राशि और सैक्स - तुला राशि
Sign & Sex - Libra
यह राशि वृष की सहोदर राशि है। आकाश में इसका आकार तुला (तराजू) के समान है। कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) इसका मास है। यह चर राशि, तत्त्व आकाश, शीर्षोदय उदय, दिशा पश्चिम, निवास हाट-बाजार, रंग रंग-बिरंगा, जाति वैश्य, पद द्विपद, आकार अष्टकोण, शरीर में स्थान नाभि, ग्रह स्वामी शुक्र है।इस राशि के जातक साधारण रूपरंग के होते हैं। विचार अत्यन्त नपे-तुले, कोई भी काम, कोई भी बात, बिना सोचे समझे नहीं बोलते। इस राशि की लड़कियां अत्यन्त चतुर, बुद्धिमान तथा तेजस्वी होती हैं। अपने पति या प्रेमी को जी-जान से प्रेम करती हैं, उसके एक इशारे पर अपनी जान दे देती हैं। इस राशि के जातक का सैक्स भी एकदम नपातुला होता है। ज्यादा सम्भोग करना, कराना पसन्द नहीं करते। दाल में नमक के बराबर। प्रेम या विवाह काफी तौलकर करते हैं और बड़ी शान्ति के साथ दाम्पत्य जीवन व्यतीत होता है। निवास बाजार, हाट होने के कारण घूमना और रंग-बिरंगा रंग होने के कारण खूब बन-ठनकर निकलना, श्रृगांर करना बड़ा प्रिय होता है। इस राशि की स्त्री के दोनों स्तन एकदम समान आकार और तराजू के पल्लों के समान होते हैं (अन्य स्त्रियों के स्तन निश्चित रूप से एक छोटा, दूसरा बड़ा होता है)। स्त्री अंग सांप सा लहराया, पर तराजू की डंडी के समान संकरा (पतला) होता है। पुरूष अंग समान रूप से गोलाकार और सामान्य लम्बाई का होता है। बड़ी संयमित और संतुलित सेक्स जीवन जीने वाली यह राशि है। इसकी कामोत्तेजना का केन्द्र नाभि है। नाभि में अंगुली डालने या गुदगदी करने पर स्त्री काम पीड़ित तथा स्खलित हो जाती है। तत्त्व आकाश होने के कारण घुटन-भरे वातावरण में किये गये सम्भोग से इसको न आनन्द मिलता है, न ये पसन्द करते हैं। राशि रूप चर हैं, अतः मैथुन अस्थिर रूप से करता है। मैथुन कम, पर देर तक करते हैं। शीर्षोदय राशि के कारण अश्लील ढंग नहीं अपनाते, दिन में विशेष सुख मिलता है और सामने से ही क्रियारत होते हैं। द्विपदी राशि के कारण नाना प्रकार के आसन में रूचि नहीं होती हैं, मानवोचित संभोग लीला करते हैं। पश्चिम की ओर मुख करने से ज्यादा सुख मिलता है। परिवार-नियोजन का यह स्वयं ही बड़ी कड़ाई से पालन करते हैं। इस राशि के जातक दोनों का सेक्स अत्यन्त नपा-तुला होता है। पूर्ण रूप से एक-दूसरे का संतुष्ट करते हैं। जाति वैश्य होने से इनके संभोग में शालीनता होती है। इसका आकार तुला होने के कारण प्यार में सौदा करना इसका एक स्वभाव है। प्रायः यह मैथुन पूर्व चुम्बन-आलिंगन की बाजी लगाया करती है। पति या पत्नी के साथ द्यूत-क्रिड़ा, बाजी लगाना इसको बड़ा पसन्द आता है। इसमें स्वार्थी भाव ज्यादा होते हैं। मैथुन करते समय केवल आवश्यक या अनिवार्य ध्वनियां ही होती है तथा उचित समय पर मैथुन करते हैं। पूर्व में कुछ मनोरंजन और समाप्ति पर प्रायः एक-दूसरे को ठगते हैं। इस राशि की महिला अपने पति से संभोग समाप्ति के उपरान्त कुछ न कुछ फरियाद अवश्य करेगी। इस राशि के जातक साफ-सुथरा और स्तरीय मैथुन करना पसन्द करते हैं। अपना मैथुन किसी पर प्रकट नहीं करते, बहुत गोपनीय ढ़ग से इस कार्य को करते हैं। स्वभाव इनका संतुलित होता है। प्रेम-पत्र भी एक एक पंक्ति को दस बार सोचकर लिखेंगें। इनकी लिखावट में काट-पीट, संशोधन अवश्य होगा।