भावनगर (गुजरात)। भावनगर शहर में खारगेट चौक के पास यहवर्षो पुराना जगदीश मंदिर है। जगदीश मंदिर यानी की भगवान जगन्नाथ का स्वरूप।
भावनगर शहर में जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हुई तब रथयात्रा के आयोजक भीखूभाई भट्ट ने रथयात्रा की शुरुआत इसी मंदिर से करवाने के पक्ष में थे। हालांकि भीखूभाई के साथ अन्य संबंधितों की भी इस हेतु सहमति बन गई थी, लेकिन जगह की कमी के कारण यह संभव नहीं हो सका। लेकिन भगवान जगन्नाथ का रथ इस मंदिर से होते हुए ही गुजरता है। रथयात्रा के समय भगवान जगन्नाथ के रथ की यहां भव्य पूजा-अर्चना की जाती है।
मंदिर में प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे पूजन-अर्चना होती है। यहां भगवान को हांडी (मिट्टी का छोटा मटका) चढ़ाकर मन्नत मांगने का प्रचलन है। श्रद्धालु अपने अपेक्षित कार्य जैसे कि नौकरी, प्रमोशन, शादी-ब्याह, संतान प्राप्ति आदि के लिए मन्नत मांगते समय हांडी चढ़ाते हैं।
हांडी में गर्म भात डाला जाता है। आरती व पंचामृत के बाद पुजारी दोनों हाथों से मटकी लेकर भगवान के सामने थाल में रखते हैं। थाल में रखते ही मटकी के चार टुकड़े हो जाते हैं। सबसे खास बात यह कि मटकी के फूटने के बाद भी चावल का एक भी दाना नीचे नहीं गिरता। लेकिन यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह कोई चामात्कारिक घटना नहीं है। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
इस मंदिर में वर्षो से मुख्याजी पुजारी हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इनका परिवार भगवान जगदीश की सेवा करता आ रहा है। मंदिर में आने वाले चढ़ावे से ही मंदिर के रख-रखाव का काम होता है। श्रावण मास में इस मंदिर का खास महत्व है।
भावनगर शहर में जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हुई तब रथयात्रा के आयोजक भीखूभाई भट्ट ने रथयात्रा की शुरुआत इसी मंदिर से करवाने के पक्ष में थे। हालांकि भीखूभाई के साथ अन्य संबंधितों की भी इस हेतु सहमति बन गई थी, लेकिन जगह की कमी के कारण यह संभव नहीं हो सका। लेकिन भगवान जगन्नाथ का रथ इस मंदिर से होते हुए ही गुजरता है। रथयात्रा के समय भगवान जगन्नाथ के रथ की यहां भव्य पूजा-अर्चना की जाती है।
मंदिर में प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे पूजन-अर्चना होती है। यहां भगवान को हांडी (मिट्टी का छोटा मटका) चढ़ाकर मन्नत मांगने का प्रचलन है। श्रद्धालु अपने अपेक्षित कार्य जैसे कि नौकरी, प्रमोशन, शादी-ब्याह, संतान प्राप्ति आदि के लिए मन्नत मांगते समय हांडी चढ़ाते हैं।
हांडी में गर्म भात डाला जाता है। आरती व पंचामृत के बाद पुजारी दोनों हाथों से मटकी लेकर भगवान के सामने थाल में रखते हैं। थाल में रखते ही मटकी के चार टुकड़े हो जाते हैं। सबसे खास बात यह कि मटकी के फूटने के बाद भी चावल का एक भी दाना नीचे नहीं गिरता। लेकिन यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह कोई चामात्कारिक घटना नहीं है। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
इस मंदिर में वर्षो से मुख्याजी पुजारी हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इनका परिवार भगवान जगदीश की सेवा करता आ रहा है। मंदिर में आने वाले चढ़ावे से ही मंदिर के रख-रखाव का काम होता है। श्रावण मास में इस मंदिर का खास महत्व है।
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