होलिकोत्सव


होलिकोत्सव के पीछे प्राकृतिक ऋतु-परिवर्तन का रहस्य छुपा है। ऋतु परिवर्तन के समय जो रोग होते हैं उनको मिटाने का भी इस उत्सव के पीछे बड़ा भारी रहस्य है तथा विघ्न-बाधाओं को मिटाने की घटनाएँ भी छुपी हैं।
रघु राजा के राज्य में ढोण्ढा नाम की राक्षसी बच्चों को डराया करती थी। राजा का कर्तव्य है कि प्रजा की तकलीफ को अपनी तकलीफ मानकर उसे दूर करने का उपाय करे। कई उपाय खोजने के बाद भी जब कोई रास्ता नहीं मिला तो रघु राजा ने अपने पुरोहित से उपाय पूछा। पुरोहित ने बताया कि इसे भगवान शिव का वरदान है कि उसे देव, मानव आदि नहीं मार सकते, न वह अस्त्र-शस्त्र या जाड़े, गर्मी, वर्षा से मर सकती है किंतु वह खेलते हुए बच्चों से भय खा सकती है। इसलिए फाल्गुन की पूर्णिमा को लोग हँसे, अट्टहास करें, अग्नि जलाएँ और आनन्द मनायें। राजा ने ऐसा किया तो राक्षसी मर गयी और उस दिन को ʹहोलिकाʹ कहा गया।
होलिकोत्सव बहुत कुछ हमारे हित का दे देता है। गर्मी के दिनों में सूर्य की किरणें हमारी त्वचा पर सीधी पड़ती हैं, जिससे शरीर में गर्मी बढ़ती है। हो सकता है कि शरीर में गर्मी बढ़ने से गुस्सा बढ़ जाय, स्वभाव में खिन्नता आ जाय। इसीलिए होली के दिन पलाश एवं अन्य प्राकृतिक पुष्पों का रंग एकत्रित करके एक-दूसरे पर डाला जाता है ताकि हमारे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ जाय और सूर्य की तीक्ष्ण किरणों का उस पर विकृत असर न पड़े। सूर्य की सीधी तीखी किरणें पड़ती हैं तो सर्दियों का जमा कफ पिघलने लगता है। कफ जठर में आता है तो जठर मंद हो जाता है। पलाश के फूलों के रंग से होली खेली जाती है। पलाश के फूलों से, पत्तों से, जड़ से तथा पलाश के पत्तों से बनी पत्तव व दोने में भोजन करने से बहुत सारे फायदे होते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में अब भी पलाश के पत्तों से बनी पत्तल व दोने में भोजन करने की प्रथा है। राजस्थान में पलाश को खाखरा भी बोलते हैं। अभी तो कागज की पत्तलें और दोने आ गये। उनसे वह लाभ नहीं होता जो खाखरे के दोने और पत्तलों से होता है।
पलाश के फूलों से होली खेलने से शरीर के रोमकूपों पर ऐसा असर पड़ता है कि वर्ष भर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति मजबूत बनी रहती है। यकृत (लीवर) को मजबूत करता है खाखरा। यह यकृत की बीमारी जिससे पीलिया होता है उससे भी रक्षा करता है। जो पलाश के फूलों से होली खेलेंगे उन्हें पीलिया भी जल्दी नहीं होगा, मंदाग्नि भी नहीं होगी।
होली की रात्रि चार पुण्यप्रद महारात्रियों में आती है। होली की रात्रि का जागरण और जप बहुत ही फलदायी होता है।
ऋतु-परिवर्तन के 10-20 दिनों में नीम के 15 से 20 कोमल पत्तों के साथ 2 काली मिर्च चबाकर खाने से वर्ष भर आरोग्य दृढ़ रहता है। बिना नमक का भोजन 15 दिन लेने वाले की आयु और प्रसन्नता में बढ़ोतरी होती है।
होली के बाद खजूर खाना मना है।
बाजारू केमिकलों से युक्त रंगों के बदले पलाश के फूलों के रंग से अथवा अन्य प्राकृतिक रंगों से होली खेलनी चाहिए। इससे सप्तरंगों व सप्तधातुओं का संतुलन बना रहता है।

                          विकृति नहीं प्रकृति का त्यौहार

भारतीय संस्कृति वर्ष भर के त्यौहारों एवं पर्वों की अनवरत श्रृंखला की वैज्ञानिक व्यवस्था करती है। वसंत ऋतु में आनेवाला होली का त्यौहार कूदने-फाँदने एवं प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का उत्सव है। इसका स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है। इन दिनों पलाश के फूलों के रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की शक्ति बढ़ती है तथा मानसिक संतुलन बना रहता है, साथ ही मौसम-परिवर्तन से प्रकुपित होने वाले रोगों से रक्षा होती है। परंतु वर्तमान में रासायनिक रंगों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, जिसकी पुष्टि चिकित्सकों ने भी की है।
'आजकल गुलाल में प्रयोग किये जाने वाले केमिकल, डिटर्जेंट और रेत सिर्फ चमड़ी के लिए ही नहीं बल्कि आँखों, साँस की नली और बालों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकते हैं।'  -डा. अनिल गोयल (सीनियर डर्मेटोलिजस्ट)
'कृत्रिम रंगों में मिले मेलासाइट और माइका जैसे रसायन (केमिकल) साँस की नली, हृदय और गुर्दे (किडनी) जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।' -डा. आर.एन. कालरा (अध्यक्ष, इंडियन हार्ट फाउंडेशन)
रंगों में प्रयुक्त रसायनों का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
बाजारू रासायनिक रंग मुख्यतः इंजन आयल के साथ आक्सीडाइज्ड धातु या औद्योगिक वर्णकों (डाई) के साथ मिला कर तैयार किये जाते हैं। जैसेः-
पेस्ट
रसायन
दुष्प्रभाव
काला रंग
लेड आक्साइड
गुर्दे की बीमारी
हरा रंग
कॉपर सल्फेट
आँखों में जलन, सूजन,
अस्थायी अंधत्व
सिल्वर रंग
एल्युमिनियम ब्रोमाइड
कैंसर
नीला रंग
प्रूशियन ब्लू
'कान्टेक्ट डर्मेटाइटिस'
नामक भयंकर त्वचारोग
लाल रंग
मरक्यूरी सल्फाइट
त्वचा का कैंसर
 अतः होली खेलें परंतु रासायनिक रंगों से नहीं प्राकृतिक रंगों से, जिन्हें आप घर पर आसानी से बना सकते हैं।
प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ
केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधिय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।
सूखा हरा रंगः मेंहदी या हिना का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।
सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।
गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी भिगोकर रखें, सुबह उबालें।
लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।

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