श्रीगणेशपुराणम् उपासनाखण्डम् प्रथमोऽध्यायः

 श्रीगणेशपुराणम् उपासनाखण्डम् प्रथमोऽध्यायः

सोमकान्त वर्णननाम

ॐ नमस्तस्मै गणेशाय ब्रह्मविद्याप्रदायिने ।
यस्यागस्त्यायते नाम विघ्नसागरशोषणे ॥

॥ ऋषय ऊचुः ॥
सूत सूत महाप्राज्ञ ! वेदशास्त्रविशारद ! ।
सर्वविद्यानिधे त्वत्तो वक्ताऽन्यो नोपलभ्यते ॥ १ ॥
जन्मजन्मान्तरीयं नः स्थितं पुण्यं महत्तरम् ।
तेन सन्दर्शनं जातं सर्वज्ञस्य सतस्तव ॥ २ ॥
वयं धन्यतमा लोके जीवितं नः सुजीवितम् ।
पितरो वेदशास्त्राणि तपांस्याश्रम एव च ॥ ३ ॥
अष्टादशपुराणानि विस्तराच्छ्रावितानि नः ।
अन्यान्यपि हिनः श्रोतुमिच्छास्ति द्विजसत्तम ॥ ४ ॥
शौनकेये महासत्रे सक्ता द्वादशवार्षिके ।
त्वत्कथामृतपानान्नो नान्यद्विश्रामकारणम् ॥ ५ ॥

श्रीगणेशपुराण


श्रीगणेश के विविध मन्त्र

 

श्रीगणेश के विविध मन्त्र

१ - श्रीमहागणपतिस्वरूप प्रणव- मन्त्र — 'ॐ'।

२- श्रीमहागणपति का प्रणव- सम्पुटित बीज-मन्त्र — 'ॐ गं ॐ ।'

३- सबीज गणपति-मन्त्र — ' गं गणपतये नमः ।'

४- प्रणवादि सबीज गणपति-मन्त्र — 'ॐ गं गणपतये नमः ।'

५- नाम - मन्त्र —
   (क) ॐ नमो भगवते गजाननाय । (द्वादशाक्षर)
   (ख) श्रीगणेशाय नमः । ( सप्ताक्षर )
   (ग) ॐ श्रीगणेशाय नमः । (अष्टाक्षर)

६ - उच्छिष्टगणपति-नवार्णमन्त्र —
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
विनियोग —ॐ अस्य श्रीउच्छिष्टगणेशनवार्णमन्त्रस्य कङ्कोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपतिर्देवता, अखिलावाप्तये जपे विनियोगः ।


श्रीगणेशपुराण - एक परिचय

 श्रीगणेशपुराण - एक परिचय

अत्यन्त प्राचीन काल की बात है, सौराष्ट्रदेश के प्रसिद्ध देवनगर में शास्त्र - मर्मज्ञ सोमकान्त नामक धर्मपरायण एक नरेश थे। वे अतिशय सुन्दर, विद्वान्, धनवान्, तेजस्वी एवं पराक्रमी थे। उनकी बुद्धिमती, अनिन्द्य सुन्दरी, धर्मपरायणा सती पत्नी का नाम सुधर्मा था । सुधर्मा के गर्भ से हेमकण्ठ नामक अत्यन्त सुन्दर, शूर, पराक्रमी एवं विद्या- विनय - सम्पन्न पुत्र उत्पन्न हुआ। हेमकण्ठ अपने माता-पिता के सर्वथा अनुकूल था और वह सोमकान्त के शासन-कार्य में दक्षतापूर्वक सहयोग प्रदान करता रहता था । रूपवान्, विद्याधीश, क्षेमंकर, ज्ञानगम्य और सुबल नामक पाँच स्वामिभक्त अमात्य भी राजा सोमकान्त की प्रत्येक रीति से सेवा किया करते । सोमकान्त के राज्य में प्रजा समृद्ध एवं सुखी थी। वह सर्वथा निरापद जीवन व्यतीत करती थी । साधु और ब्राह्मण निश्चिन्त होकर श्रीभगवान्‌ की आराधना किया करते थे। सहसा सोम-तुल्य राजा सोमकान्त को गलितकुष्ठ हो गया। उनके शरीर में सर्वत्र घाव हो गये। उनसे रक्त और पीब बहने लगा। नरेश ने प्रख्यात चिकित्सकों से अनेक उपचार करवाये, किंतु उनसे उनको कोई लाभ नहीं हुआ। यशस्वी नरपति अत्यन्त निर्बल तो हो ही गये थे, उनके व्रणों में कीड़े पड़ गये और उनसे दुर्गन्ध निकलने लगी।

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