किसकी पत्नी थी जोधाबाई

जयपुर। जोधाबाई और भारत के मुगल शासक अकबर की प्रेमकथा देश की सबसे बड़ी प्रेम कहानियों में गिनी जाती है लेकिन ये दोनों पति-पत्नी तो क्या प्रेमी तक नहीं थी। दरअसल इतिहासकारों और कुछ गाइड्स की गलतफहमी की वजह से अकबर का नाम उन्हीं की बहु जोधाबाई के साथ जोड़ दिया गया। दरअसल जोधाबाई उनके बेटे सलीम उर्फ जहांगीर की पत्नी थी, लेकिन पिछली एक सदी में टूरिस्ट गाइड्स की वजह से उनका नाम अकबर के साथ जोड़ दिया गया। न तो जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ हुआ था और न ही विदाई के समय जोधाबाई को दिल्ली भेजा गया था। आखिरकार प्रश्न यह उठता है कि फिर अकबर का विवाह किससे रचाया गया था?
किससे हुई थी अकबर की शादी: राजस्थान के इतिहासकारों का कहना है कि आमेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूत, राजा भारमल की बेटी हरका उर्फ हरकू बाई से अकबर की शादी हुई थी। देश की सत्ता पर मुगलों के काबिज होने के करीब छह साल बाद यानी 1562 में अकबर एक बार अपने लाव-लश्कर के साथ अजमेर स्थित दरगाह शरीफ से लौट रहे थे। रास्ते में उसकी मुलाकात राजा भारमल से हुई। भारमल ने उनसे शिकायत की, मेवात का मुगल हाकिम (गर्वनर) उन्हें आए दिन परेशान करता रहता है। उनसे मनमाना चौथ(कर) वसूलता है।
अकबर ने रखी दो शर्तें: कहते हैं अकबर ने भारमल को इससे मुक्ति दिलाने के लिए दो शर्तें रखीं। पहली, राजा भारमल स्वयं उनके पास आकर मिन्नत करें यानी नतमस्तक हो। दूसरा वे अपनी बेटी हरका की शादी अकबर से कर दें। उस समय अकबर की उम्र महज बीस साल थी। कुछ इतिहासकार ऐसा भी बताते हैं कि अकबर की हरका से पहले मुलाकात हो चुकी थी और उसकी खूबसूरती का कायल होकर दिल दे बैठा था। कर से राहत पाने और अपना राजपाट ठीक से चलाने के लिए भारमल ने अपनी बेटी हरका की शादी अकबर से करवा दी। हालांकि हरका से शादी के बाद अकबर ने कई और राजपूत राजकुमारियों से शादी रचाई। बीकानेर के राजा की बेटी, जोधपुर की राजकुमारी से, रोहिल्ला राजकुमारी रुकमावती से भी।

सलीम की पत्नी का नाम था जोधाबाई: राजपूत घराने में शादी रचाने की परंपरा अकबर के बेटे सलीम उर्फ जहांगीर ने भी जारी रखी। खुद अकबर ने ही अपने बेटे सलीम की शादी जोधपुर के राजघराने की बेटी जगत गोसाई से बड़ी धूम-धाम से कराई थी। जोधपुर की राजकुमारी होने की वजह से उनका नाम जोधाबाई रखा गया और यह काफी प्रचलित हुआ। जोधाबाई जनाना ड्योढ़ी में काफी प्रभावशाली रही और उनके नाम पर जनाना ड्योढ़ी का नाम जोधा महल रखा गया। ऐसा नहीं है कि हिंदुस्तान में अकबर पहला मुस्लिम राजा था जिसने हिंदु लड़कियों से शादी रचाई थी। उससे पहले अलाउद्दीन खिलजी, दक्षिण के बाहमनी राजा फिरोज शाह, गुजरात के मुहम्मद शाह सहित कई मुस्लिम राजाओं ने हिंदु रानियों से विवाह किया था। लेकिन अकबर ने हिंदु (खासतौर से राजपूत) राजघरानों में शादी को अपनी 'राज-नीति बनाया था।
जोधा महल से शुरू हुई गलतफहमी: जानकारों का मानना है कि इस गड़बड़ झाले के पीछे फतेहपुर सीकरी के गाइड जिम्मेदार हैं। दरअसल फतेहपुर सीकरी (आगरा के करीब वो शहर जो कभी अकबर की राजधानी हुआ करता था) में अकबर का किला है। इस किले का एक हिस्सा जोधा महल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस महल में मुगल राजाओं की हिंदु रानियां रहा करती थीं। जहांगीर की पत्नी जोधा भी इसी महल में रहती थी और उन्हीं के नाम पर इस महल का नाम जोधा महल पड़ गया। फिर क्या था यहां के गाइड्स ने जोधा को अकबर की पत्नी बताना शुरू कर दिया।
अकबर के साथ जोधा का नाम जोडऩे में फिल्मों की भी रही भूमिका: जोधा अकबर का नाम जोडऩे में फिल्मों की भी भूमिका रही। मुगले आजम फिल्म में मुगल राजा अकबर की पत्नी का नाम जोधाबाई बताया गया है। इसके बाद से जन मानस में जोधा-अकबर एक जोड़ी के रूप में प्रचलित हुए। 2008 में आशुतोष गोवारीकर ने जोधा अकबर फिल्म बनाई। जिसमें जोधा अकबर की प्रेम कथा को दर्शाया गया। इस फिल्म का राजस्थान में काफी विरोध हुआ। राजपूत इतिहासकारों का कहना था कि आमेर के राजा भारमल की बेटी का नाम हरका था न कि जोधा। ऐसे में अपनी ही पुत्रवधु के साथ नाम जोड़कर फिल्म बनाना पूरी तरह गलत है। जयपुर व जोधपुर में इस फिल्म के विरोध में कई प्रदर्शन भी हुए।

