एलियंस की खोज के लिए वेबसाइट लॉंच
क्या इस ब्रह्माण्ड में मनुष्यों के अलावा एलियन या दूसरे प्राणी भी रहते हैं इस बात को लेकर कई वर्षों से विवाद बना हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि एलियन होते हैं तो कुछ लोग इसे कोरी कल्पना क़रार देतें हैं। यहां तक की वैज्ञानिकों की राय भी इस मामले में बटी हुई है। लेकिन अब एलियन की खोज के लिए एक और पहल की गई है। एलियन की खोज में आम आदमी को शामिल करने के लिए एक वेबसाइट को लॉंच किया गया है।
अमरीकी शहर लॉस एंजेल्स में टेड( टेक्नोलोजी, इंटरटेनमेंट और डिज़ाइन) कॉंफ़्रेंस के दौरान ये वेबसाइट लॉंच की गई है जिसका नाम है 'सेटीलाइव डॉट ओआरजी'। ये वेबसाइट सेटी(सर्च फॉर एक्सट्राटेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) एलेन टेलिस्कोप के ज़रिए संचारित रेडियो तरंगों को सीधे प्रसारित करेगा। इसमें भाग लेने वालों को कहा जाएगा कि अगर उन्हें कोई भी असामान्य गतिविधि दिखे तो वे फ़ौरन इसकी जानकारी दें।
ऐसा माना जाता है कि इंसानों का दिमाग़ उन चीज़ो को भी देख सकता है जो कि शायद कोई स्वचालित मशीन नहीं देख सकता। इस वेबासाइट को लॉंच किए जाने का मुख्य उद्देश्य ये है कि धरती पर रहने वाले आम आदमी भी अगर चाहे तो ब्रह्माण्ड में अपने किसी एलियन साथी को खोज में शामिल हो सकता है।
जिलियन टार्टर
इस परियोजना की निदेशक हैं डॉक्टर जिलियन टार्टर जिन्हें 2009 में टेड एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। डॉक्टर टार्टर ने अपना पूरा करियर एलियन की खोज में लगा दिया है। उनका मानना है कि इस वेबसाइट के लॉच होने से एलियन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों और दूसरे विशेषज्ञों को एक साथ आने का मौक़ा मिलेगा। डॉक्टर टार्टर के अनुसार ढेर सारे कार्यकर्ता होने के कारण उन तरंगों का विश्लेषण करना आसान हो जाएगा जिन पर अब तक ध्यान नहीं जा पाता था।
पिछले कुछ वर्षो में सेटी इंस्टीच्यूट को चलाना एक बड़ी समस्या बन गई थी और ये लोगों के चंदों पर निर्भर रहता है। हालाकि इस परियोजना को आर्थिक मदद देने वालों में पूर्व अंतरिक्ष यात्री बिल एंडर्स, साइ-फ़ाई के लेखक लैरी निवेन और हॉलीवुड की हीरोइन जोडी फॉस्टर जैसे कुछ बड़े नाम भी शामिल है। इससे पहले भी कई दूसरे वैज्ञानिक परियोजनाओं में आम लोगों के शामिल होने से काफ़ी लाभ हुए हैं।
मिसाल के तौर पर 'ज़ूनीवर्स' परियोजना इंटरनेट का सबसे बड़ा और सफल वैज्ञानिक परियोजना है जिसमें आम लोग शामिल हैं। ज़ूनीवर्स भी इस नई पहल का समर्थन कर रहा है।
अमरीकी शहर लॉस एंजेल्स में टेड( टेक्नोलोजी, इंटरटेनमेंट और डिज़ाइन) कॉंफ़्रेंस के दौरान ये वेबसाइट लॉंच की गई है जिसका नाम है 'सेटीलाइव डॉट ओआरजी'। ये वेबसाइट सेटी(सर्च फॉर एक्सट्राटेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) एलेन टेलिस्कोप के ज़रिए संचारित रेडियो तरंगों को सीधे प्रसारित करेगा। इसमें भाग लेने वालों को कहा जाएगा कि अगर उन्हें कोई भी असामान्य गतिविधि दिखे तो वे फ़ौरन इसकी जानकारी दें।
ऐसा माना जाता है कि इंसानों का दिमाग़ उन चीज़ो को भी देख सकता है जो कि शायद कोई स्वचालित मशीन नहीं देख सकता। इस वेबासाइट को लॉंच किए जाने का मुख्य उद्देश्य ये है कि धरती पर रहने वाले आम आदमी भी अगर चाहे तो ब्रह्माण्ड में अपने किसी एलियन साथी को खोज में शामिल हो सकता है।
जिलियन टार्टर
