वैदिक सूक्तियाँ
अहं वृणे सुमतिं विश्ववाराम्।
मुझे लोकहितकारी सुमति प्राप्त हो।
(अथर्ववेदः 7.15.1)
यन्ति प्रमादतन्द्राः।
पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं।
(अथर्ववेदः 20.18.3)
इच्छन्ति देवाः सुन्वन्तं न स्वप्नाय स्पृहयन्ति।
देवता पुरुषार्थी को चाहते हैं आलसी को नहीं।
(अथर्ववेदः 20.18.3)
विश्वऽदानीं सुमनसः स्याम्।
हम सदा प्रसन्नचित्त रहें।
(ऋग्वेदः 6.52.5)
यत्रा मतिर्विद्यते पूत बन्धनी।
जहाँ पवित्र बुद्धि होती है, वहाँ सारी कामनाएँ सिद्ध होती हैं।
(ऋग्वेदः 5.44.9)
वृणते दस्ममार्यां अग्निं होतारमध धीरजायत।
जो ईश्वर की उपासना करते हैं, उन्हें सदबुद्धि प्राप्त होती है।
(ऋग्वेदः 10.11.4)
ऊर्ध्वां दधानः शुचिपेशसं धियम्।
विद्वान अपनी बुद्धि को उत्तम कार्यों में लगाते हैं।
(ऋग्वेदः 1.144.1)
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