राशि और सैक्स - तुला राशि

राशि और सैक्स - तुला राशि
Sign & Sex - Libra

यह राशि वृष की सहोदर राशि है। आकाश में इसका आकार तुला (तराजू) के समान है। कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) इसका मास है। यह चर राशि, तत्त्व आकाश, शीर्षोदय उदय, दिशा पश्चिम, निवास हाट-बाजार, रंग रंग-बिरंगा, जाति वैश्य, पद द्विपद, आकार अष्टकोण, शरीर में स्थान नाभि, ग्रह स्वामी शुक्र है।इस राशि के जातक साधारण रूपरंग के होते हैं। विचार अत्यन्त नपे-तुले, कोई भी काम, कोई भी बात, बिना सोचे समझे नहीं बोलते। इस राशि की लड़कियां अत्यन्त चतुर, बुद्धिमान तथा तेजस्वी होती हैं। अपने पति या प्रेमी को जी-जान से प्रेम करती हैं, उसके एक इशारे पर अपनी जान दे देती हैं। इस राशि के जातक का सैक्स भी एकदम नपातुला होता है। ज्यादा सम्भोग करना, कराना पसन्द नहीं करते। दाल में नमक के बराबर। प्रेम या विवाह काफी तौलकर करते हैं और बड़ी शान्ति के साथ दाम्पत्य जीवन व्यतीत होता है। निवास बाजार, हाट होने के कारण घूमना और रंग-बिरंगा रंग होने के कारण खूब बन-ठनकर निकलना, श्रृगांर करना बड़ा प्रिय होता है। इस राशि की स्त्री के दोनों स्तन एकदम समान आकार और तराजू के पल्लों के समान होते हैं (अन्य स्त्रियों के स्तन निश्चित रूप से एक छोटा, दूसरा बड़ा होता है)। स्त्री अंग सांप सा लहराया, पर तराजू की डंडी के समान संकरा (पतला) होता है। पुरूष अंग समान रूप से गोलाकार और सामान्य लम्बाई का होता है। बड़ी संयमित और संतुलित सेक्स जीवन जीने वाली यह राशि है। इसकी कामोत्तेजना का केन्द्र नाभि है। नाभि में अंगुली डालने या गुदगदी करने पर स्त्री काम पीड़ित तथा स्खलित हो जाती है। तत्त्व आकाश होने के कारण घुटन-भरे वातावरण में किये गये सम्भोग से इसको न आनन्द मिलता है, न ये पसन्द करते हैं। राशि रूप चर हैं, अतः मैथुन अस्थिर रूप से करता है। मैथुन कम, पर देर तक करते हैं। शीर्षोदय राशि के कारण अश्लील ढंग नहीं अपनाते, दिन में विशेष सुख मिलता है और सामने से ही क्रियारत होते हैं। द्विपदी राशि के कारण नाना प्रकार के आसन में रूचि नहीं होती हैं, मानवोचित संभोग लीला करते हैं। पश्चिम की ओर मुख करने से ज्यादा सुख मिलता है। परिवार-नियोजन का यह स्वयं ही बड़ी कड़ाई से पालन करते हैं। इस राशि के जातक दोनों का सेक्स अत्यन्त नपा-तुला होता है। पूर्ण रूप से एक-दूसरे का संतुष्ट करते हैं। जाति वैश्य होने से इनके संभोग में शालीनता होती है। इसका आकार तुला होने के कारण प्यार में सौदा करना इसका एक स्वभाव है। प्रायः यह मैथुन पूर्व चुम्बन-आलिंगन की बाजी लगाया करती है। पति या पत्नी के साथ द्यूत-क्रिड़ा, बाजी लगाना इसको बड़ा पसन्द आता है। इसमें स्वार्थी भाव ज्यादा होते हैं। मैथुन करते समय केवल आवश्यक या अनिवार्य ध्वनियां ही होती है तथा उचित समय पर मैथुन करते हैं। पूर्व में कुछ मनोरंजन और समाप्ति पर प्रायः एक-दूसरे को ठगते हैं। इस राशि की महिला अपने पति से संभोग समाप्ति के उपरान्त कुछ न कुछ फरियाद अवश्य करेगी। इस राशि के जातक साफ-सुथरा और स्तरीय मैथुन करना पसन्द करते हैं। अपना मैथुन किसी पर प्रकट नहीं करते, बहुत गोपनीय ढ़ग से इस कार्य को करते हैं। स्वभाव इनका संतुलित होता है। प्रेम-पत्र भी एक एक पंक्ति को दस बार सोचकर लिखेंगें। इनकी लिखावट में काट-पीट, संशोधन अवश्य होगा।इनका प्रेम जल्दी प्रकट नहीं होता है। हर काम यह योजना बनाकर करते हैं और पहले साधन तथा वातावरण बना लेते हैं। स्त्री कभी पुरूष के पीछे या पुरूष के पीछे नहीं भागता है। इस राशि के नवयुवक छेड़खानी नहीं करते हैं। प्रायः गम्भीर रहते हैं। इसी राशि की लड़कियों का परीक्षाफल प्रायः सबसे सन्तोषजनक रहता है। तत्त्व आकाश होने के कारण अपने बनाये आकाश में मग्न रहते हैं। जाति राशि वैश्य होने के कारण प्रेम / विवाह में अपना नफा-नुकसान देखकर निर्णय हैं और किये गये निर्णय पर अटल रहते हैं। इस राशि की ही महिलाओं का प्रतिशत अविवाहित महिलाओं में ज्यादा होता है। अक्टूबर-नवम्बर में यह गर्भाधान करती है। नाभि राशि अंग होने से मूत्र रोग, गर्भाशय की बीमारी तथा उदर रोग होते हैं, पर गुप्त रोग इस राशि के जातकों के पास भी नहीं फटकते हैं। पुरूषों को अवश्य वृद्धावस्था में अण्डकोष की बीमारी हो जाती है। वृद्धावस्था में इनका सैक्स शांत हो जाया करता है। अपने जीवन का अन्तिम काल 60 से ऊपर होने पर यह शांति के साथ धार्मिक कार्यों में लगाते हैं। यह राशि सौम्य एकदम नपी-तुली है। ऐसा ही इनका सेक्स, दाम्पत्य जीवन और सन्तान संसार नपा-तुला होता है।

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