Religious Thought 076
You have no caste. No duties bind you. Formless and free, Beyond the reach of the senses, The witness of all things. So be happy!
- Ashtavakra Gita 1:5
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As rain penetrates an improperly shingled roof, so passion overwhelms a confused mind.
- Buddha
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Observe how the life of this world deceives those around you. It lures them into the traps of vanity, wealth, and fame, and exalts them above others. This splendor blinds them, and they are lost forever in illusion. But then in one instant, life deals the blow of death, and all is gone, and with the Beguiler it stands laughing at their sad end. So overcome your egos that you may be saved from the snares that devoured kings and paupers alike.
- Sheikh Abdul Qadir Jillani, "Fayuz E Yazdani"
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Thou who hast given so much to me, give me one more thinga grateful heart!
- George Herbert
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When asked by his father, Joshua b. Levi, what he had seen in a trance, Joseph replied: "I saw a world upside down, the upper below and the lower above." Whereupon Joshua said: "You saw a well-ordered world!"
- Talmud: Pesahim, 50a
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पठान है यार
एक पठान अपने कंधे पे तोता बैठा के बाज़ार से जा रहा था
किसी आदमी ने पूछा "भाई ये कौन सा जानवर है "
तोता बोला " ये पठान है यार "
किसी आदमी ने पूछा "भाई ये कौन सा जानवर है "
तोता बोला " ये पठान है यार "
जिन्नों द्वारा बनाई गई पीर की दरगाह
जिन्नों द्वारा बनाई गई पीर की दरगाह
यह मजार उत्तर प्रदेश के जिला मुज़फ़्फ़रनगर के गाँव सोरम में साग्रीब बाबा की मजार है जिसे लोग सोरम साग्रीब पीर और झाड़ू वाले पीर बाबा के नाम से भी जानते हैं।
ग्राम वासियों का कहना है कि 600 साल पुराने इस पीर को एक ही रात में जिन्नातों द्वारा बनाया गया था।
देश के कोने कोने से सभी धर्मों के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन्नत मांगने आते हैं, यहाँ झाड़ू चढ़ाई जाती है। साग्रीब पीरबाबा की मजार पर दर्शन करने रोजाना हजारो लोग आते हैं।
मान्यता है कि इस इमारत का निर्माण इन्सानों द्वारा नहीं बल्कि अब से 600 साल पहले एक ही रात को साग्रीब बाबा के हुक्म से जिन्नादों ने किया था।
कई सौ वर्ष पहले इस गाँव में एक फकीर रहा करता था जिसे यहाँ के ग्रामीण साग्रीब के नाम से से जानते थे। लोगों का कहना है कि साग्रीब बाबा दीन-दुखियों की सेवा करते थे और खुदा के सच्चे रहबर थे, लोग उन्हें खुदा का फ़रिश्ता मानते थे। साग्रीब बाबा के पास रहने के लिए कोई भी घर आदि नहीं था इसलिए एक दिन खुदा ने ज़मीन पर अपने फरिश्ते को भेज कर साग्रीब बाबा के रहने के लिए इमारत बनाने को कहा। खुदा के फरिश्तों ने जिन्नादों को एक अदभुत इमारत बनाने को कहा और जिन्नादों ने एक ही रात में बहुत सुन्दर इमारत बनाकर खड़ी कर दी।
अगले दिन सुबह जब ग्रामीणों ने देखा कि गाँव के पास तालाब के किनारे जंगल में एक बेहद खूबसूरत इमारत खड़ी है, इस इमारत में खास बात यह है कि बाहर से देखने पर इमारत के तीन गुम्बद दिखाई देते हैं लेकिन अन्दर से देखने पर एक ही गुम्बद दिखता है।