इनका प्रेम जल्दी प्रकट नहीं होता है। हर काम यह योजना बनाकर करते हैं और पहले साधन तथा वातावरण बना लेते हैं। स्त्री कभी पुरूष के पीछे या पुरूष के पीछे नहीं भागता है। इस राशि के नवयुवक छेड़खानी नहीं करते हैं। प्रायः गम्भीर रहते हैं। इसी राशि की लड़कियों का परीक्षाफल प्रायः सबसे सन्तोषजनक रहता है। तत्त्व आकाश होने के कारण अपने बनाये आकाश में मग्न रहते हैं। जाति राशि वैश्य होने के कारण प्रेम / विवाह में अपना नफा-नुकसान देखकर निर्णय हैं और किये गये निर्णय पर अटल रहते हैं। इस राशि की ही महिलाओं का प्रतिशत अविवाहित महिलाओं में ज्यादा होता है। अक्टूबर-नवम्बर में यह गर्भाधान करती है। नाभि राशि अंग होने से मूत्र रोग, गर्भाशय की बीमारी तथा उदर रोग होते हैं, पर गुप्त रोग इस राशि के जातकों के पास भी नहीं फटकते हैं। पुरूषों को अवश्य वृद्धावस्था में अण्डकोष की बीमारी हो जाती है। वृद्धावस्था में इनका सैक्स शांत हो जाया करता है। अपने जीवन का अन्तिम काल 60 से ऊपर होने पर यह शांति के साथ धार्मिक कार्यों में लगाते हैं। यह राशि सौम्य एकदम नपी-तुली है। ऐसा ही इनका सेक्स, दाम्पत्य जीवन और सन्तान संसार नपा-तुला होता है।
राशि और सैक्स - कन्या राशि
राशि और सैक्स - कन्या राशिSign & Sex - Virgo
मिथुन राशि की भांति कन्या राशि का भी ग्रह स्वामी बुध है। इसकी आकृति हाथ में दीप लिये कन्या के समान है। स्वभाव द्विस्वभाव है, तत्त्व पृथ्वी, शीर्षोदय राशि, दिशा दक्षिण-पश्चिम, पद द्विपद, शीर्षोदय उदय, जाति शूद्र और लिंग स्त्री है। रंग सलेटी, निवास हरियाली या गीली भूमि है। शरीर में स्थान कमर, पद इसका द्विपद है। इस राशि में उत्पन्न जातक शरीर से दुबले-पतले तथा घनी भौहों वाले होते हैं। यह देखने में अपनी उमर से काफी कम लगते हैं। शरीर में काफी स्फूर्ति होती है। पुरूषों में स्त्रियोचित गुण मिलते है, तथा स्त्रियां बड़ी ही कोमल होती है। उनकी कमर में बड़ी ताकत होती है। इस राशि की महिला प्रायः अत्यन्त कुशल नर्तकी होती है। स्तन दीपक के समान होते हैं। नितम्ब मध्यम तथा स्त्री अंग दीपक की लौ के समान छोटा, संकर थोडा सा लम्बा होता है। योनि के भगोष्ठों की बनावट दीपक की लौ की लहर के समान होती है। इस राशि की स्त्री के तलुवे लाल और पैर बहुत सुन्दर होते हैं। उनका आकार प्रायः ‘कमल’ के समान होता है। पुरूष अंग आगे से अधिक मोटा तथा पीछे की ओर क्रमशः पतला होता है। निवास जल या भीगी भूमि होने के कारण तत्काल उत्तेजना प्राप्त कर शीघ्र स्खलित हो जाया करते हैं। यह विवाह बहुत सोच समझ कर देर से करते हैं। अधिकाशं इस कारण अविवाहित रह जाते हैं। तत्त्व पृथ्वी होने के कारण मन से कठोर होते हैं, पर द्विस्वभाव होने से निर्णय बदलते रहते हैं। शीर्षोदय उदय के कारण पृष्ठभाग से मैथुन नहीं करते और न समलिंगी होते हैं। इस राशि का शरीर का अंग कमर है, अतः इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का क्षेत्र कमर है। स्त्री के कूल्हों या कमर (बांया भाग) पकड़ने सहलाने से शीघ्र उत्तेजित होती हैं। कमर पकड़कर, उकडूँ बैठकर मैथुन करना इस राशि के पुरूषों का स्वभाव होता है। नंगी जमीन पर सामान्य मानवोचित्त संभोगप्रिय होता है। लिंग स्त्री होने से इनमें विशेष कामवासना नहीं होती है। इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व की अधिकता होती है।