बुरी तरह उखड़ी हुई भाभी जी ने राणा भाई को कोसते हुए कहा, "तुम्हारी ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है
क्या...
तुम्हारे घर का खर्च मेरे पिताजी उठाते हैं...
तुम्हारे बच्चों के स्कूल की फीस मेरी मां दिया करती हैं...
मेरे मामा हमारे मकान-मालिक हैं, सो, वह किराया नहीं लेते...
कपड़े मेरी बुआ के भिजवाए हुए पहनते हो...
खाने-पीने का सामान मेरी मौसी की दुकान से मुफ्त आता है...
शर्म नहीं आती क्या...?"
राणा ने तमतमाकर जवाब दिया, "बिल्कुल... शर्म तो आनी ही चाहिए... इसी शहर में तुम्हारे दो-दो भाई भी
रहते हैं, लेकिन सालों ने आज तक एक पैसा भी नहीं भिजवाया..."
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