इस इमारत में साग्रीब बाबा के साथ उनके भांजे की भी मजार है। इस मजार पर देश के कोने कोने से सभी धर्मो के श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन्नत मांगने आते हैं। यहाँ प्रसाद के रूप में इलाईची दाना, पतासे व झाड़ू चढ़ाई जाती है। पीर की मान्यता है कि किसी भी मनुष्य को कोर्ट कचहरी से बचना हो या फिर पारिवारिक विवाद या घरो में खटमल हो गए हो, या फिर किसी के शरीर पर मस्से हो गए हों तो कोई भी यहाँ सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
राहगीर का जवाब
राहगीर का जवाब
एक बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लायर्ड जॉर्ज एक युवा सांसद के साथ कार में बैठकर कहीं जा रहे थे। वे रास्ता भटक गए। जॉर्ज सांसद से बोले, 'यहां से आगे जाने का रास्ता मुझे मालूम नहीं है। किसी राहगीर से आगे का रास्ता पूछना होगा।' लेकिन काफी देर तक उन्हें वहां कोई नजर नहीं आया। यह देखकर जॉर्ज सांसद से बोले, 'यहां तो कोई नजर ही नहीं आ रहा। हम आगे कैसे जाएं? क्या तुम्हें आगे के रास्ते की कोई जानकारी है?' सांसद बोला, 'सर, मुझे भी इस रास्ते की कोई जानकारी नहीं है।' काफी देर बाद एक व्यक्ति आता हुआ दिखा। उसे आते देखकर जॉर्ज उसके पास अपनी गाड़ी ले जाकर बोले, 'महाशय, क्या आप बता सकते हैं कि हम इस वक्त कहां हैं?' यह सुनकर राहगीर जॉर्ज को देखते हुए बोला, 'महोदय, आप इस वक्त अपनी गाड़ी में हैं।' यह कहकर वह आगे बढ़ गया। जॉर्ज सांसद से बोले, 'यह बड़ा ही हाजिरजवाब था। हमारे मंत्रियों को पार्लियामेंट में पूछे गए प्रश्नों का जवाब इस नागरिक के समान चतुराई से देना चाहिए। इसके उत्तर में तीन गुण हैं। पहला यह कि उत्तर संक्षिप्त है। दूसरा यह कि उत्तर तथ्य से पूर्ण और सही है और तीसरा खास गुण यह है कि प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति ठीक उतनी ही जानकारी पाता है कि जितनी कि उत्तर पाने के पहले उसे थी।' जॉर्ज की यह बात सुनकर सांसद दंग रह गया। वह मुस्कराते हुए बोला, 'आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। मैं भी ऐसी हाजिरजवाबी और कुशलता अपने अंदर लाने का प्रयास करूंगा।'
एक बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लायर्ड जॉर्ज एक युवा सांसद के साथ कार में बैठकर कहीं जा रहे थे। वे रास्ता भटक गए। जॉर्ज सांसद से बोले, 'यहां से आगे जाने का रास्ता मुझे मालूम नहीं है। किसी राहगीर से आगे का रास्ता पूछना होगा।' लेकिन काफी देर तक उन्हें वहां कोई नजर नहीं आया। यह देखकर जॉर्ज सांसद से बोले, 'यहां तो कोई नजर ही नहीं आ रहा। हम आगे कैसे जाएं? क्या तुम्हें आगे के रास्ते की कोई जानकारी है?' सांसद बोला, 'सर, मुझे भी इस रास्ते की कोई जानकारी नहीं है।' काफी देर बाद एक व्यक्ति आता हुआ दिखा। उसे आते देखकर जॉर्ज उसके पास अपनी गाड़ी ले जाकर बोले, 'महाशय, क्या आप बता सकते हैं कि हम इस वक्त कहां हैं?' यह सुनकर राहगीर जॉर्ज को देखते हुए बोला, 'महोदय, आप इस वक्त अपनी गाड़ी में हैं।' यह कहकर वह आगे बढ़ गया। जॉर्ज सांसद से बोले, 'यह बड़ा ही हाजिरजवाब था। हमारे मंत्रियों को पार्लियामेंट में पूछे गए प्रश्नों का जवाब इस नागरिक के समान चतुराई से देना चाहिए। इसके उत्तर में तीन गुण हैं। पहला यह कि उत्तर संक्षिप्त है। दूसरा यह कि उत्तर तथ्य से पूर्ण और सही है और तीसरा खास गुण यह है कि प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति ठीक उतनी ही जानकारी पाता है कि जितनी कि उत्तर पाने के पहले उसे थी।' जॉर्ज की यह बात सुनकर सांसद दंग रह गया। वह मुस्कराते हुए बोला, 'आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। मैं भी ऐसी हाजिरजवाबी और कुशलता अपने अंदर लाने का प्रयास करूंगा।'
भक्ति का सुख
भक्ति का सुख