, जनानापन, अतएव अधिकतर नपुंसक, संभोग असमर्थ, शीघ्रपतन के शिकार रहते हैं। इस राशि का पुरूष पौरूष की कमी के कारण प्रायः अपनी स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाते। इस राशि के लोग ही ज्यादातर हिंजड़े होते हैं। इस राशि के जातक का स्वभाव बड़ा ही कोमल होता है, बहुत नाजुक मिजाज। बड़ी नाजुक-मिजाजी के साथ यह सम्भोग करते हैं। कोई उठा-पटक, बलात्कार, आवाजें नहीं, कोई शोर-शराबा नहीं। अपने आप में मगन रहते हैं। कामुक नहीं होते, पर प्रेम में सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। आत्महत्या तक कर जाते हैं। अन्त तक साथ देते हैं। स्वभाव हंसमुख होता है। व्यभिचारी नहीं होते, एक के प्रति वफादार होते हैं। दाम्पत्य जीवन में कलह या मारपीट नहीं करते, बड़ा आर्दश गृहस्थ जीवन होता है।इस राशि की स्त्रियां आश्विन (सितम्बर-अक्टुबर) माह में गर्भाधान करती है। कमर में स्थान होने के कारण प्रसव के समय कमर में घोर पीड़ा होती है। इस राशि की महिला की कमर सहलाने या कमर पकड़कर मैथुन करने से उसे विशेष सुख मिलता है। सन्तान सामान्य रूप से होती है। इस राशि की महिला का मासिक बहुत कम असामान्य होता है। इनका प्रेम-प्रसंग सीधा सपाट होता है। भावुकता इनके प्रेम पत्रों में नहीं होती, कामकाज की बातें ज्यादा लिखेंगें। सबसे अधिक मनपसंद और अर्न्तजातीय विवाह कन्या राशि के जातक करते हैं। जाति से शूद्र होने के कारण अपने से निम्न कुल या स्तर के लोगों से इनका प्रेम हो जाता है। प्रेम को यह विवाह में जरूर बदलते हैं। चतुर होने के कारण अपना काम सरलता से बना लेते हैं। इस राशि की अधिकतर महिलाएं ठंड़ी होती हैं। मैथुन में उनको किसी प्रकार की रूचि नहीं होती है। वृश्चिक, कर्क या सिंह से पाला पड़ जाने पर सूखकर कांटा हो जाती हैं। अपने ठंडेपन के कारण अरूचि दिखलाती हैं। बनाव-श्रृगांर में रूचि रखती हैं पर मैथुन में अश्लीलता नहीं होती। दक्षिण-पश्चिम दिशा में सिर कर ज्यादा सुख मिलता है। रिमझिम बरसते पानी में इनको उत्तेजना मिलती है अथवा हरियाली बिखरी पाकर मैथुनातुर होती है। इनकी कमर की लचक बहुत आकर्षक होती है। चुपचाप सम्भोग करना और द्विस्वभाव के कारण कभी इधर, कभी उधर खिसकना, उलटना, पलटना इनकी आदत होती है। रात्रि-दीप की लौ के समान हौल-हौले लहराती है। बस एक-दो फूँक में बुझ (ठंडी) जाती है। इनका क्रिया-कलाप क्षणिक होता है। मैथुन के पूर्व, अन्त में या मैथुन के दौरान यह उत्तेजना तो बहुत दिखलाती है, किन्तु करते कुछ नहीं बनता।राशियों में सबसे सुकुमार और सीधी राशि कन्या है। भोली-भाली कन्या के समान ही इसका वैवाहिक, दाम्पत्य और सन्तान जीवन होता है। इसी राषि में सैक्स का सबसे कम महत्त्व है तथा सबसे कम समय लगता है।
मिथुन राशि की भांति कन्या राशि का भी ग्रह स्वामी बुध है। इसकी आकृति हाथ में दीप लिये कन्या के समान है। स्वभाव द्विस्वभाव है, तत्त्व पृथ्वी, शीर्षोदय राशि, दिशा दक्षिण-पश्चिम, पद द्विपद, शीर्षोदय उदय, जाति शूद्र और लिंग स्त्री है। रंग सलेटी, निवास हरियाली या गीली भूमि है। शरीर में स्थान कमर, पद इसका द्विपद है। इस राशि में उत्पन्न जातक शरीर से दुबले-पतले तथा घनी भौहों वाले होते हैं। यह देखने में अपनी उमर से काफी कम लगते हैं। शरीर में काफी स्फूर्ति होती है। पुरूषों में स्त्रियोचित गुण मिलते है, तथा स्त्रियां बड़ी ही कोमल होती है। उनकी कमर में बड़ी ताकत होती है। इस राशि की महिला प्रायः अत्यन्त कुशल नर्तकी होती है। स्तन दीपक के समान होते हैं। नितम्ब मध्यम तथा स्त्री अंग दीपक की लौ के समान छोटा, संकर थोडा सा लम्बा होता है। योनि के भगोष्ठों की बनावट दीपक की लौ की लहर के समान होती है। इस राशि की स्त्री के तलुवे लाल और पैर बहुत सुन्दर होते हैं। उनका आकार प्रायः ‘कमल’ के समान होता है। पुरूष अंग आगे से अधिक मोटा