रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य के चंपा-जांजगीर जिले में महानदी, जोंक नदी और शिवनदी के त्रिवेणी संगम पर शिवरी नारायण कस्बा स्थित है, जिसे भारत की तीर्थनगरी प्रयाग जैसी मान्यता प्राप्त है। कहा जाता है कि यहां भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी गुप्त रूप से विराजमान है।
इस कस्बे का उल्लेख सभी युगों में मिलता है, जिस कारण यह स्थल सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापर युग में विष्णुपुर और कलयुग में शिवरी नारायणपुर कहलाया।
वहीं रामायणकाल में इस स्थान पर मतंग ऋषि का आश्रम था, जहां पर श्रीराम की परम भक्त माता शबरी उनके दर्शन के लिए व्याकुल थीं। सीता की खोज में श्रीराम व लक्ष्मण का इस क्षेत्र में आगमन हुआ था और माता शबरी को दर्शन दिए।
जब माता शबरी ने अपने भगवान को साक्षात देखा तो उनकी आंखों में आंसू झलक आए और वह उनकी आवभगत में लग गई। उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह बैकुंठलोक के स्वामी का किस तरह स्वागत करें।
शबरी ने बेर लेकर श्रीराम को दिए, लेकिन भगवान राम कहीं खट्टे बेर न खा लें इसलिए शबरी ने सारे बेर खुद चखकर राम को दिए। भगवान राम ने भी शबरी के आगढ़ प्रेम को समझकर सारे झूठे बेर खा लिए।
इस प्रसंग को लेकर इस स्थान को शबरी-नारायण कहा जाने लगा। बाद में यह बिगड़कर शिवरीनारायण कहलाने लगा। वहीं प्राचीन काल में यहां खर-दूषण राक्षसों का राज था, जो श्रीराम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए यह नगर खरौद भी कहलाया।
इस कस्बे का उल्लेख सभी युगों में मिलता है, जिस कारण यह स्थल सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापर युग में विष्णुपुर और कलयुग में शिवरी नारायणपुर कहलाया।
वहीं रामायणकाल में इस स्थान पर मतंग ऋषि का आश्रम था, जहां पर श्रीराम की परम भक्त माता शबरी उनके दर्शन के लिए व्याकुल थीं। सीता की खोज में श्रीराम व लक्ष्मण का इस क्षेत्र में आगमन हुआ था और माता शबरी को दर्शन दिए।
जब माता शबरी ने अपने भगवान को साक्षात देखा तो उनकी आंखों में आंसू झलक आए और वह उनकी आवभगत में लग गई। उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि वह बैकुंठलोक के स्वामी का किस तरह स्वागत करें।
शबरी ने बेर लेकर श्रीराम को दिए, लेकिन भगवान राम कहीं खट्टे बेर न खा लें इसलिए शबरी ने सारे बेर खुद चखकर राम को दिए। भगवान राम ने भी शबरी के आगढ़ प्रेम को समझकर सारे झूठे बेर खा लिए।
इस प्रसंग को लेकर इस स्थान को शबरी-नारायण कहा जाने लगा। बाद में यह बिगड़कर शिवरीनारायण कहलाने लगा। वहीं प्राचीन काल में यहां खर-दूषण राक्षसों का राज था, जो श्रीराम के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए यह नगर खरौद भी कहलाया।
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