संत तिरुवल्लुवर की सभा में आए एक श्रद्धालु ने उनसे पूछा-महाराज, मैं हर रोज प्रभु का भजन-कीर्तन करता हूं, ध्यान भी लगाता हूं पर पता नहीं क्यों कोई खास सुख नहीं मिला। सुनता हूं कि ईश्वरोपासना में अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है। पर मुझे क्यों नहीं हो रही? संत ने कहा- तुम आज और कल व्रत रखना और परसों यहीं आकर मेरे सामने व्रत खोलना। फिर इस बारे में विस्तार से चर्चा होगी।
उस व्यक्ति ने दो दिनों तक कुछ नहीं खाया। इस तरह व्रत रखने का यह उसका पहला अनुभव था। वह काफी परेशान हो गया। लेकिन उसने संत को वचन दिया था। इसलिए उसने अपना जी कड़ा कर रखा था। अगले दिन सुबह होते ही वह संत के पास भागता हुआ पहुंचा। लेकिन संत उस समय ध्यानमग्न थे। इसलिए वह कुछ नहीं कह पाया। वह वहीं बैठकर ध्यान टूटने की प्रतीक्षा करने लगा।
वह कुछ खाने के लिए तड़प रहा था। दोपहर में संत विश्राम के लिए कुटिया में चले गए। उस व्यक्ति का धैर्य जवाब दे रहा था। शाम होते ही जब संत बाहर निकले तो वह उनके चरणों में गिर पड़ा। फिर गिड़गिड़ाते हुए बोला- महाराज, अब मेरा व्रत तुड़वाइए नहीं तो मेरे प्राण निकल जाएंगे। संत ने तुरंत उसके लिए भोजन मंगवाया। जब वह खाने लगा तो संत ने पूछा- कहो, खाना कैसा लग रहा है? वह बोला- महाराज, ऐसा सुख तो आज तक नहीं मिला। तब संत ने समझाया-इसी भूख जैसी तड़प जिस दिन तुम ईश्वर के लिए पैदा कर लोगे तुम्हें भक्ति में ऐसा ही अद्भुत सुख मिलने लगेगा।
संत तिरुवल्लुवर की सभा में आए एक श्रद्धालु ने उनसे पूछा-महाराज, मैं हर रोज प्रभु का भजन-कीर्तन करता हूं, ध्यान भी लगाता हूं पर पता नहीं क्यों कोई खास सुख नहीं मिला। सुनता हूं कि ईश्वरोपासना में अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है। पर मुझे क्यों नहीं हो रही? संत ने कहा- तुम आज और कल व्रत रखना और परसों यहीं आकर मेरे सामने व्रत खोलना। फिर इस बारे में विस्तार से चर्चा होगी।
उस व्यक्ति ने दो दिनों तक कुछ नहीं खाया। इस तरह व्रत रखने का यह उसका पहला अनुभव था। वह काफी परेशान हो गया। लेकिन उसने संत को वचन दिया था। इसलिए उसने अपना जी कड़ा कर रखा था। अगले दिन सुबह होते ही वह संत के पास भागता हुआ पहुंचा। लेकिन संत उस समय ध्यानमग्न थे। इसलिए वह कुछ नहीं कह पाया। वह वहीं बैठकर ध्यान टूटने की प्रतीक्षा करने लगा।
वह कुछ खाने के लिए तड़प रहा था। दोपहर में संत विश्राम के लिए कुटिया में चले गए। उस व्यक्ति का धैर्य जवाब दे रहा था। शाम होते ही जब संत बाहर निकले तो वह उनके चरणों में गिर पड़ा। फिर गिड़गिड़ाते हुए बोला- महाराज, अब मेरा व्रत तुड़वाइए नहीं तो मेरे प्राण निकल जाएंगे। संत ने तुरंत उसके लिए भोजन मंगवाया। जब वह खाने लगा तो संत ने पूछा- कहो, खाना कैसा लग रहा है? वह बोला- महाराज, ऐसा सुख तो आज तक नहीं मिला। तब संत ने समझाया-इसी भूख जैसी तड़प जिस दिन तुम ईश्वर के लिए पैदा कर लोगे तुम्हें भक्ति में ऐसा ही अद्भुत सुख मिलने लगेगा।
उपभोक्ता सामग्री पैकिंग
उपभोक्ता सामग्री पैकिंग
उपभोक्ताओं को धोखा देने के लिये उत्पादों की दर बढ़ाने की बजाय कम्पनियाँ पुराने मूल्य रखकर ही सामग्री का वजन घटा देती थी। इससे उपभोक्ता को कम सामग्री मिलती थी।
उत्पाद की मात्रा से छेड़छाड़ रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पैकेज्ड कमोडिटी एक्ट प्रभावी किया है। इसके तहत कंपनियों को निर्धारित वजन में ही सामग्री विक्रय करनी होगी। आगामी 1 नवंबर से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी।
बाजार में मिलने वाली सभी पैकिंग खाद्य सामग्री अब 25, 50, 100 ग्राम और एक, दो, पांच और दस किलो वजन में ही मिलेगी।
एक नवंबर से लागू होने वाले लीगल मीटरोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटी) एक्ट-2011 के नियमों की पालना की जाएगी। उत्पादों की मात्रा से छेड़छाड़ रोकने के लिए केंद्र सरकार ने यह एक्ट लागू किया है।