तथा पीछे की ओर क्रमशः पतला होता है। निवास जल या भीगी भूमि होने के कारण तत्काल उत्तेजना प्राप्त कर शीघ्र स्खलित हो जाया करते हैं। यह विवाह बहुत सोच समझ कर देर से करते हैं। अधिकाशं इस कारण अविवाहित रह जाते हैं। तत्त्व पृथ्वी होने के कारण मन से कठोर होते हैं, पर द्विस्वभाव होने से निर्णय बदलते रहते हैं। शीर्षोदय उदय के कारण पृष्ठभाग से मैथुन नहीं करते और न समलिंगी होते हैं। इस राशि का शरीर का अंग कमर है, अतः इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का क्षेत्र कमर है। स्त्री के कूल्हों या कमर (बांया भाग) पकड़ने सहलाने से शीघ्र उत्तेजित होती हैं। कमर पकड़कर, उकडूँ बैठकर मैथुन करना इस राशि के पुरूषों का स्वभाव होता है। नंगी जमीन पर सामान्य मानवोचित्त संभोगप्रिय होता है। लिंग स्त्री होने से इनमें विशेष कामवासना नहीं होती है। इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व की अधिकता होती है।, जनानापन, अतएव अधिकतर नपुंसक, संभोग असमर्थ, शीघ्रपतन के शिकार रहते हैं। इस राशि का पुरूष पौरूष की कमी के कारण प्रायः अपनी स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाते। इस राशि के लोग ही ज्यादातर हिंजड़े होते हैं। इस राशि के जातक का स्वभाव बड़ा ही कोमल होता है, बहुत नाजुक मिजाज। बड़ी नाजुक-मिजाजी के साथ यह सम्भोग करते हैं। कोई उठा-पटक, बलात्कार, आवाजें नहीं, कोई शोर-शराबा नहीं। अपने आप में मगन रहते हैं। कामुक नहीं होते, पर प्रेम में सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। आत्महत्या तक कर जाते हैं। अन्त तक साथ देते हैं। स्वभाव हंसमुख होता है। व्यभिचारी नहीं होते, एक के प्रति वफादार होते हैं। दाम्पत्य जीवन में कलह या मारपीट नहीं करते, बड़ा आर्दश गृहस्थ जीवन होता है।इस राशि की स्त्रियां आश्विन (सितम्बर-अक्टुबर) माह में गर्भाधान करती है। कमर में स्थान होने के कारण प्रसव के समय कमर में घोर पीड़ा होती है। इस राशि की महिला की कमर सहलाने या कमर पकड़कर मैथुन करने से उसे विशेष सुख मिलता है। सन्तान सामान्य रूप से होती है। इस राशि की महिला का मासिक बहुत कम असामान्य होता है। इनका प्रेम-प्रसंग सीधा सपाट होता है। भावुकता इनके प्रेम पत्रों में नहीं होती, कामकाज की बातें ज्यादा लिखेंगें। सबसे अधिक मनपसंद और अर्न्तजातीय विवाह कन्या राशि के जातक करते हैं। जाति से शूद्र होने के कारण अपने से निम्न कुल या स्तर के लोगों से इनका प्रेम हो जाता है। प्रेम को यह विवाह में जरूर बदलते हैं। चतुर होने के कारण अपना काम सरलता से बना लेते हैं। इस राशि की अधिकतर महिलाएं ठंड़ी होती हैं। मैथुन में उनको किसी प्रकार की रूचि नहीं होती है। वृश्चिक, कर्क या सिंह से पाला पड़ जाने पर सूखकर कांटा हो जाती हैं। अपने ठंडेपन के कारण अरूचि दिखलाती हैं। बनाव-श्रृगांर में रूचि रखती हैं पर मैथुन में अश्लीलता नहीं होती। दक्षिण-पश्चिम दिशा में सिर कर ज्यादा सुख मिलता है। रिमझिम बरसते पानी में इनको उत्तेजना मिलती है अथवा हरियाली बिखरी पाकर मैथुनातुर होती है। इनकी कमर की लचक बहुत आकर्षक होती है। चुपचाप सम्भोग करना और द्विस्वभाव के कारण कभी इधर, कभी उधर खिसकना, उलटना, पलटना इनकी आदत होती है। रात्रि-दीप की लौ के समान हौल-हौले लहराती है। बस एक-दो फूँक में बुझ (ठंडी) जाती है। इनका क्रिया-कलाप क्षणिक होता है। मैथुन के पूर्व, अन्त में या मैथुन के दौरान यह उत्तेजना तो बहुत दिखलाती है, किन्तु करते कुछ नहीं बनता।राशियों में सबसे सुकुमार और सीधी राशि कन्या है। भोली-भाली कन्या के समान ही इसका वैवाहिक, दाम्पत्य और सन्तान जीवन होता है। इसी राषि में सैक्स का सबसे कम महत्त्व है तथा सबसे कम समय लगता है।
