राशि और सैक्स - कर्क राशि
Sign & Sex - Cancer
कर्क का अर्थ है, ‘केकड़ा’ इस राशि वाले केकड़े के समान हृष्ट-पुष्ट होता है और स्वभाव भी ‘मोटी खाल’ वाला, बकते-चीखते रहिये, उनपर कोई असर नहीं होगा। परले सिरे के बेशर्म, लड़की छेड़ेंगे, गालियां देंगी, चप्पल लेकर दौड़ेंगी, किन्तु इस राशि का आवारा युवक हंसता रहंगा और जूते खाकर भी नहीं मानेगा। सहनशीलता गजब की होती है। इस राशि की महिला के साथ मैथुन करिये या कठोरतम बलात्कार, ‘उफ’ तक नहीं करेगी, सब बरदाश्त कर जायेंगी। बुरा लगेगा, पीड़ा सहन कर लेंगी, बोलेंगी नहीं। झगड़ा हो, पति बेतरह पीटे, सब बरदाश्त कर लेंगी, खून का घूंट पीकर रह जायेंगी। अपनी मर्जी के बिना यह टस से मस नहीं होती। ज्योतिष में यह राशि चर (चलायमान) है, तत्त्व जल, पृष्ठोदय उदय, लिंग स्त्री, रंग गुलाबी, दिशा दक्षिण, अंक 2। ग्रह स्वामी चन्द्रमा जाति ब्राह्मण ऋतु वर्षा रत्न मोती स्वाद लवण धातु अस्थि और वीर्य आकार गोल शरीर में स्थान हृदय है तथा कीट में गणना होती है। ग्रहाधिपति देवता पार्वती है।लिंग स्त्री होने के बावजूद इस राशि के पुरूषों में पौरूष और स्त्रियों में सहनशक्ति गजब की होती है। इस राशि के पुरूष का शरीर नाजुक होता है, किन्तु पंजा मजबूत। स्त्रियों की चाल में मस्ती होती है। इस राशि के स्त्री-पुरूषों को गृहस्थ जीवन बड़ा अच्छा लगता है। अपने गृहस्थ जीवन के अनुभव लोगों को सुनाया करते हैं। प्रायः इनका गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। घूमने-फिरने का बड़ा शौक होता है।यह चलायमान (चर) राशि होने के कारण चंचल, केंकड़ा होने के कारण कठोरतम मैथुन प्रिय होता है और रात्रि बली (पृष्ठोदय) होने के कारण मैथुन हमेशा अन्धकार में करना पसन्द करते हैं। पद इसका कीट है, अतएव रेंगकर (लम्बा होकर) मैथुन करना पसन्द करते हैं। कीट में गणना के कारण सभी प्रकार के चलायमान मैथुन सभी आसनों में करना स्वभाव होता है। मैथुन करते समय कीट (पतंगों) के समान भुनभुनाते या सांस छोड़ते हैं। अत्यन्त क्रूर-कठोरतम मैथुन होता है। इस राशि के पुरूष के मैथुन से स्त्री पनाह मांगती है और स्त्री से पुरूष को पसीना आ जाता है। इसे सन्तुष्ट करना लोहे के चने चबाने जैसा है। जाति ब्राह्मण होने के बावजूद अपने स्वभाव कीट होने के कारण साफ-सफाई के साथ संभोग नहीं होता है। गन्दे ढ़ग से प्रायः मैथुन करता है। मैथुन के समय गति केकड़े के समान, किन्तु अत्यन्त कठोर होती है। अपनी चंचलता तथा कठोरता के कारण विपरीत लिंगी का कचुमर निकाल देते हैं। अंधकार इनको प्रिय होता है और मैथुन करते समय ध्वनि नहीं करते हैं। इनकी धड़कने चरम सीमा पर होती है और हांफते बहुत हैं। इनका मैथुन पूर्ण तृप्तिदायक होता है। अपने नक्षत्रों के कारण इस कार्य में क्रूर, भोगी और हर प्रकार से रूचि रखते हैं। इस राशि के जातक इस क्रिया के दौरान अपनी गरदन सिकोड़ते या चलायमान अवश्य करते हैं, यह इनका एक विशेष गुण होता है। अपने तत्त्व के जल के कारण विशेष गरम नहीं होती है ओर पसीना कम निकलता है। मैथुन करते समय यह जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं। क्रिया रोक देते हैं। किसी प्रकार का व्यवधान इनको पसन्द नहीं हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय या बाद में कुछ न कुछ खाने-पीने की इनकी आदत होती है। मुंह चलता रहता है। इनमें स्तम्भन शक्ति ज्यादा होती है। प्रायः शरीर सिकोड़कर केकड़े के समान आकृति बनाकर यह सम्भोग करते हैं। बीच बीच में रूक जाया करते हैं। इस क्रिया में सबसे अधिक समय इस राशि के जातकों को ही लगता हैं। इस राशि के जातक प्रायः भावुक बेहद होते हैं। मैथुन करते समय अन्य भावुकता भरी क्रियाएं और खूब प्यार करते हैं। प्यार से अपने प्रिय को तर-बतर कर देते हैं। स्खलन इनका कम मात्रा में होता हैं, यह बिना रूके होता है और मैथुन के उपरान्त भी यह शीघ्र अलग नहीं होते। स्खलित होकर उसी अवस्था में देर तक पड़े रहते हैं। सामान्य तौर पर इनका दाम्पत्य जीवन का यह पक्ष मधुर होता है, पर क्रोधी स्वभाव के कारण मन उखड़ गया तो फिर कई दिनों तक मैथुन नहीं करते हैं। दाम्पत्य जीवन सामान्यतः सुखमय होता है, किन्तु अपनी इस ‘कामलीला’ के कारण कभी-कभी तनाव या तलाक जैसी स्थिति भी इसी राशि में सबसे ज्यादा होती है।