भगवान अपने होने का प्रमाण हमेशा देते रहते हैं, और हमारे भारतवर्ष में तो ईश्वर के चमत्कार हर चार कदम पर देखे जा सकते हैं। ऐसे कई स्थान हैं जो हमें यह अहसास कराते रहते हैं कि दुनिया में भगवान नाम की कोई शक्ति है जो हमेशा हम पर अपनी कृपा दृष्टी बरसा रही है।
राजस्थान के उदयपुर जिले में भी एक ऐसा ही स्थान है जहां शक्ति स्वरूप मां झड़ाना माता के रूप में विद्यमान है जो कि राजपूत और भील समुदाय के साथ-साथ सम्पूर्ण मेवाड़ की अधिष्ठात्री देवी है। लोगों की मान्यता है कि देवी के इस दरवार में आकर लकवा के रोगी पूर्ण रूप से ठीक हो जाते हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि देवी हर महीने दो या तीन बार स्वयं अग्नि से स्नान करती है, स्वतः जाग्रत हुई इस अग्नि में मां की चुनरी, धागे सभी जलकर भष्म हो जाते हैं।
लकवा के रोगियों के अलावा यहाँ निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना लिए आते हैं और अपनी झोली भर जाने पर माता के इस मंदिर में झूला चढ़ाते हैं, माता के इस मंदिर में त्रिसूल चढाने की परंपरा भी काफी पुरानी है, साथ ही यहां लकवा से मुक्ति पाए भक्त चांदी और लकड़ी के अंग भी मां के दरवार में भेंट करते हैं।
अग्नि के कारण नहीं बन पाया मंदिर
इस स्थान पर मां का दरवार एक खुले चौक में ही स्थित है कहा जाता है कि मां के स्नान के लिए प्रक्कत होने वाली अग्नि के कारण यहां कोई मंदिर नहीं बनाया जा सका है।मां के इस स्थान का इतिहास कितना पुराना है इसके बारे में कोई नहीं जानता, हां लोग इतना ज़रूर कहते हैं कि इस स्थान पर पहले संत महात्मा तपस्या किया करते थे धीरे-धीरे यहां गांव वालों का आना हुआ और यह स्थान आस्था का केंद्र बनता गया।
अरावली पर्वत पर विराजी है माँ
मां झड़ाना का यह स्थान उदयपुर शहर से 60 किमी. दूर कुराबड- बम्बोरा मार्ग पर अरावली पर्वत माला के बेच स्थित है,यह स्थान मेवाड़ के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है।
राजस्थान के उदयपुर जिले में भी एक ऐसा ही स्थान है जहां शक्ति स्वरूप मां झड़ाना माता के रूप में विद्यमान है जो कि राजपूत और भील समुदाय के साथ-साथ सम्पूर्ण मेवाड़ की अधिष्ठात्री देवी है। लोगों की मान्यता है कि देवी के इस दरवार में आकर लकवा के रोगी पूर्ण रूप से ठीक हो जाते हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि देवी हर महीने दो या तीन बार स्वयं अग्नि से स्नान करती है, स्वतः जाग्रत हुई इस अग्नि में मां की चुनरी, धागे सभी जलकर भष्म हो जाते हैं।
लकवा के रोगियों के अलावा यहाँ निसंतान दंपत्ति भी संतान की कामना लिए आते हैं और अपनी झोली भर जाने पर माता के इस मंदिर में झूला चढ़ाते हैं, माता के इस मंदिर में त्रिसूल चढाने की परंपरा भी काफी पुरानी है, साथ ही यहां लकवा से मुक्ति पाए भक्त चांदी और लकड़ी के अंग भी मां के दरवार में भेंट करते हैं।
अग्नि के कारण नहीं बन पाया मंदिर
इस स्थान पर मां का दरवार एक खुले चौक में ही स्थित है कहा जाता है कि मां के स्नान के लिए प्रक्कत होने वाली अग्नि के कारण यहां कोई मंदिर नहीं बनाया जा सका है।मां के इस स्थान का इतिहास कितना पुराना है इसके बारे में कोई नहीं जानता, हां लोग इतना ज़रूर कहते हैं कि इस स्थान पर पहले संत महात्मा तपस्या किया करते थे धीरे-धीरे यहां गांव वालों का आना हुआ और यह स्थान आस्था का केंद्र बनता गया।
अरावली पर्वत पर विराजी है माँ
मां झड़ाना का यह स्थान उदयपुर शहर से 60 किमी. दूर कुराबड- बम्बोरा मार्ग पर अरावली पर्वत माला के बेच स्थित है,यह स्थान मेवाड़ के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है।
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