता------------तिंवरी, जि. जोधपुर से 32 किमी.
62.----आगीवाल------चंद्रास---- --------भैसादं माता-----------पाडा, डीडवाना.(नीमच में भी).
63.----आगसूंड--------कश्यप---- -------जाखण माता----------
64.----परतानी---------कश्यप--- -------संचाय माता-----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
65.----नावंधर---------बुग्दालि भ-------धरजल माता----------पोकरण, जि. जैसलमेर.
66.----नवाल-----------नानणांस- -------नवासण माता--------
67.----पलोड़-----------साडांस- ----------जुजेश्वरी माता---------नारनोल (हरियाणा), रेवाड़ी, महोसर में भी.
68.----तापडिया-------पीपलांस-- -------आसापुरा माता--------आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील.
------------------------------ ------------------------------ ------------पीपल गाँव में, नाडोल (पाली) में भी.
69.----मणियार--------कौशिक---- ------दायमा माता-----------किरणसरिया, जि. नागौर.
70.----धूत--------------फाफडां स--------लीकासन माता--------ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील).
71.----धूपड-------------सिरसेस ---------फलोदी माता----------रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी.
72.----मोदाणी----------साडांस- ----------चावड़ा माता-----------गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
वंशोत्पति के बाद कुछ खान्पे और बनी, जिसकी जानकारी नीचे दी जा रही है :-
73.----मंत्री---------------कं वलांस---------संचाय माता-----------सांवर गाँव, जि. अजमेर, चित्तौडगढ़ में भी.
74.----देवपुरा------------पारस -------------पाढाय माता-----------डीडवाना.
75.----पोरवाल/ परवाल-नानांस-----------भद्रकाली माता/
------------------------------ ------------------मात्री माता-------------हनुमानगढ़.
------------------------------ -------------------डायल माता----------डेरू गाँव, नागौर से 20 किमी.
76.----नौलखा-----------कश्यप/ गावंस----पाढाय माता----------डीडवाना, जायल जि. नागौर में भी.
77.----टावरी-------------माकरण -----------चावड़ा माता----------गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
78.----दरगड़-------------गोवंस -------------नागणेची माता-------नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
79.----कालिया-----------झुमरंस -----------आसावरी माता-------ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी.
80.----खावड-------------मूंगास -------------नौसाल्या माता-------दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा).
------------------------------ ------------------------------ ---------------रामगंज, मेड़ता रोड में भी.
81.----लोहिया----------- -----------सामल माता----------पेटारण पट्टी, वाया ब्यावर.
82.----रांदड---------------कश् यप------------संचाय माता-----------जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
*निम्न खान्पों/नखों की कुलदेवी भी संचाय माता ही है :- (जोधपुर से 65 किमी ओसियां में).
दम्माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी, राईवाल, कोठारी, मालाणी, मूथा, मोदी, मोह्त्ता, फाफट आदि l इसके अलावा भी बहुत सी खान्पे है, जो यहाँ नहीं आ सकी है, जो 'राठी' खांप के गोत्र के अंतर्गत आती है l कुछेक अन्य भी हो सकती है l
*भैयाओं की माता - लटियार माता, फलौदी.
*तेलाओं की माता - चावड़ा माता, जायल (नागौर).
**गोत्र केवल ब्रह्मण वर्ण में ही होते थे l अन्य वर्णों ने अपने पुरोहितों के गोत्रों को ही स्वीकार कर लिया है l
छत्रिय, वैश्य शुद्राणां गोत्रं च प्रवरादिकम ! तथान्यवर्ण सम्डराणा येषां विप्राश्च याचको ll
पुरोहित - माहेश्वरियों के आँठ पुरोहित हैं l
1. पारीक, 2. दाधीच, 3. गुर्जर गौड़, 4. खंडेलवाल, 5. सिखवाल, 6. सारस्वत, 7. पालीवाल, 8. पुष्करणा.
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मयाध्यछेन्न प्रकृति: सूयते सचराचरम l हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ll (गीता अ.६/१०).
(मुझ अधिष्ठाता संकास से प्रकृति चर-अचर सहित सर्वजगत को रचती है l हे कौन्तेय ! इस हेतु यह संसार आवागमन रूप चक्र में घूमता है l
माहेश्वरी जाति का उत्पति-प्रकाश.....
