गठा हुआ लंबा शरीर। धरती को छूते लंबे-लंबे भूरे बाल। ओज से चमकता चेहरा। बुढ़ापे में भी जवानी जैसा जोश। जी हां, हम बात कर रहे हैं टाट वाले बाबा की। उनकी योग शक्ति से आज दुनिया भले ही अनजान है, लेकिन उनकी उपलब्धियां और शक्तियां बहुत महत्वपूर्ण थीं। टाट वाले बाबा का जन्म पंजाब के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। बचपन में परिवारिक परिस्थितियों के कारण वह अधिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए थे। 9 साल की उम्र में वह योग और ध्यान करने लगे। बड़े होने पर उनकी शारीरिक बनावट देख कर मित्रों ने आर्मी ज्वाइन करने का सुझाव दिया। वह मान गए और आर्मी ज्वाइन कर ली, लेकिन उनको आर्मी का जीवन रास नहीं आया। उन्होंने दो महीने बाद ही इस्तीफा दे दिया और साधुओं की तरह जीवन जीने लगे।
एक दिन अयोध्या में उनकी मुलाकात श्री जगन्नाथ दास जी से हुई। उनकी सलाह पर उन्होंने महावीर दास जी को अपना गुरु बना लिया। वह वस्त्र त्याग कर केवल जूट पहनने लगे। इस वजह से लोग उन्हें 'टाट वाले बाबा' के नाम से पुकारने लगे। कुछ दिनों बाद वह हिमालय पर चले गए। वहां एक गुफा में रहकर ध्यान और योग साधना करने लगे।
कहा जाता है कि टाट वाले बाबा ने अपनी गुफा में कोबरा सांप पाल कर रखा था। वह उसे रोज दूध पिलाते थे। बाबा जहां ध्यान किया करते थे, कोबरा वहीं रहता था। वह लोगों को समझाते थे कि जब तक हम सांपों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे तब वे हमें हानि नहीं पहुंचा सकते हैं।
जनश्रुति के मुताबिक बाबा के पास अलौकिक शक्तियां थीं। वह एक बार जो कह देते थे, वह पूरा हो जाता था। जिनको बच्चे नहीं होते थे, वे लोग उनके पास जाते थे। उनके आशीर्वाद से कई महिलाओं की सूनी गोद भरी थी।
दिसंबर 1974 की सुबह जब बाबा नदी में नहाने गए थे, तब एक शख्स ने उनको गोली मार दी। घाट पर ही उनकी मौत हो गई।
बताया जाता है कि उनकी गुफा के पास किसी शख्स ने आश्रम बना लिया था। उसी के विवाद में उनकी हत्या की गई थी। मौत के समय बाबा की उम्र करीब 120 साल बताई जाती है।
टाट वाले बाबा को नमन !
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