दक्षिण दिशा में मुख करके मैथुन कर इस राशि के जातक और भी सुख उठा सकते हैं। इसकी काम वासना का समय सबसे अधिक श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) है। इसी माह में प्रायः गर्भाधान-प्रसव करती है। अपने ग्रह देवता चन्द्रमा के प्रभाव के कारण शुक्ल पक्ष में काम वासना अधिक हो जाती है। स्त्रियां विशेष रूप से पूर्णिमा की रात बहुत बेचैन रहती है। इसकी कामात्तेजना और स्खलन के बिन्दु स्तन हैं। उनका मर्दन-चुम्बन, पान इसको उत्तेजना देता है और स्खलित करा देते हैं। निवास तालाब, झील होने के कारण इस राशि के जातक नदी या जलाशय के पास बसे आवास, नगर आदि में अत्यन्त सुख का अनुभव करते हैं। ऐसे स्थानों पर इस राशि की महिलाओं में भी का वासना अधिक होती है। गुलाबी रंग से उत्तेजना मिलती है। इस राशि की स्त्रियां वर्षा ऋतु में प्रायः गर्भाधान करती है। इनको मीठी वस्तुएं कम पसन्द आती है। प्रायः जातक के चेहरे गोल हुआ करते हैं। स्त्रियों के स्त्री अंग तथा स्तन भी गोलाकार होंते हैं। लम्बाई कम से कम होती है। पुरूषेन्द्रिय में कठोरता ज्यादा होती है। इस राशि की महिलाओं के चेहरे पर लावण्य अवश्य होता है। कुशल गृहिणी होती है। इस राशि के जातक बहुत गहरा प्यार करते हैं, यह प्यार अन्त तक निभाते हैं। आपस में तनाव बढ़ता है तो कई दिनों तक बात नहीं करते हैं। सन्तान अधिक उत्पन्न करते हैं और सन्तान के प्रति यह बहुत ध्यान रखते हैं।प्रेम के मामले में यह पक्के होते हैं और निभाते हैं, किन्तु इनके प्रेम प्रायः असफल होते हैं। बाहर से शांत दिखते हैं, अन्दर से बहुत भावुक होते हैं। संवेदनशीलता ज्यादा होती है। इनके प्रेम पत्र कभी बहुत प्रिय कभी बहुत कठोर होते हैं। अप्राकृतिक मैथुन इस राशि को अप्रिय लगता है।
धनाधीश कुबेर
धनाधीश कुबेर
पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भरद्वाज की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेर जी की उत्पत्ति हुई। भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोक पाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है।श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्ट-दन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी पुरी में विराजते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। इनके पुत्र नल-कुबर और मणि-ग्रीव भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप रहते हैं।
प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू-गर्भ-स्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में `निधि´ सजीव मानी गई है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य-सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है। कुबेर धनपति हैं, जहाँ कहीं भी धन है, उसके ये स्वामी हैं। इनके नगर का नाम अलकापुरी है। ये एक आँख रखते हैं। एक बार भगवती उमा पर इनकी कु-दृष्टि गई, तो एक नेत्र नष्ट हो गया तथा दूसरा नेत्र पीला हो गया। अत: ये एक आँख वाले पिंगली कहे जाते हैं। इनकी पीठ पर कूबड़ है। अस्त्र गदा है, वाहन नर है अर्थात् पालकी पर बैठकर चलते हैं।रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य हुये और इनके वैश्रवण नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम कुबेर था। अपने पिता को छोड़कर ये अपने पितामह ब्रह्मा के पास चले गये और उनकी सेवा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया, साथ ही धन का स्वामी बनाकर लंका का अधिपति बना दिया। साथ ही पुष्पक विमान प्रदान किया।