राशि और सैक्स - सिंह राशि
राशि और सैक्स - सिंह राशिSign & Sex - Lion
इस राशि की आकृति शेर के समान है। राशि स्थिर, तत्त्व अग्नि, ग्रहाधिपति सूर्य, उदय शीर्षोदय, लिंग पुरूष, जाति क्षत्रिय, दिशा दक्षिण, रहने का स्थान पर्वत की गुफा, चतुष्पदी, शरीर का अंग पेट, सत्त्वगुणी, स्वभाव क्रूर, रंग लाल मिश्रित वर्ण, प्रकृत्ति पित्त, धातु ताम्र, रत्न माणिक्य, ऋतु ग्रीष्म, सौर मंडल में पद राजा का, आकार चतुष्कोण, इन्द्रिय ज्ञान नेत्र, ग्रह के अधिपति देवता षिव हैं।इस राशि के जातक अत्यन्त तेजस्वी और सुडौल होते हैं। बलिष्ठता तथा सीना तानकर चलना इसका गुण है। इस राशि की स्त्रियां परम सुन्दरी होती हैं। कम से कम उनकी कमर शेर की कमर के समान पतली और अत्यन्त मोहक बल खाने वाली होती है। आंखें माणिक्य या हीरे के समान जगमगाती है। विश्व की सुन्दरतम महिलाओं की राशि लगभग यही है। इनके स्तन चैकोन और अत्यन्त नुकीले, उठे, लपटें फेंकते-से लगते हैं। इनका अंग चौकोन समान रूप से लम्बा-चौड़ा होता है तथा स्वभाव एकदम निर्भीक होता है। कड़ी नजर से घूर ले तो आदमी एकदम भीगी बिल्ली बन जाता है। प्रायः एकदम गम्भीर होती हैं, बोलना बहुत कम पसन्द होता है, चाल मस्तानी और बेखबर होती है। हथेलियां मजबूत तथा अंगुलियां लम्बी-नुकीली होती है। चेहरे प्रायः चौकोर होते हैं। इनका क्रोध कहर बरपा देता है। मारपीट में नाखून-दांतों का उपयोग पहले करेंगी। इनकी वासना सुप्त रहती है और जागी तो बस कच्चा चबाकर खा जाने की मुद्रा में आ जाती है। गर्भवती या प्रसूता होने का समय भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) प्रायः ग्रीष्म में होती है। इस राशि की महिला का सैक्स अत्यन्त प्रबल होता है। पति को भी अपने ‘अन्दर’ रखने की जबर्दस्त इच्छा होती है और जब भी मौका मिलता है, धर दबोचती है। अपने क्रूर स्वभाव, लिंग नर होने के कारण इस राशि की महिला अत्यन्त उग्र होती है। तृप्ति न होने पर यह गुस्से से भर जाती है और हाथ-पैर पटकती हैं, अशक्त पति की यह पिटाई भी कर देती है। इस राशि की महिला प्यार बहुत गहरा करती है। प्रर्दशन नहीं करती है। स्वभाव से जिद्दी और हठी होती है। अपनी बात से पीछे नहीं हटती है। इस कारण कलह शांत नहीं हो पाता। इस राशि की महिला को यदि वश में कर लिया तो जीवन-भर वफादार रहती है और पति के लिये जान भी दे देती है। सती हो जाती है।इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का केन्द्र पेट है। प्रायः गुदगुदी से इनको कामोत्तेजना होने लगती है। इनकी कमर दोनों ओर से पकड़कर मैथुन करने से इनको सुख मिलता है। जाति से क्षत्रिय और स्थिर गुण के कारण एक आसन में ही घोर युद्ध करना इनका स्वभाव है। चतुष्पदी राशि होने से पशुवत् आसन में मैथुन प्रिय होता है। विभिन्न प्रकार के आसन बदलते हुए क्रिया करने से नफरत करते है। उकडूं बैठना बहुत प्रिय है। इस राशि का पुरूष बैठकर ही क्रियारत होना पसन्द करता हैं। क्रिया के दौरान यदा-कदा सिंह के समान गुर्राने के स्वर अवश्य निकालते हैं। चरम सीमा पर अचानक ध्वनियां करते हैं। इस राशि का मैथुन सबसे अधिक ध्वनिमय होता है। निवास पर्वत की गुफा होने के कारण एकदम गुफा जैसा स्थान अंधकार, खिड़की-दरवाजे सब बन्द हो, तब इसको सुख मिलता है। दक्षिण की ओर मुख करके इनको विशेष