गोण्डा। गोण्डा से लगभग 30 किमी की दूरी पर उमरी बेगमगंज में स्थित मां वाराही देवी के मंदिर पर वासंतिक नवरात्रि पर हजारों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। जहां श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़ बरबस ही मां के अद्भुत होने का श्रद्धालुओं को अहसास कराती है।
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि पृथ्वी का अपहरण कर के पाताल लोक में छिपे हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु को वाराह (सुअर) का रूप धारण करना पड़ा था। भगवान ने वाराह का अवतार इस पवित्र स्थान पर धारण किया था, यहीं उन्होंने मां भगवती की आराधना की थी इस लिए यहां अवतरित देवी को वाराही देवी कहा गया।
इसके साथ ही अनेक श्रद्धालु इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी मान्यता देते हैं। उनके अनुसार भगवान शिव जब सती का शव लेकर विक्षुब्ध हो पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे तो यहां उनके शरीर का एक भाग मुंह का दांत आदि गिरे थे। इस मंदिर पर सैकड़ों वर्षो से पूजा अर्चना चल रही है। इस देव स्थल का सबसे बड़ा आकर्षण मंदिर के बगल स्थित वट बृक्ष है।
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि पृथ्वी का अपहरण कर के पाताल लोक में छिपे हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु को वाराह (सुअर) का रूप धारण करना पड़ा था। भगवान ने वाराह का अवतार इस पवित्र स्थान पर धारण किया था, यहीं उन्होंने मां भगवती की आराधना की थी इस लिए यहां अवतरित देवी को वाराही देवी कहा गया।
इसके साथ ही अनेक श्रद्धालु इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी मान्यता देते हैं। उनके अनुसार भगवान शिव जब सती का शव लेकर विक्षुब्ध हो पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे तो यहां उनके शरीर का एक भाग मुंह का दांत आदि गिरे थे। इस मंदिर पर सैकड़ों वर्षो से पूजा अर्चना चल रही है। इस देव स्थल का सबसे बड़ा आकर्षण मंदिर के बगल स्थित वट बृक्ष है।
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