पुलस्त्य ऋषि ने अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र पैदा किया, जिसने अपने भाई कुबेर को बड़े क्रूर भाव से देखा। तब कुबेर ने अपने पिता को सन्तुष्ट करने के लिये तीन राक्षसियाँ भेंट की, जिनके नाम पुष्पोलट, मालिनी और रामा थे। पुष्पोलट से रावण और कुम्भकर्ण, मालिनी से विभीषण एवं रामा से खर, दूषण व सूर्पणखा उत्पन्न हुये। ये सभी सौतेले भाई कुबेर की सम्पत्ति देखकर उनसे द्वेष करने लगे। रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनसे मनचाहा रूप धारण करने एवं सिर कट जाने पर फिर से आ जाने का वर प्राप्त किया। वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। अन्त में कुबेर गन्धमादन पर्वत पर चले गये। कुबेर की पत्नी दानव मूर की कन्या की बेटी थी। उनके पुत्रों के नाम नल-कुबर और मणि-ग्रीव तथा पुत्री मिनाक्षी थी।बोद्ध ग्रन्थ `दीर्घ-निकाय´ के अनुसार कुबेर पुर्व जन्म में ब्राह्मण थे। वे ईख के खेतों के स्वामी थे। एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे। इस प्रकार वह 20 हजार वर्षों तक दान करते रहे, जिसके फल-स्वरूप इनका जन्म देवों के वंश में हुआ।`शतपथ-ब्राह्मण´ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और चोरों तथा दुष्टों का स्वामी बताया गया है। कुबेर यक्षों के नेता हैं। जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, वेद साहित्य में `कुबेर´ नाम से ही इनका उल्लेख है। ये उत्तर दिशा के दिक्-पाल हैं। इन्हें सोना बनाने की कला का मर्मज्ञ भी बताया जाता है। इनकी अलका पुरी, जो कैलास पर्वत पर बतायी जाती है, अत्यन्त मनोरम है। यहीं से अलकनंदा निकली है।कौटिल्य के अनुसार कूबेर की मुर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिये। कुबेर का निवास वट-वृक्ष कहा गया है। `वाराह-पुराण´ के अनुसार कुबेर की पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन की जाती है। वर्त्तमान में दीपावली पर धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है। कुबेर को प्रसन्न करने के लिये महा-मृत्युंजय मन्त्र का दस हजार जप आवश्यक है।
कुबेर मन्त्र -विनियोग - ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:।ऋष्यादि-न्यास - विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
षडग्-न्यास
कर-न्यास
अग्-न्यास
ॐ यक्षाय
अंगुष्ठाभ्यां नम:
हृदयाय नम:
ॐ कुबेराय
तर्जनीभ्यां स्वाहा
शिरसे स्वाहा
ॐ वैश्रवणाय
मध्यमाभ्यां वषट्
शिखायै वषट्
ॐ धन-धान्यधिपतये
अनामिकाभ्यां हुं
कवचाय हुं
ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे
कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ देही दापय स्वाहा
करतल करपृष्ठाभ्यां फट्
अस्त्राय फट्
ध्यान -
मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्।
शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।।
मन्त्र -
``ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्याधिपतये धन-धान्य-समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।´´
उक्त मन्त्र का एक लाख जप करने पर सिद्धि होती है।
पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भरद्वाज की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेर जी की उत्पत्ति हुई। भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोक पाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है।श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्ट-दन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी पुरी में विराजते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। इनके पुत्र नल-कुबर और मणि-ग्रीव भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप रहते हैं।