सुख मिलता है। सांसे कम से कम लेते हैं। हिलना-डुलना पसन्द नहीं हैं, बस एक सुर में प्रबल रूप से क्रियारत रहते हैं। यह शीघ्र उत्तेजित होता है और स्त्री को देखकर यकायक टूट पड़ता है। इसकी पत्नी तक नहीं भांप पाती कि यह कब यकायक टूट पड़ेगा और झपाटे से तोड़कर रख देगा। हौले-हौले या धैर्य का यह व्यवहार नहीं करता, इसका झपट्टा शेर के समान होता है। यह अपना मैथुन हमेशा बलात्कार से शुरू करता है। अपने नक्षत्रों के कारण प्रबल भोगी और क्रूर होता है। वैसे यह जितेन्द्रिय होता है, मैथुन कम करता है, किन्तु जब करता है तो छक्के छुड़ा देता है। प्रायः इस राशि के जातक नोंच-खसोट करते हैं। इस राशि के जातक ही मैथुन में सबसे अधिक नख-दंत क्षत होते हैं। पहले, दौरान या अंत में यह विशेष लाड़-प्यार नहीं करते। शिकार किया, झपट्टे से चबाया और फेंक दिया। यह तुरन्त अलग हो जाया करते हैं। क्षत्रिय स्वभाव के कारण ‘खून-खराबा’ अवश्य करेंगे। स्वच्छता प्रिय है। प्रकृतिसम्मत क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य प्रकार की क्रियाओं में इनकी रूचि नहीं होती है। पेटू होने के कारण बिना खाये-पीये यह मैथुन नहीं करते हैं। मैथुन के उपरान्त कुछ न कुछ खाना इसका स्वभाव है। इस राशि का पुरूष उन्नत, बलवान तथा चौड़े ललाट वाला होता है। स्वभाव अत्यन्त क्रोधी और हिंसक होता है। शीर्षोदय राषि के कारण समलैंगिक या अप्राकृतिक मैथुन से सर्वथा दूर रहता है। कामुक नहीं होता है। काम जागने पर यह अपनी पत्नी की हड्डियां चबाकर फेंक देता है। प्रेम अत्यन्त प्रगाढ़ होता है। दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करता है, परिवार के सभी सदस्यों पर अपना रूआब रखता है। इन्द्रिय लम्बी और आगे से नुकीली होती है। काम-क्रिया में अधिक समय लगता है। शीर्षोदय राशि के कारण मुंह पर सब बोल देता है। पीठ-पीछे कुछ नहीं कहता। निडर होकर बात कह देता है। सन्तान का बड़ा ख्याल रखता है, अपने बच्चों के पीछे वह मरने-मारने को तैयार हो जाता है। अत्यन्त साहसी और कठोर परिश्रमी होता है। पेटू होने से खाता खूब है। आंखों के कोने प्रायः लाल रहते हैं। स्वाद कटू होने से जातकों को कटू पदार्थ अच्छे लगते हैं। बोलना भी बहुत कडुवा है। सबसे ऊपर, सब पर अपना रंग जमाकर रखना चाहता है। अंक 1 होने से हमेशा जुआ, सट्टा, लाटरी जीतता है। इसको घाटा नहीं होता है। प्रेम-पत्र स्पष्ट और शुष्क होते हैं। सन्तान अधिक से अधिक उत्पन्न करता है। इस राशि की महिलाएं दबंग होती है, गुण्ड़ों-बदमाशों को पीट देती हैं। सिंह राशि का सैक्स, दाम्पत्य जीवन और सन्तान सब कुछ शानदार होता है। जीवन के मध्याह्न काल में इनका विवाह अवश्य हो जाता है। अवैध सम्बन्ध के मामले में यह कम रूचि रखता है। एक ही शिकार से अपना पेट भर लेता है। वृद्धावस्था में भी यह नहीं मानता। अपने मरने तक इसमें सैक्स भरा रहता है। इस राशि की महिला का मासिक धर्म 55-56 की उमर तक बना रहता है।
इस राशि की आकृति शेर के समान है। राशि स्थिर, तत्त्व अग्नि, ग्रहाधिपति सूर्य, उदय शीर्षोदय, लिंग पुरूष, जाति क्षत्रिय, दिशा दक्षिण, रहने का स्थान पर्वत की गुफा, चतुष्पदी, शरीर का अंग पेट, सत्त्वगुणी, स्वभाव क्रूर, रंग लाल मिश्रित वर्ण, प्रकृत्ति पित्त, धातु ताम्र, रत्न माणिक्य, ऋतु ग्रीष्म, सौर मंडल में पद राजा का, आकार चतुष्कोण, इन्द्रिय ज्ञान नेत्र, ग्रह के अधिपति देवता षिव हैं।