सूर्यवंशी राजाओं में चौहान जाति के खड्गल सेन राजा खंडेला नगर में राज्य करते थे l वाह बड़े दयालु और न्यायप्रिय थे l उनके राज्य में प्रजा बड़े सुख से रहती थी l मृग और मृगराज एक घाट में पानी पीते थे l राजा को हमेशा एक ही चिन्ता रहती थी कि उनके एक भी पुत्र नहीं था l एक समय राजा ने बड़े आदर भाव से जगतगुरु ब्राह्मणों को अपने यहाँ बुलाकर बड़ा सत्कार किया l राजा की सेवा भक्ति से ब्राह्मण लोग बड़े संतुष्ट हुए l ब्राह्मणों ने राजा को वर मांगने को कहा l तब राजा ने कहा कि मेरे पुत्र नहीं है, कृपा करके मेरी इच्छा पूरी करायें l तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि यदि आप भगवान् शिव की उपासना करोगे तो आपको एक होनहार, पराक्रमी और चक्रवर्ती पुत्र प्राप्त होगा, परन्तु उसे सोलह वर्ष तक उत्तर दिशा में मत जाने देना और जो उत्तर दिशा में 'सूर्य कुण्ड' है, उसमें स्नान मत करने देना l यदि वाह ब्राह्मणों से द्वेष नहीं करेगा तो चक्रवर्ती राज करेगा, अन्यथा इसी देह से पुनर्जन्म लेगा l इस प्रकार ब्राह्मणों का आशीर्वाद प्राप्त कर राजा बड़ा प्रसन्न हुवा l राजा ने उनको वस्त्र, आभूषण, गाय आदि देकर प्रसन्नचित विदा किया l राजा के चौबीस रानियाँ थी l कुछ समय बाद उनके एक रानी चम्पावती के पुत्र जन्म हुवा l राजा ने बड़ा आनन्द मनाया और नवजात शिशु का नाम सुजान कुँवर रखा l सात वर्ष का होते ही राजकुमार घोड़े पर चढ़ना, शस्त्र चलाना सीख गया l जब वह बारह वर्ष का हुवा तो शत्रु लोग उससे डरने लगे l वाह चौदह विद्या पढ़कर होशियार हो गया l राजा उसके काम को देखकर संतुष्ट हुए l राजा ने इस बात का ध्यान रखा कि सुजान कुँवर उत्तर दिशा में न जाने पाये l
इसी समय में एक बौद्ध (जैन) साधू ने आकर राजपुत्र को जैन धर्म का उपदेश देकर शिवमत के विरुद्ध कर दिया l ब्राह्मणों के नाना प्रकार के दोष वर्णन किये और 14 वर्ष की उम्र में राजकुमार शिवमत के विरुद्ध होकर जैन धर्म मानने लगा l वाह देव पूजा नहीं होने देता था l उसने तीनों दिशाओं पूर्व, पश्चिम और दच्छिन में घूम कर जैन मत का प्रचार किया l ब्राह्मणों को बड़ा दुःख दिया, उनके यज्ञोपवीत तोड़े गये l यज्ञ करना बन्द हो गया l राजा के भय से राजकुमार उत्तर दिशा में नहीं जाता था, परन्तु प्रारब्ध रेखा कौन मिटा सकता है l राजकुमार अपने 72 उमरावों को साथ लेकर उत्तर दिशा में सूर्य कुण्ड पर चला ही गया, जहाँ पर छ: ऋषेश्वर परासुर, गौतम आदि को यज्ञ करता देख बड़ा क्रोधित हुवा l राजकुमार की आज्ञा से उमरावों ने इन ऋषेश्वरों को बड़ा कष्ट दिया l यज्ञ की सब सामग्री नष्ट कर दी l इन कुकृत्यों पर ऋषेश्वरों ने शाप दिया कि तुम सब इसी समय जड़ बुद्धि पाषाणवत हो जावो l तब 72 उमराव और राजकुमार घोड़ों सहित जड़ बुद्धि पाषाणवत हो गये l राजकुमार के शाप ग्रसित होने की खबर चारों तरफ फ़ैल गई l
