वो जिंदा था तो देश के लिए काम करता रहा। लेकिन हम ये कहें तो क्या आप यकीन करेंगे कि वो आज मरने के बाद के बाद ही हमारे देश की सरहद की हिफाज़त कर रहा है?? यकीन होना मुश्किल है लेकिन विज्ञान और तकनीक से भरी हमारी दुनिया में ऐसे किस्सों की कमी नहीं है जो विज्ञान को भी चुनौती दे जाते हैं। ऐसा ही दिलचस्प और हैरतअंगेज किस्सा है हरभजन सिंह का ...।
आज भारत-चीन सीमा पर ना सिर्फ उसका मंदिर है बल्कि आज भी उसे मिल रहा है सेना की ओर से प्रमोशन ...
किस्सा वाकई दिलचस्प है क्योंकि सेना में सैनिक की पोस्ट पर भर्ती होने वाला जवान अब मरने के बाद कप्तान में प्रमोट हो गया है। उसकी याद में सरहद के क़रीब एक मंदिर भी बना है जहां सैनिक और आम लोग मत्था टेकते हुए गुजरते हैं। चीन सीमा पर बने नाथुला दर्रे पर अपनी जान गंवाने वाले जवान हरभजन सिंह को लोगों की आस्थाओं ने न केवल आज तक जिंदा रखा है बल्कि बाबा हरभजन सिंह बना दिया है।
किस्सा वाकई दिलचस्प है क्योंकि सेना में सैनिक की पोस्ट पर भर्ती होने वाला जवान अब मरने के बाद कप्तान में प्रमोट हो गया है। उसकी याद में सरहद के क़रीब एक मंदिर भी बना है जहां सैनिक और आम लोग मत्था टेकते हुए गुजरते हैं। चीन सीमा पर बने नाथुला दर्रे पर अपनी जान गंवाने वाले जवान हरभजन सिंह को लोगों की आस्थाओं ने न केवल आज तक जिंदा रखा है बल्कि बाबा हरभजन सिंह बना दिया है।
बाबा हरभजन को हर साल की 14 सितम्बर को छुट्टी पर घर भेजने के लिए एसी फर्स्ट क्लास का टिकट बुक कराया जाता था। जितना भी उनका जरूरत का सामान होता था वह दो जवानों की देखरेख में उनके घर ट्रेन से भेजा जाता था। लोगों की आस्थाओं और श्रद्धा को ध्यान में रखते हुए नाथुला से उनके सामान की विदाई और वापसी एक धार्मिक यात्रा की तरह होने लगी थी।
आस्था के चलते लोगों ने बाबा हरभजन के मंदिर पर चप्पलों का लगातार चढ़ावा करना शुरू कर दिया जो की सेना के प्रबंधन के लिए मुश्किलें पैदा खड़ी कर रहा था। आज लोगों के मन में इस मंदिर के प्रति इतनी आस्था बढ़ गई है कि यहां प्रसादी वितरण और भंडारे जैसी परम्पराएं शुरू हो गई है। फौज के अधिकारियों को अब लगता है कि ये कहीं आस्था का इतना बड़ा केन्द्र ना बन जाए कि सरहद की संवेदनशीलता पर ही खतरा पैदा हो जाए। इन बातों की वजह से ही बाबा हरभजन के इस आस्थाओं के प्रतीक को बीते चार सालों से बंद कर दिया गया है।
पंजाब के कूका में जन्मे हरभजन सिंह पंजाब की सेना में 1966 में भर्ती हुए थे।1968 में सिक्किम के नाथुला दर्रे के पास घोड़े ले जाते वक्त गहरी खाई में गिरने से उनकी मौत हो गई थी उसके बाद कई फौजियों ने दावा किया था की हरभजन उन्हे चीनी घुसपैठियों के बारे में कई अहम सैन्य सूचनाएं बताई। नाथुला के इस दर्रे को कुछ समय बाद हरभजन की स्मृति स्थल बनाया गया इसके बाद इस स्मृति स्थल को मंदिर में बदल दिया गया। हरभजन को समय-समय पर प्रमोशन भी मिलता रहता है।
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