एक बेहतरीन बोध कथा
एक मनोवैज्ञानिक स्ट्रेस मॅनेजमेंट के बारे में, अपने दर्शकों से मुखातिब था..
उसने पानी से भरा एक ग्लास उठाया..,
सभी ने समझा की अब "आधा खाली या आधा भरा है".. यही पुछा और समझाया जाएगा..
मगर मनोवैज्ञानिक ने पूछा..
कितना वजन होगा इस ग्लास में भरे पानी का..??
सभी ने.. 300 से 400 ग्राम तक अंदाज बताया..
मनोवैज्ञानिक ने कहा.. कुछ भी वजन मान लो.. फर्क नहीं पड़ता...
फर्क इस बात का पड़ता है.. की मैं कितने देर तक इसे उठाए रखता हूँ. ।
अगर मैं इस ग्लास को एक मिनट तक उठाए रखता हूँ.. तो क्या होगा?
शायद कुछ भी नहीं..
अगर मैं इस ग्लास को एक घंटे तक उठाए रखता हूँ.. तो क्या होगा?
मेरे हाथ में दर्द होने लगे.. और शायद अकड़ भी जाए.
अब अगर मैं इस ग्लास को एक दिन तक उठाए रखता हूँ.. तो ? ?
मेरा हाथ.. यकीनऩ, बेहद दर्दनाक हालत में होगा, हाथ पॅरालाईज भी हो सकता है और मैं हाथ को हिलाने तक में असमर्थ हो जाऊंगा..
लेकिन.. इन तीनों परिस्थिति में ग्लास के पानी का वजन न कम हुआ.. न ज्यादा.
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चिंता और दुःख का भी जीवन में यही परिणाम है।
यदि आप अपने मन में इन्हें एक मिनट के लिए रखेंगे..
आप पर कोई दुष्परिणाम नहीं होगा..
यदि आप अपने मन में इन्हें एक घंटे के लिए रखेंगे..
आप दर्द और परेशानी महसूस करने लगोगे..
लेकिन यदि आप अपने मन में इन्हें पुरा पुरा दिन बिठाए रखेंगे..
ये चिंता और दुःख..
हमारा जीना हराम कर देगा..
हमें पॅरालाईज कर के कुछ भी सोचने - समझने में हमें असमर्थ कर देगा..
और याद रहे..
इन तीनों परिस्थितियों में चिंता और दुःख.. जितना था.., उतना ही रहेगा..
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इसलिए.. यदि हो सके तो..
अपने चिंता और दुःख से भरे "ग्लास" को...
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एक मिनट के बाद..
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नीचे रखना न भुलें..