एक्ट के तहत अब कन्पनियाँ बिस्कुट, ब्रेड, तेल, दाल, घी दूध पाउडर, नमक, साबुन सहित सारी वस्तुओं की पैकिंग 95, 110, 245, 950 ग्राम जैसे वजन में नहीं कर सकेंगी।
इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि अब अधिकतम खुदरा मूल्य पचास पैसे के गुणांक में ही रखना होगा।
खुदरा व्यापारियों का कहना है कि उनके पास पुराने वजन का स्टॉक में पड़ा है। जब तक कम्पनियाँ नए एक्ट के अनुसार माल का वजन तय नहीं करेंगी, तब तक व्यापारी के हाथ में कुछ नहीं है। एक्ट की पालना के लिए सरकार को व्यापारियों की बजाय कंपनियों पर सख्ती करनी चाहिए।
सभी कंपनियों को स्टैंडर्ड पैकिंग में ही सामग्री विक्रय करनी होगी। इससे उपभोक्ताओं को फायदा होगा।
फूल और कांटे
फूल और कांटे
हकीम लुकमान बड़े तत्वज्ञानी थे। बचपन में वह गुलाम थे। वह दिन-रात मालिक की सेवा में लगे रहते थे। उनके मालिक ने एक दिन लुकमान को जान-बुझकर एक कड़वी ककड़ी खाने को दी। मालिक ने सोचा था कि लुकमान इसे चखते ही फेंक देगा मगर वह पूरी ककड़ी बिना मुंह बनाए खा गए। उनके चेहरे के हाव-भाव से ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि ककड़ी उन्हें कड़वी लगी। मालिक ने पूछा, 'वह ककड़ी तो कड़वी थी, उसे तू पूरी खा कैसे गया?' लुकमान ने कहा, 'मेरे अच्छे मालिक! आप मुझे रोज ही खाने-पीने की कितनी चीजें देते हैं, उन्हीं के सहारे मेरा जीवन चल रहा है। आपने मुझे जब हमेशा इतनी सारी अच्छी वस्तुएं दीं और उन्हें मैंने स्वीकार कर अपना जीवन चलाया तो आज अगर कड़वी चीज आ गई, तो उसे भी स्वीकार क्यों न करता?'
लुकमान ने फिर कहा, 'मुझे तो आपकी बगिया में ही रहना है। मुझे तो आपके फूलों से भी उतना ही प्यार है, जितना कांटों से।' मालिक बड़ा उदार व समझदार था। वह सोचने लगा कि उस मालिक ने हमें जन्म दिया, हमारा पालन किया। उसने हमें इतने सुख में रखा तो अगर कभी-कभार विपत्तियां आ भी जाएं तो हमें उन्हें ईश्वर की कृपा मानकर ही कबूल करना चाहिए। फिर उसने लुकमान से कहा, 'तुमने मुझे सबक सिखाया है कि जो परमात्मा हमें तरह-तरह के सुख देता है उसके हाथ से अगर कभी दुख भी मिले तो उसे खुशी से स्वीकार करना चाहिए।' मालिक ने लुकमान का बड़ा सम्मान किया और उसी दिन उन्हें आजाद कर दिया।
India's amazing street art
These are not ordinary pictures; they are street-side murals in Indian cities.
Group Photo
Class Ki Group Photo Dekhte Huey Teacher Baccho Se Kahne Lagi Ki.
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Jab tum Log Bade Hoke ye deko ge to Kahoge,,
Ye Raju Hai Jo America Chala Gaya..!
Ye Chandu Hai Jo London Chala Gya..!
OR
Ye pappu Hai Jo Wahi Ka Wahi Reh Gya..!.
Pappu gusse se Bola: or Ye Humari Teachar Hai Jinka
dehant ho gya...
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Jab tum Log Bade Hoke ye deko ge to Kahoge,,
Ye Raju Hai Jo America Chala Gaya..!
Ye Chandu Hai Jo London Chala Gya..!
OR
Ye pappu Hai Jo Wahi Ka Wahi Reh Gya..!.
Pappu gusse se Bola: or Ye Humari Teachar Hai Jinka
dehant ho gya...
Travel Best-Seller
Ludivico de Varthema was an Italian adventurer who traveled to the east of the Mediterranean Sea extensively and chronicled his journeys.
In pictures: Itinerary, first 'travel best-seller' on India
A copy of a seminal 16th Century work on India is on display at the National Archives building in Delhi. Organisers say Itinerary - by Italian adventure traveller Ludovico De Varthema - is the first "best-selling" book written on India. (Illustrations: Courtesy Italian Cultural Centre and National Archives of India)