राजा और नगर निवासी यह खबर सुनकर बड़े दुखी हुए l महाराज खड्गल सेन ने इसी दुःख में प्राण त्याग दिये l इनके साथ इनकी सोलह रानियाँ सती हो गई l शेष आठं रानियाँ रावले में रही l अब राज्य की रछा करने वाला कोई नहीं रहा तो आस-पास के राजाओं ने हमले करके राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और अपना जीता हुवा भाग अपने-अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया l इधर राजकुमार की रानी चन्द्रावती 72 उमरावों की पत्नियों के सहित रुदन करती हुई उन्ही ब्राह्मणों की शरण में गई जिन्होंने इनके पतियों को श्राप दिया था l ये उन ब्राह्मणों के चरणों में गिर पड़ी, रोई और नम्रता से प्रार्थना करने लगी l यह हाल देखकर ब्राह्मणों को उन पर दया आई l उन्होंने धर्म उपदेश दिया और कहा कि हम शाप दे सकते हैं लेकिन शाप मुक्त करना हमारा काम नहीं है l ब्राह्मणों ने उनको सलाह दी कि पास ही गुफा में जाकर भगवान् शिव कि आराधना करो l तुम्हारी आराधना से प्रसन्न होकर शिव जी और पार्वती जी ही इन लोगों का शाप से छुटकारा दिला सकेंगे l सब स्त्रियाँ गुफा में गई और वहीँ भक्तिपूर्वक शिव जी कि साधना करने लगी l
कुछ समय बाद भगवान् शिव और पार्वती घूमते-घूमते उधर ही आ निकले जहाँ राजकुमार अपने 72 उमरावों और घोड़े सहित पत्थर के होके पड़े थे l पार्वती जी ने भगवान् शिव जी से इन पत्थर की मूर्तियों के बारे में पूछा, तब शिव जी ने इन मूर्तियों का पूर्ण इतिहास पार्वती जी को समझाया l
इसी समय राजकुमार की रानी और 72 उमरावों की स्त्रियाँ आकर पार्वती जी के चरणों में गिर पड़ी और अपनी व्यथा प्रगट करने लगी l पार्वती जी ने उनके कष्ट से व्यथित होकर शिव जी से इनको शाप मुक्त करने की प्रार्थना की l इस पर शिव जी ने उनकी मोह निद्रा छुड़ाकर उनको चेतन किया l सब चेतन हो भगवान् शिव जी को प्रणाम करने लगे l राजकुमार जैसे ही अपने होश में आया, श्री पार्वती जी के स्वरुप से लुभायमान हो गया l यह देखकर पार्वती जी ने उसको शाप दिया कि हे कुकर्मी, तू भीख मांगकर खायेगा और तेरे वंश वाले हमेशा भीख मांगते रहेंगे l वे ही आगे चलकर जागा के नाम से विदित हुए l 72 उमराव बोले - हे भगवान् ! अब हमारे घर-बार तो नहीं रहे, हम क्या करें ? तब शिव जी ने कहा, तुमने पूर्वकाल में छत्रिय होकर स्वधर्म त्याग दिया, पर इसी कारण तुम छत्रिय न होकर अब वैश्य पद के अधिकारी होंगे l जाकर सूर्यकुंड में स्नान करो l सूर्यकुंड में स्नान करते ही तलवार से लेखनी, भालों की डांडी और ढालों से तराजू बन गई और वे वैश्य बन गए l भगवान् महेश के द्वारा प्रतिबोध देने के कारण ये 72 उमराव 'माहेश्वरी वैश्य' कहलाये l
जब यह खबर ब्राह्मणों को मिली कि शिव जी ने 72 उमरावों को शाप मुक्त किया है तो उन्होंने आकर शिव जी से प्रार्थना की, कि हे भगवान् ! आपने इनको शाप से तो मुक्त कर दिया लेकिन हमारा यज्ञ कैसे पूरा होगा ? तब शिव जी ने उन उमरावों को उपदेश दिया कि आज से यह ऋषि तुम्हारे गुरु हुए l इन्हें तुम अपना गुरु मानना l शिव जी ने ब्राह्मणों से कहा कि इनके पास देने को इस समय कुछ नहीं है परन्तु इनके घर में मंगल उत्सव होगा तब यथा शक्ति द्रव्य दिये जायेंगे, तुम इनको स्वधर्म में ही चलने कि शिच्छा दो l ऐसे वर देकर शिव जी पार्वती जी सहित वहां से अंतर्ध्यान हो गये l ब्राह्मणों ने इनको वैश्य धर्म धारण कराया l तब 72 उमराव इन छ: ऋषेश्वरों के चरणों में गिर पड़े l 72 उमरावों में से एक-एक ऋषि के बारह-बारह शिष्य हुए l वही अब यजमान कहे जाते हैं l कुछ काल के पीछे यह सब खंडेला छोड़कर डीडवाना आ बसे l वे 72 उमराव खांप के डीड माहेश्वरी कहलाये l यही दिन जेठ सुदी नवमी का दिन था, जब "माहेश्वरी वैश्य" कुल कि उत्त्पति हुई l दिन-प्रति-दिन यह वंश बढ़ने लगा l जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक-एक जाती बनी जो 72 खाप (गोत्र ) कहलाई l फिर एक-एक खाप में कई नख हो गए जो काम के कारण गाँव व बुजुर्गो के नाम बन गए है l