इस राशि के जातक अत्यन्त तेजस्वी और सुडौल होते हैं। बलिष्ठता तथा सीना तानकर चलना इसका गुण है। इस राशि की स्त्रियां परम सुन्दरी होती हैं। कम से कम उनकी कमर शेर की कमर के समान पतली और अत्यन्त मोहक बल खाने वाली होती है। आंखें माणिक्य या हीरे के समान जगमगाती है। विश्व की सुन्दरतम महिलाओं की राशि लगभग यही है। इनके स्तन चैकोन और अत्यन्त नुकीले, उठे, लपटें फेंकते-से लगते हैं। इनका अंग चौकोन समान रूप से लम्बा-चौड़ा होता है तथा स्वभाव एकदम निर्भीक होता है। कड़ी नजर से घूर ले तो आदमी एकदम भीगी बिल्ली बन जाता है। प्रायः एकदम गम्भीर होती हैं, बोलना बहुत कम पसन्द होता है, चाल मस्तानी और बेखबर होती है। हथेलियां मजबूत तथा अंगुलियां लम्बी-नुकीली होती है। चेहरे प्रायः चौकोर होते हैं। इनका क्रोध कहर बरपा देता है। मारपीट में नाखून-दांतों का उपयोग पहले करेंगी। इनकी वासना सुप्त रहती है और जागी तो बस कच्चा चबाकर खा जाने की मुद्रा में आ जाती है। गर्भवती या प्रसूता होने का समय भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) प्रायः ग्रीष्म में होती है। इस राशि की महिला का सैक्स अत्यन्त प्रबल होता है। पति को भी अपने ‘अन्दर’ रखने की जबर्दस्त इच्छा होती है और जब भी मौका मिलता है, धर दबोचती है। अपने क्रूर स्वभाव, लिंग नर होने के कारण इस राशि की महिला अत्यन्त उग्र होती है। तृप्ति न होने पर यह गुस्से से भर जाती है और हाथ-पैर पटकती हैं, अशक्त पति की यह पिटाई भी कर देती है। इस राशि की महिला प्यार बहुत गहरा करती है। प्रर्दशन नहीं करती है। स्वभाव से जिद्दी और हठी होती है। अपनी बात से पीछे नहीं हटती है। इस कारण कलह शांत नहीं हो पाता। इस राशि की महिला को यदि वश में कर लिया तो जीवन-भर वफादार रहती है और पति के लिये जान भी दे देती है। सती हो जाती है।इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का केन्द्र पेट है। प्रायः गुदगुदी से इनको कामोत्तेजना होने लगती है। इनकी कमर दोनों ओर से पकड़कर मैथुन करने से इनको सुख मिलता है। जाति से क्षत्रिय और स्थिर गुण के कारण एक आसन में ही घोर युद्ध करना इनका स्वभाव है। चतुष्पदी राशि होने से पशुवत् आसन में मैथुन प्रिय होता है। विभिन्न प्रकार के आसन बदलते हुए क्रिया करने से नफरत करते है। उकडूं बैठना बहुत प्रिय है। इस राशि का पुरूष बैठकर ही क्रियारत होना पसन्द करता हैं। क्रिया के दौरान यदा-कदा सिंह के समान गुर्राने के स्वर अवश्य निकालते हैं। चरम सीमा पर अचानक ध्वनियां करते हैं। इस राशि का मैथुन सबसे अधिक ध्वनिमय होता है। निवास पर्वत की गुफा होने के कारण एकदम गुफा जैसा स्थान अंधकार, खिड़की-दरवाजे सब बन्द हो, तब इसको सुख मिलता है। दक्षिण की ओर मुख करके इनको विशेष सुख मिलता है। सांसे कम से कम लेते हैं। हिलना-डुलना पसन्द नहीं हैं, बस एक सुर में प्रबल रूप से क्रियारत रहते हैं। यह शीघ्र उत्तेजित होता है और स्त्री को देखकर यकायक टूट पड़ता है। इसकी पत्नी तक नहीं भांप पाती कि यह कब यकायक टूट पड़ेगा और झपाटे से तोड़कर रख देगा। हौले-हौले या धैर्य का यह व्यवहार नहीं करता, इसका झपट्टा शेर के समान होता है। यह अपना मैथुन हमेशा बलात्कार से शुरू करता है। अपने नक्षत्रों के कारण प्रबल भोगी और क्रूर होता है। वैसे यह जितेन्द्रिय होता है, मैथुन कम करता है, किन्तु जब करता है तो छक्के छुड़ा देता है। प्रायः इस राशि के जातक नोंच-खसोट करते हैं। इस राशि के जातक ही मैथुन में सबसे अधिक नख-दंत क्षत होते हैं। पहले, दौरान या अंत में यह विशेष लाड़-प्यार नहीं करते। शिकार किया, झपट्टे से चबाया और फेंक