इस परियोजना की निदेशक हैं डॉक्टर जिलियन टार्टर जिन्हें 2009 में टेड एवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। डॉक्टर टार्टर ने अपना पूरा करियर एलियन की खोज में लगा दिया है। उनका मानना है कि इस वेबसाइट के लॉच होने से एलियन की खोज में जुटे वैज्ञानिकों और दूसरे विशेषज्ञों को एक साथ आने का मौक़ा मिलेगा। डॉक्टर टार्टर के अनुसार ढेर सारे कार्यकर्ता होने के कारण उन तरंगों का विश्लेषण करना आसान हो जाएगा जिन पर अब तक ध्यान नहीं जा पाता था।
पिछले कुछ वर्षो में सेटी इंस्टीच्यूट को चलाना एक बड़ी समस्या बन गई थी और ये लोगों के चंदों पर निर्भर रहता है। हालाकि इस परियोजना को आर्थिक मदद देने वालों में पूर्व अंतरिक्ष यात्री बिल एंडर्स, साइ-फ़ाई के लेखक लैरी निवेन और हॉलीवुड की हीरोइन जोडी फॉस्टर जैसे कुछ बड़े नाम भी शामिल है। इससे पहले भी कई दूसरे वैज्ञानिक परियोजनाओं में आम लोगों के शामिल होने से काफ़ी लाभ हुए हैं।
मिसाल के तौर पर 'ज़ूनीवर्स' परियोजना इंटरनेट का सबसे बड़ा और सफल वैज्ञानिक परियोजना है जिसमें आम लोग शामिल हैं। ज़ूनीवर्स भी इस नई पहल का समर्थन कर रहा है।
सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है
सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है।
परमात्मा मिलना उतना कठिन नहीं है जितना कि पावन सत्संग का मिलना कठिन है। यदि सत्संग के द्वारा परमात्मा की महिमा का पता न हो तो सम्भव है कि परमात्मा मिल जाय फिर भी उनकी पहचान न हो, उनके वास्तविक आनन्द से वंचिर रह जाओ। सच पूछो तो परमात्मा मिला हुआ ही है। उससे बिछुड़ना असम्भव है। फिर भी पावन सत्संग के अभाव में उस मिले हुए मालिक को कहीं दूर समझ रहे हो।
पावन सत्संग के द्वारा मन से जगत की सत्यता हटती है। जब तक जगत सच्चा लगता है तब तक सुख-दुःख होते हैं। जगत की सत्यता बाधित होते ही अर्थात् आत्मज्ञान होते ही परमात्मा का सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। योगी, महर्षि, सन्त, महापुरुष, फकीर लोग इस परम रस का पान करते हैं। हम चाहें तो वे हमको भी उसका स्वाद चखा सकते हैं। परन्तु इसके लिए सत्संग का सेवन करना जरूरी है। जीवन में एक बार सत्संग का प्रवेश हो जाय तो बाद में और सब अपने आप मिलता है और भाग्य को चमका देता है।
दुःखपूर्ण आवागमन के चक्कर से छूटने के लिए ब्रह्मज्ञान के सत्संग के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं..... कोई रास्ता नहीं।
सत्संग से वंचित रहना अपने पतन को आमंत्रण देना है। इसलिए अपने नेत्र, कर्ण, त्वचा आदि सभी को सत्संगरूपी गंगा में स्नान कराते रहो जिससे काम विकार तुम हावी न हो सके।
सत्संग द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन के अनुसार पुरुषार्थ करने से भक्त पर भगवान या भगवान के साथ तदाकार बने हुए सदगुरु की कृपा होती है और भक्त उस पद को प्राप्त होता है जहाँ परम शांति मिलती है।
जो तत्त्ववेत्ताओं की वाणी से दूर हैं उन्हें इस संसार में भटकना ही पड़ेगा। चाहे वह कृष्ण के साथ हो जाये या क्राइस्ट के साथ चाहे अम्बा जी के साथ हो जाय, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
भगवान ने हमें बुद्धि दी है तो उसका उपयोग बन्धन काटने में करें न कि बन्धन बढ़ाने में, हृदय को शुद्ध करने में करें न कि अशुद्ध करने में। यह तभी हो सकता है जबकि हम सत्संग करें।
सदा यही प्रयत्न रखो कि जीवन में से सत्संग न छूटे, सदगुरु का सान्निध्य न छूटे। सदगुरु से बिछुडा हुआ साधक न जीवन के योग्य रहता है न मौत के।
HUMOUR-4
<>_<>HUMOUR-4<>_<>
