चंडीगढ़। चिनाब नदी की दास्तां सुनकर आपको यह एहसास हो जाएगा की महाभारत के भीम का गुस्सा कितना भयानक था। कहते हैं चिनाब नदी का बहाव देश के दूसरे किसी भी नदी से कहीं ज्यादा तेज है। चिनाब नदी की पहचान ही तेज बहाव वाली नदी के तौर पर की जाती है। जम्मू के अखनूर में चिनाब नदी के किनारे एक किला है। वैसे तो किला अब अपनी पहचान खो रहा है। लेकिन किले के अंदर एक दस्तावेज है।
उस दस्तावेज में एक कहानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ऐसी कहानी जो पांच हजार साल पहले गुजरे एक महापुरुष को फिर से जिंदा करती है। नदी के आसपास एक गुफा है। गुफा में एक छोटे बच्चे के पैर के निशान हैं। एक गाय के पैरों के निशान हैं। उस पैर के निशान के रहस्य भी पांडवों के अज्ञातवास से शुरु होती है।
दर-ब-दर भटकने के बाद पांडव अज्ञातवास के लिए गुफा में आए थे। लेकिन जब पांडवों को पता चला कि अखनूर का यह इलाका राजा विराट के हैं। पांचों पांडवों ने लगा कि अब छुपने का कोई और जरिया नहीं बचा है तो पांचों वेष बदलकर राजा के यहां नौकरी मांगने गए। राजा विराट की विराट नजर उन्हें पहचान तो लेती हैं लेकिन राजा कुछ बोले नहीं। राजा विराट ने पांचों भाइयों को नौकरी पर रख लिए। महाबली भीम राजा के यहां रसोईया नियुक्त किए गए। दिन भर काम करने के बाद शाम को भीम एक ऐसी जगह पर तपस्या करने जाते थे जिसके बारे में राज्य के किसी भी व्यक्ति को कोई पता नहीं होता था। खुद राजा भी नहीं जानते थे कि भीम कहां जाते हैं। पांडवों के लिए अज्ञातवास का समय काटना था।
नौकरी के दौरान तो कोई दिक्कत नहीं आ रही थी। लेकिन तपस्या के समय काफी कठिनाई होती थी। भीम उस कठिनाई को दूर कर सकते थे। अगर भीम की ताकत का राज खुल गया तो पूरी कहानी तब्दील हो जाएगी। अज्ञातवास की समय सीमा फिर बढ़ जाएगी। समय गुजरता गया। भीम के दिन नौकरी और तपस्या के बीच गुजर रहे थे। लेकिन एक दिन बड़ी ही अजीब सी घटना हुई। चिनाब के किनारे एक जगह पर बैठकर भीम तपस्या में लीन थे। अचानक चिनाब का पानी तेज आवाज के साथ बहने लगता है।
भीम की तपस्या में विघ्न पड़ रहा था। वो हर हाल में अपने गुस्से को शांत रखना चाहते थे। क्योंकि उन्हें पता था कि गुस्से में आकर अगर उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया तो राज खुल जाएगा। लिहाजा वो चिनाब से मिन्नत करते हुए कहे कि कम से कम उस वक्त वो शांत हो जाए जब वो तपस्या कर रहे होते हैं।
चिनाब भीम की बात नहीं अनदेखी कर देता है। भीम बार-बार उससे शांति होने की प्रार्थना की। लेकिन जितना भीम प्रार्थना करते चिनाब जलधारा उतनी ही उग्रता और वेग से बहने लगी। धीरे धीरे भीम का सब्र जवाब देता दिया। वो अपनी जगह से खड़े होकर इतनी तेज गरजे कि चेनाब का पानी बहना भूल गया। औऱ चिनाब की लहरें शांत हो गई। जो कि आजतक उस जगह नदी का बहाव शांत है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें