मौत के बाद आदमी भूत-प्रेत, ड्रेकुला या जॉम्बी बन जाता है, इस तरह के कई कहानी किस्से मशहूर हैं। फिर भी इंडोनेशिया के टोराजा गांव के आदिवासियों की ये परंपरा देखकर यकीन नहीं होता है। इसके अनुसार तो हर आदमी मरने के बाद जॉम्बी बन जाता है। इस गांव के कई लोगों के पास मुर्दों को चलाने की शक्ति है।
टोराजा गांव के अंतिम संस्कार के तौर तरीकों को देखकर लगता है कि यहां इसकी दो तरह की थ्योरी हैं, जिनसे यह परंपरा शुरू हुई। पहली तो ये की यहां माना जाता है व्यक्ति को मौत के स्थान पर नहीं बल्कि उसकी जन्मस्थली में दफनाया जाना चाहिए। ऐसे में पहले जो लोग अपने गांव से दूर हो जाते थे, उनके लिए शव को वापस अपने गांव पहुंचाना मुश्किल हो जाता था।
ऐसे में मरने वालों को चलाया जाता था, जिससे कि वे खुद चलकर अपने गांव पहुंच जाएं। इसलिए उस दौर में बिना किसी भावना या प्रतिक्रिया जाहिर किए किसी को चलते देखे जाना अनोखी बात नहीं हुआ करती थी। कहते हैं कि अगर कोई पैदल जा रहे इन शवों से बात कर लेता था तो वे गिर जाते थे और आगे का सफर नहीं कर पाते थे। यह सब सुनकर ही डर लगता है।
टोराजा के जॉम्बीज की दूसरी थ्योरी भी इतनी ही रोचक है। इसके अनुसार यहां के गांव वाले मानते हैं कि मौत एक लंबी प्रक्रिया है। मरीज को इसके गुजरने में कई साल का वक्त लग जाता है। इसके बाद ही उसे मौत के बाद की जिंदगी हासिल होती है। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए महंगी व्यवस्थाएं की जाती हैं, जिसके की मरने वाले का ये सफर आसानी से पूरा हो सके।
जो लोग इतनी हैसियत नहीं रखते, वे लोग पैसा जमा होने तक के लिए टेंपरेरी ताबूत इस्तेमाल करते हैं। पैसे की व्यवस्था होने पर परमानेंट ताबूत खरीदा जाता है। इसके बाद शव को पुराने ताबूत से खुद उठकर चलते हुए नए ताबूत में प्रवेश करना होता है। ये बात भी अविश्वसनीय लगती है।
इस तस्वीर में भी महिला नाममात्र सहारे से खड़ी है। कुछ लोग बहस करते हैं कि ये महिला बीमार होगी लेकिन मरी नहीं होगी। वैसे अब ये रिवाज खत्म हो रहा है। फिर भी कुछ लोग दावा करते हैं कि उनके पास ये शक्ति है। इसका प्रदर्शन करने के लिए वे जानवरों की बलि चढ़ाते हैं। सिर धड़ से जुदा होने के बाद भी जानवर दस मिनट तक चलता है।
टोराजा गांव के अंतिम संस्कार के तौर तरीकों को देखकर लगता है कि यहां इसकी दो तरह की थ्योरी हैं, जिनसे यह परंपरा शुरू हुई। पहली तो ये की यहां माना जाता है व्यक्ति को मौत के स्थान पर नहीं बल्कि उसकी जन्मस्थली में दफनाया जाना चाहिए। ऐसे में पहले जो लोग अपने गांव से दूर हो जाते थे, उनके लिए शव को वापस अपने गांव पहुंचाना मुश्किल हो जाता था।
ऐसे में मरने वालों को चलाया जाता था, जिससे कि वे खुद चलकर अपने गांव पहुंच जाएं। इसलिए उस दौर में बिना किसी भावना या प्रतिक्रिया जाहिर किए किसी को चलते देखे जाना अनोखी बात नहीं हुआ करती थी। कहते हैं कि अगर कोई पैदल जा रहे इन शवों से बात कर लेता था तो वे गिर जाते थे और आगे का सफर नहीं कर पाते थे। यह सब सुनकर ही डर लगता है।
टोराजा के जॉम्बीज की दूसरी थ्योरी भी इतनी ही रोचक है। इसके अनुसार यहां के गांव वाले मानते हैं कि मौत एक लंबी प्रक्रिया है। मरीज को इसके गुजरने में कई साल का वक्त लग जाता है। इसके बाद ही उसे मौत के बाद की जिंदगी हासिल होती है। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए महंगी व्यवस्थाएं की जाती हैं, जिसके की मरने वाले का ये सफर आसानी से पूरा हो सके।
जो लोग इतनी हैसियत नहीं रखते, वे लोग पैसा जमा होने तक के लिए टेंपरेरी ताबूत इस्तेमाल करते हैं। पैसे की व्यवस्था होने पर परमानेंट ताबूत खरीदा जाता है। इसके बाद शव को पुराने ताबूत से खुद उठकर चलते हुए नए ताबूत में प्रवेश करना होता है। ये बात भी अविश्वसनीय लगती है।
इस तस्वीर में भी महिला नाममात्र सहारे से खड़ी है। कुछ लोग बहस करते हैं कि ये महिला बीमार होगी लेकिन मरी नहीं होगी। वैसे अब ये रिवाज खत्म हो रहा है। फिर भी कुछ लोग दावा करते हैं कि उनके पास ये शक्ति है। इसका प्रदर्शन करने के लिए वे जानवरों की बलि चढ़ाते हैं। सिर धड़ से जुदा होने के बाद भी जानवर दस मिनट तक चलता है।
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