My wife got mad at me when I told her I was *NOT* going shopping with her at midnight on Black Friday. She went by herself, and she informed me this morning that she had purchased eight new dresses. "Eight dresses!" I hollered, "what could any woman want with eight new dresses??" She calmly replied, "Eight new pairs of shoes."
Beautiful Indian Paintings on Silken Cloth
Beautiful Indian Paintings on Silken Cloth
Krishna Playing Truant with Radha and Gopinis
नकटा मंदिर
रायपुर।जांजगीर के विष्णु मंदिर का आर्किटेक्चर वास्तु-कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा जाज्वल्य देव प्रथम ने करवाया था। मंदिर के कला स्वरूप में कल्चुरीकाल की मूर्ति कला के अदभुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। मंदिर के अधूरा होने की वजह से इसे नकटा मंदिर भी कहा जाता है।
इसके निर्माण को लेकर कई रोचक दंत कथाएं हैं। एक दंत कथा के अनुसार जांजगीर का विष्णु मंदिर और पास के शिवरी नारायण मंदिर के निर्माण को लेकर प्रतियोगिता हो गई थी। इसमें एक निश्चित समय तक मंदिरों को बनना तय हुआ था।
भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि इन दोनों मंदिरों में से जो सबसे पहले तैयार होगा, वे उसी में प्रवेश करेंगे। शिवरी नारायण मंदिर का निर्माण कार्य पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण वहीं प्रविष्ट हुए। वहीं जांजगीर के इस मंदिर का निर्माण कार्य सदा के लिए अधूरा छूट गया।
दूसरी दंत कथा के अनुसार मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी महाबली भीम को और दूसरे मंदिर की जिम्मेदारी विश्वकर्मा को दी गई थी। भीम के पास एक हाथी था, जो भीम का सामान उठाने में मदद करता था। मंदिर बनाते समय भीम के औजार जमीन पर गिर जाते थे, तब हाथी ही लाकर देता था। एक समय में औजार पास के तालाब में जाकर गिर गया तो हाथी औजार को बहुत प्रयास के बाद भी ढूंढ नहीं पाया और सुबह हो गई।
इस कारण मंदिर का निर्माण समय पर नहीं हो सका और भीम प्रतियोगिता हार गए। इस बात से नाराज होकर भीम ने हाथी के दो टुकड़े कर दिए। इस बात के प्रमाण स्वरूप मंदिर में आज भी भीम और हाथी की खंडित मूर्तियां मौजूद हैं।
इसके निर्माण को लेकर कई रोचक दंत कथाएं हैं। एक दंत कथा के अनुसार जांजगीर का विष्णु मंदिर और पास के शिवरी नारायण मंदिर के निर्माण को लेकर प्रतियोगिता हो गई थी। इसमें एक निश्चित समय तक मंदिरों को बनना तय हुआ था।
भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि इन दोनों मंदिरों में से जो सबसे पहले तैयार होगा, वे उसी में प्रवेश करेंगे। शिवरी नारायण मंदिर का निर्माण कार्य पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण वहीं प्रविष्ट हुए। वहीं जांजगीर के इस मंदिर का निर्माण कार्य सदा के लिए अधूरा छूट गया।
दूसरी दंत कथा के अनुसार मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी महाबली भीम को और दूसरे मंदिर की जिम्मेदारी विश्वकर्मा को दी गई थी। भीम के पास एक हाथी था, जो भीम का सामान उठाने में मदद करता था। मंदिर बनाते समय भीम के औजार जमीन पर गिर जाते थे, तब हाथी ही लाकर देता था। एक समय में औजार पास के तालाब में जाकर गिर गया तो हाथी औजार को बहुत प्रयास के बाद भी ढूंढ नहीं पाया और सुबह हो गई।
इस कारण मंदिर का निर्माण समय पर नहीं हो सका और भीम प्रतियोगिता हार गए। इस बात से नाराज होकर भीम ने हाथी के दो टुकड़े कर दिए। इस बात के प्रमाण स्वरूप मंदिर में आज भी भीम और हाथी की खंडित मूर्तियां मौजूद हैं।
Unbelievable...
Unbelievab le...
During the first 50 seconds, they are singing,
but next, what they are doing, is almost impossible...