क्या जोधाबाई ही थी पानबाई: जोधाबाई के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। अकबर का विवाह दीवान वीरमल की बेटी पानबाई के साथ रचाया गया था। दीवान वीरमल का पिता खाजू खां अकबर की सेना का मुखिया था। किसी बड़ी गलती के कारण अकबर ने खाजू खां को जेल में डालकर खोड़ा बेड़ी पहना दी और फांसी का हुक्म दिया। मौका पाकर खाजू खां खोड़ा बेड़ी तोड़ जेल से भाग गया और सपरिवार जयपुर आ पगड़ी धारणकर शाह बन गया। खाजू खां का बेटा वीरमल बड़ा ही तेज और होनहार था, सो दीवान बना लिया गया। यह भेद बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था।
दीवान वीरमल की एक बेटी थी पानबाई। जोधाबाई और पानबाई हमउम्र थी और दिखने में भी एक जैसी ही थीं। मेड़ता के राव दूदा राजा मानसिंह के सहयोगी और परामर्शक रहे। राव दूदा के परामर्श से पानबाई को जोधपुर भेज दिया गया। इसके साथ हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के पिता-माता बनाकर भेजा गया। इधर, जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर दिया गया और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया। इस प्रकार जोधाबाई उर्फ जगत कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ हो गया। उधर, पानबाई उर्फ जोधाबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया गया। अकबर व पानबाई उर्फ जोधाबाई दंपति की संतान सलीम हुए, जिसे इतिहास जहांगीर के नाम से जनता है।

साम्राज्य विस्तार के लिए अपनाई शादी की राजनीति: अकबर शादियों के कारण एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। अकबर ने हिंदु (खासतौर से राजपूत) राजघराने में शादी को अपनी 'राज-नीति बनाया था। इन शादियों से अकबर एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। इन शादियों से अकबर एक बड़े साम्राज्य को एक सूत्र में बांधने में कामयाब हो पाया। शादी करने से एक तो इन राजपूत राजाओं से रिश्ते बन जाते थे। यानी उनके विद्रोह की संभावना लगभग ना के बराबर हो जाती थी। राजस्थान के छोटे-छोटे राजपूत राजा दिल्ली या आगरा के उन राजाओं को मुंह तोड़ जवाब देते थे जो उनकी सरजमीं की तरफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत करते थे। दूसरा ये कि राजपूत अपनी वफादारी के लिए जाने जाते थे। आड़े वक्त में वहीं अकबर का साथ देते थे।
पिता ने दिया हिंदुस्तान पर राज करने का मूल मंत्र: मरते समय अकबर के अब्बा, हुमायूं ने उसे हिंदुस्तान में राज करने का मूल-मंत्र दिया था। उसने अकबर को सीख दी थी कि,"राजपूत कौम का हमेशा ध्यान रखना, क्योंकि ना तो वे (राजपूत) कभी कानून तोड़ते हैं और ना ही कभी आज्ञा का उल्लंघन करते है। वे तो सिर्फ आज्ञा का पालन करते है और अपना (वफादारी का) फर्ज निभाते हैं। "गुजरात को कूच करते वक्त तो अकबर ने आमेर के राजा मान सिंह को ही आगरा (सत्ता का केंद्र बिंदु) की गद्दी का रखवाला घोषित कर दिया था। यहां तक की मानसिंह को और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों को हरम (राजघराने में रानियों व अन्य महिलाओं के रहने की जगह) की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जो कभी भी किसी मर्द के हवाले नहीं की जाती थी। दूर-दराज के कई विद्रोह कुचलने में भी राजपूत राजाओं ने अहम भूमिका निभाई थी।
अकबर करते थे महिलाओं का सम्मान: भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा राजा होगा जो किसी भी मायने में अकबर का मुकाबला कर सकता है। अकबर में ही हिंदुस्तान को एक धागे में पिरोकर रखने की क्षमता थी। अकबर ने कुछ ऐसे कदम उठाए जो आनी वाली पीढ़ी, राजाओं और व्यवस्था के लिए मील के पत्थर साबित हुए। जैसे धर्मनिरपेक्षता, महिलाओं को बराबरी का अधिकार, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था, मनसबदारी, भूमि सुधार के लिए पहल की। अकबर को करीब से पढऩे और समझने वाले लोग उसे दैवीय शक्ति से परिपूर्ण मानते हैं। ये बात अकबर के नवरत्न या दरबारी नहीं बल्कि आज के जमाने के इतिहासकार तक मानते हैं। अकबर पर लिखी उनकी किताबों को 'आईन-ए-अकबर' से किसी भी मायने में कम नहीं समझा जाता है।


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