प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू-गर्भ-स्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में `निधि´ सजीव मानी गई है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य-सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है। कुबेर धनपति हैं, जहाँ कहीं भी धन है, उसके ये स्वामी हैं। इनके नगर का नाम अलकापुरी है। ये एक आँख रखते हैं। एक बार भगवती उमा पर इनकी कु-दृष्टि गई, तो एक नेत्र नष्ट हो गया तथा दूसरा नेत्र पीला हो गया। अत: ये एक आँख वाले पिंगली कहे जाते हैं। इनकी पीठ पर कूबड़ है। अस्त्र गदा है, वाहन नर है अर्थात् पालकी पर बैठकर चलते हैं।रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य हुये और इनके वैश्रवण नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम कुबेर था। अपने पिता को छोड़कर ये अपने पितामह ब्रह्मा के पास चले गये और उनकी सेवा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया, साथ ही धन का स्वामी बनाकर लंका का अधिपति बना दिया। साथ ही पुष्पक विमान प्रदान किया।पुलस्त्य ऋषि ने अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र पैदा किया, जिसने अपने भाई कुबेर को बड़े क्रूर भाव से देखा। तब कुबेर ने अपने पिता को सन्तुष्ट करने के लिये तीन राक्षसियाँ भेंट की, जिनके नाम पुष्पोलट, मालिनी और रामा थे। पुष्पोलट से रावण और कुम्भकर्ण, मालिनी से विभीषण एवं रामा से खर, दूषण व सूर्पणखा उत्पन्न हुये। ये सभी सौतेले भाई कुबेर की सम्पत्ति देखकर उनसे द्वेष करने लगे। रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनसे मनचाहा रूप धारण करने एवं सिर कट जाने पर फिर से आ जाने का वर प्राप्त किया। वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। अन्त में कुबेर गन्धमादन पर्वत पर चले गये। कुबेर की पत्नी दानव मूर की कन्या की बेटी थी। उनके पुत्रों के नाम नल-कुबर और मणि-ग्रीव तथा पुत्री मिनाक्षी थी।बोद्ध ग्रन्थ `दीर्घ-निकाय´ के अनुसार कुबेर पुर्व जन्म में ब्राह्मण थे। वे ईख के खेतों के स्वामी थे। एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे। इस प्रकार वह 20 हजार वर्षों तक दान करते रहे, जिसके फल-स्वरूप इनका जन्म देवों के वंश में हुआ।`शतपथ-ब्राह्मण´ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और चोरों तथा दुष्टों का स्वामी बताया गया है। कुबेर यक्षों के नेता हैं। जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, वेद साहित्य में `कुबेर´ नाम से ही इनका उल्लेख है। ये उत्तर दिशा के दिक्-पाल हैं। इन्हें सोना बनाने की कला का मर्मज्ञ भी बताया जाता है। इनकी अलका पुरी, जो कैलास पर्वत पर बतायी जाती है, अत्यन्त मनोरम है। यहीं से अलकनंदा निकली है।कौटिल्य के अनुसार कूबेर की मुर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिये। कुबेर का निवास वट-वृक्ष कहा गया है। `वाराह-पुराण´ के अनुसार कुबेर की पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन की जाती है। वर्त्तमान में दीपावली पर धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है। कुबेर को प्रसन्न करने के लिये महा-मृत्युंजय मन्त्र का दस हजार जप आवश्यक है।
कुबेर मन्त्र -विनियोग - ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:।ऋष्यादि-न्यास - विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
षडग्-न्यास
कर-न्यास
अग्-न्यास
ॐ यक्षाय
अंगुष्ठाभ्यां नम:
हृदयाय नम:
ॐ कुबेराय
तर्जनीभ्यां स्वाहा
शिरसे स्वाहा
ॐ वैश्रवणाय
मध्यमाभ्यां वषट्
शिखायै वषट्
ॐ धन-धान्यधिपतये
अनामिकाभ्यां हुं
कवचाय हुं
ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे
कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ देही दापय स्वाहा
करतल करपृष्ठाभ्यां फट्
अस्त्राय फट्
ध्यान -
मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्।
शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।।
मन्त्र -
``ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्याधिपतये धन-धान्य-समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।´´
उक्त मन्त्र का एक लाख जप करने पर सिद्धि होती है।
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