बांदा। बुंदेलखण्ड में कई ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं जो मानव जीवन के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं। बांदा जिले के तुर्रा गांव की बिसाहिल नदी में एक ऐसा पाताली जलधारा का कुंड है, जिसका पानी पीने या स्नान मात्र से बड़ा से बड़ा चर्म रोग ठीक हो जाता है। चिकित्सक और वैज्ञानिक भी इस करिश्माई जल में घुले तत्वों की खोजबीन करने में नाकाम हैं।
चित्रकूट के हनुमानगंज के जंगल में बने 'करका आश्रम' के जलकुंड के पानी में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को ठीक करने के गुण पाए जाते हैं। यह कुंड विंध्यश्रृंखला की पहाड़ी से निकले एक झरने में बना है।
बांदा जिले के तुर्रा गांव की बिसाहिल नदी में पाताली पानी को एकत्र करने के लिए बनाया गया एक कुंड आम लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। 10 साल पहले इलाहाबाद राजमार्ग संख्या-76 में निर्माण किए जा रहे पुल के खम्भे की खुदाई से फूटी पाताली जलधारा ने जहां सूखी नदी को पानी से लबालब कर दिया, वहीं राज्य सेतु निर्माण निगम को काम रोकने के लिए भी मजबूर कर दिया था।
बाद में निर्माण एजेंसी को इस पुल का निर्माण पचास मीटर की दूरी पर अन्य जगह कराना पड़ा। गांव के लोगों ने गर्मी में पानी की कमी को दूर करने के लिए चंदे से जुटाई रकम से इस जलधारा को एक पक्के कुंड में बदल दिया और जलस्रोत में लोहे का पाइप लगा दिया। इस पाइप से निकल कर पानी कुंड में एकत्र होता है और राहगीरों के अलावा आस-पास के ग्रामीण इसका उपयोग करते हैं।
कुछ साल पहले भयंकर चर्म रोग से पीड़ित एक राहगीर ने इस कुंड में स्नान किया तो उसे काफी फायदा मिला। तभी से हर शनिवार को यहां चर्म रोगियों की भीड़ जमा होने लगी, जो अनवरत जारी है। तुर्रा गांव के प्रधान पति संतोष वर्मा ने बताया, "अब तो दूर-दराज से चर्म रोगी यहां स्नान करने आते हैं और अपने साथ कुंड का पानी ले जाते हैं।"
इसी गांव के पूर्व प्रधान रजुवा शिवहरे ने बताया, 'गर्मी में नदी का पानी सूख जाता है, पर कुंड की जलधारा बहती रहती है। यहां का पानी चर्म रोगियों के लिए रामबाण दवा है, एक्जिमा, अपरस, खुजली जैसी गंभीर बीमारी के रोगी यहां स्नान करने आते हैं।"
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) बांदा के.एन. श्रीवास्तव ने बताया, "ऐसे पाताली जलस्रोतों में धातु या जड़ी-बूटी का मिश्रण होता है, जिससे कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। इस कुंड के पानी की जांच कराकर पता किया जाएगा कि इसमें कौन सा तत्व घुला हुआ है।"
राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय एवं महाविद्यालय अतर्रा के प्राचार्य डॉ एस.एन. सिंह ने बताया, "यह जल स्रोत भूगर्भ की किसी धातु से टकरा कर बाहर निकलता है, जिसके घोल से चर्म रोगियों को निजात मिलती है।"
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