कहा जाता है की आज से लगभग 2500-2600 वर्ष पूर्व (इस्वी सन पूर्व 600 साल) 72 खापो के माहेश्वरी मारवाड़ (डीडवाना) राजस्थान में निवास करते थे l इन्ही 72 खापो में से 20 खाप के माहेश्वरी परिवार धकगड़ (गुजरात) में जाकर बस गए l वहां का राजा दयालु, प्रजापालक और व्यापारियों के प्रति सम्मान रखने वाला था l इन्ही गुणों से प्रभावित होकर और 12 खापो के माहेश्वरी भी वहा आकर बस गए l इस प्रकार 32 खापो के माहेश्वरी धकगड़ (गुजरात) में बस गए और व्यापर करने लगे तो वे धाकड़ माहेश्वरी के नाम से पहचाने जाने लगे l समय व परिस्थिति के वशीभूत होकर धकगड़ के कुछ माहेश्वरियो को धकगड़ भी छोडना पड़ा और मध्य भारत में आष्टा के पास अवन्तिपुर बडोदिया ग्राम में विक्रम संवत 1200 के आस-पास आज से लगभग 810 वर्ष पूर्व, आकर बस गए l वहाँ उनके द्वारा निर्मित भगवान महेशजी का मंदिर जिसका निर्माण संवत 1262 में हुआ जो आज भी विद्यमान है एवं अतीत की यादो को ताज़ा करता है l माहेश्वरियो के 72 गोत्र में से 15 खाप (गोत्र) के माहेश्वरी परिवार अलग होकर ग्राम काकरोली राजिस्थान में बस गए तो वे काकड़ माहेश्वरी के नामसे पहचाने जाने लगे (इन्होने घर त्याग करने के पहले संकल्प किया की वे हाथी दांत का चुडा व मोतीचूर की चुन्धरी काम में नहीं लावेंगे अतः आज भी काकड़ वाल्या माहेश्वरी मंगल कारज (विवाह) में इन चीजो का व्यवहार नहीं करते है) इसी कारण माहेश्वरीयों में परस्पर रोटी तथा बेटी व्यवहार है l पुनः माहेश्वरी मध्य भारत और भारत के कई स्थानों पर जाकर व्यवसाय करने लगे....l आज पूरी दुनिया में 'माहेश्वरी समाज' की एक अलग पहचान है l
माहेश्वरी समाज एक धर्मनिष्ठ समाज है l परन्तु कई पीढ़ियों से अन्यंत्र बस जाने के कारण कुछ बन्धुवों को, हो सकता है, अपने गोत्र व कुलदेवी (माता जी) के सम्बन्ध में उपयुक्त जानकारी न हो l अत: निम्न संछिप्त जानकारी प्रस्तुत है l खांपों का क्रम वही है जो स्व. श्री शिवकरण जी दरक ने दिया था l
माहेश्वरी खांपें - गौत्र - कुलदेवियाँ एवं मन्दिर :-
क्र.सं.--खांप---------गौत्र---
01.----सोनी---------धुम्रांस--
02.----सोमानी------लियांस-----
03.----जाखेटिया----सीलांस-----
04.----सोढानी-------सोढास-----
05.----हुरकुट--------कश्यप----
06.----न्याती--------नाणसैण---
07.----हेडा------------धनांस--
08.----करवा---------करवास-----
09.----कांकाणी------गौतम------
10.----मालू/
11.----सारडा---------थोम्बरास-
12.----काह्ल्या-------कागायंस-
13.----गिलडा--------गौत्रम----
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14.----जाजू----------वालांस---
15.----बाहेती--------गौकलांस--
---------(डांगरा, पंसारी) (भिन्न 2)
16.----बिदादा--------गजांस----
17.----बिहाणी-------वालांस----
18.----बजाज--------भंसाली-----
19.----कलंत्री--------कश्यप---
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20.----कासट---------अचलांस----
21.----काचोला-------सीलांस----
22.----कालाणी-------धौलांस----
23.----झंवर----------घुम्रक्ष-
-------------(भिन्न 2)मनमंस--------गायल माता--------आसोप, मेड़ता सिटी से 40 किमी. जोधपुर रोड.