10 Craziest Ends to Civilizations As We Know It Read more: http://www.toptenz.net/top-10-craziest-ends-to-civilizations-as-we-know-it.php#ixzz1nt3nrkVY
10 Craziest Ends to Civilizations As We Know It
Unless you’ve been living under a large rock (or, for that matter, a fallen meteoroid) for the majority of your life, you’re probably uncomfortably aware that humanity, as a whole, just doesn’t seem to be too confident about its ongoing survival. Let’s face it: here on Earth we spend a wildly disproportionate amount of time worrying about all sorts of cataclysmic events blowing us all to Kingdom Come, ranging from ancient Mayan calendars, to zombies or robots gone wrong, all the way up to international wars, global warming and unfortunate cosmic collisions.
Unless you’ve been living under a large rock (or, for that matter, a fallen meteoroid) for the majority of your life, you’re probably uncomfortably aware that humanity, as a whole, just doesn’t seem to be too confident about its ongoing survival. Let’s face it: here on Earth we spend a wildly disproportionate amount of time worrying about all sorts of cataclysmic events blowing us all to Kingdom Come, ranging from ancient Mayan calendars, to zombies or robots gone wrong, all the way up to international wars, global warming and unfortunate cosmic collisions.
Rather than reassure you of the relatively low probability of you actually experiencing these calamities within your dwindling mortal lifespan, we’d like to take the time to remind you that it isn’t only the disasters you’re aware of which can well and truly ruin your day.
10. Super-diseases
The theory of natural selection is simple but brilliant; traits which lead to survival are passed on to the next generation, while traits which would hinder an organism’s ability to survive tend to die out. Natural selection has gifted us humans with plenty of fantastic advantages over other animals, such as opposable thumbs, highly-developed brains and…well…we do have nice thumbs and brains. Where things get ugly is when natural selection is applied to nastier organisms, like poisonous snakes, insects, lawyers…and humanity’s eternal foe, bacteria.
Mankind’s development of antibiotics has been, in recent history, to great effect against a great range of malevolent microorganisms, killing off the hostile bacteria before they can spread and damage your body. A side effect of this, however, has been something observed by scientists as “antibiotic resistance.” This is pretty much exactly what it sounds like: subjected constantly to the trial-by-fire of antibiotics, the bacteria must continue to evolve to resist more and more antibiotics, slowly evolving into millions of tiny versions of the Terminator.
With the number of new medications being developed dwindling due to a marked decrease in medical R&D, it could only take an unfortunately lethal bacterial strain with antibiotic resistance to leave civilization as we know it choking and coughing for breath.