24.----काबरा---------अचित्रांस
25.----डाड़------------आमरांस-
26.----डागा-----------राजहंस--
27.----गट्टानी-------ढालांस---
-------------------------(भिन्
28.----राठी-----------कपिलांस-
29.----बिड़ला--------वालांस---
30.----दरक-----------हरिद्रास-
31.----तोषनीवाल---कौशिक-------
32.----अजमेरा-------मानांस----
33.----भण्डारी--------कोशिक---
34.----छापरवाल-----कौशिक------
35.----भट्टड---------भट्टयास--
36.----भूतड़ा---------अचलांस--
37.----बंग------------सौढ़ास--
38.----अटल----------गौतम------
39.----इन्नाणी-------शैषांश---
40.----भराडिया------अचित्र----
41.----भन्साली------भंसाली----
42.----लड्ढा----------सीलांस--
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43.----मालपाणी-----भट्टयास----
44.----सिकची--------कश्यप-----
45.----लाहोटी---------कांगास--
46.----गदहया(गोयल)गौरांस------
47.----गगराणी-------कश्यप-----
48.----खटोड----------मूंगास---
49.----लखोटिया-----फाफडांस----
50.----असावा---------बालांस---
51.----चेचाणी---------सीलांस--
52.----मानधना-------जेसलानी/
--------------------------पोला
53.----मूंधड़ा----------गोवांस
54.----चोखाड़ा--------चंद्रास-
55.----चांडक----------चंद्रास-
------------------------------
56.----बलदेवा--------बालांस---
------------------------------
57.----बाल्दी----------लौरस---
58.----बूब-------------मूसाइंस
59.----बांगड़----------चूडांस-
60.----मंडोवर---------बछांस---
61.----तोतला---------कपिलांस--
62.----आगीवाल------चंद्रास----
63.----आगसूंड--------कश्यप----
64.----परतानी---------कश्यप---
65.----नावंधर---------बुग्दालि
66.----नवाल-----------नानणांस-
67.----पलोड़-----------साडांस-
68.----तापडिया-------पीपलांस--
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69.----मणियार--------कौशिक----
70.----धूत--------------फाफडां
71.----धूपड-------------सिरसेस
72.----मोदाणी----------साडांस-
वंशोत्पति के बाद कुछ खान्पे और बनी, जिसकी जानकारी नीचे दी जा रही है :-
73.----मंत्री---------------कं
74.----देवपुरा------------पारस
75.----पोरवाल/
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76.----नौलखा-----------कश्यप/
77.----टावरी-------------माकरण
78.----दरगड़-------------गोवंस
79.----कालिया-----------झुमरंस
80.----खावड-------------मूंगास
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81.----लोहिया----------- -----------सामल माता----------पेटारण पट्टी, वाया ब्यावर.
82.----रांदड---------------कश्
*निम्न खान्पों/नखों की कुलदेवी भी संचाय माता ही है :- (जोधपुर से 65 किमी ओसियां में).
दम्माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी, राईवाल, कोठारी, मालाणी, मूथा, मोदी, मोह्त्ता, फाफट आदि l इसके अलावा भी बहुत सी खान्पे है, जो यहाँ नहीं आ सकी है, जो 'राठी' खांप के गोत्र के अंतर्गत आती है l कुछेक अन्य भी हो सकती है l
*भैयाओं की माता - लटियार माता, फलौदी.
*तेलाओं की माता - चावड़ा माता, जायल (नागौर).
**गोत्र केवल ब्रह्मण वर्ण में ही होते थे l अन्य वर्णों ने अपने पुरोहितों के गोत्रों को ही स्वीकार कर लिया है l
छत्रिय, वैश्य शुद्राणां गोत्रं च प्रवरादिकम ! तथान्यवर्ण सम्डराणा येषां विप्राश्च याचको ll
पुरोहित - माहेश्वरियों के आँठ पुरोहित हैं l
1. पारीक, 2. दाधीच, 3. गुर्जर गौड़, 4. खंडेलवाल, 5. सिखवाल, 6. सारस्वत, 7. पालीवाल, 8. पुष्करणा.
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