दिया। यह तुरन्त अलग हो जाया करते हैं। क्षत्रिय स्वभाव के कारण ‘खून-खराबा’ अवश्य करेंगे। स्वच्छता प्रिय है। प्रकृतिसम्मत क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य प्रकार की क्रियाओं में इनकी रूचि नहीं होती है। पेटू होने के कारण बिना खाये-पीये यह मैथुन नहीं करते हैं। मैथुन के उपरान्त कुछ न कुछ खाना इसका स्वभाव है। इस राशि का पुरूष उन्नत, बलवान तथा चौड़े ललाट वाला होता है। स्वभाव अत्यन्त क्रोधी और हिंसक होता है। शीर्षोदय राषि के कारण समलैंगिक या अप्राकृतिक मैथुन से सर्वथा दूर रहता है। कामुक नहीं होता है। काम जागने पर यह अपनी पत्नी की हड्डियां चबाकर फेंक देता है। प्रेम अत्यन्त प्रगाढ़ होता है। दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करता है, परिवार के सभी सदस्यों पर अपना रूआब रखता है। इन्द्रिय लम्बी और आगे से नुकीली होती है। काम-क्रिया में अधिक समय लगता है। शीर्षोदय राशि के कारण मुंह पर सब बोल देता है। पीठ-पीछे कुछ नहीं कहता। निडर होकर बात कह देता है। सन्तान का बड़ा ख्याल रखता है, अपने बच्चों के पीछे वह मरने-मारने को तैयार हो जाता है। अत्यन्त साहसी और कठोर परिश्रमी होता है। पेटू होने से खाता खूब है। आंखों के कोने प्रायः लाल रहते हैं। स्वाद कटू होने से जातकों को कटू पदार्थ अच्छे लगते हैं। बोलना भी बहुत कडुवा है। सबसे ऊपर, सब पर अपना रंग जमाकर रखना चाहता है। अंक 1 होने से हमेशा जुआ, सट्टा, लाटरी जीतता है। इसको घाटा नहीं होता है। प्रेम-पत्र स्पष्ट और शुष्क होते हैं। सन्तान अधिक से अधिक उत्पन्न करता है। इस राशि की महिलाएं दबंग होती है, गुण्ड़ों-बदमाशों को पीट देती हैं। सिंह राशि का सैक्स, दाम्पत्य जीवन और सन्तान सब कुछ शानदार होता है। जीवन के मध्याह्न काल में इनका विवाह अवश्य हो जाता है। अवैध सम्बन्ध के मामले में यह कम रूचि रखता है। एक ही शिकार से अपना पेट भर लेता है। वृद्धावस्था में भी यह नहीं मानता। अपने मरने तक इसमें सैक्स भरा रहता है। इस राशि की महिला का मासिक धर्म 55-56 की उमर तक बना रहता है।
राशि और सैक्स - कर्क राशि
राशि और सैक्स - कर्क राशि
Sign & Sex - Cancer
कर्क का अर्थ है, ‘केकड़ा’ इस राशि वाले केकड़े के समान हृष्ट-पुष्ट होता है और स्वभाव भी ‘मोटी खाल’ वाला, बकते-चीखते रहिये, उनपर कोई असर नहीं होगा। परले सिरे के बेशर्म, लड़की छेड़ेंगे, गालियां देंगी, चप्पल लेकर दौड़ेंगी, किन्तु इस राशि का आवारा युवक हंसता रहंगा और जूते खाकर भी नहीं मानेगा। सहनशीलता गजब की होती है। इस राशि की महिला के साथ मैथुन करिये या कठोरतम बलात्कार, ‘उफ’ तक नहीं करेगी, सब बरदाश्त कर जायेंगी। बुरा लगेगा, पीड़ा सहन कर लेंगी, बोलेंगी नहीं। झगड़ा हो, पति बेतरह पीटे, सब बरदाश्त कर लेंगी, खून का घूंट पीकर रह जायेंगी। अपनी मर्जी के बिना यह टस से मस नहीं होती। ज्योतिष में यह राशि चर (चलायमान) है, तत्त्व जल, पृष्ठोदय उदय, लिंग स्त्री, रंग गुलाबी, दिशा दक्षिण, अंक 2। ग्रह स्वामी चन्द्रमा जाति ब्राह्मण ऋतु वर्षा रत्न मोती स्वाद लवण धातु अस्थि और वीर्य आकार गोल शरीर में स्थान हृदय है तथा कीट में गणना होती है। ग्रहाधिपति देवता पार्वती है।लिंग स्त्री होने के बावजूद इस राशि के पुरूषों में पौरूष और स्त्रियों में सहनशक्ति गजब की होती है। इस राशि के पुरूष का शरीर नाजुक होता है, किन्तु पंजा मजबूत। स्त्रियों की चाल में मस्ती होती है। इस राशि के स्त्री-पुरूषों को गृहस्थ जीवन बड़ा अच्छा लगता है। अपने गृहस्थ जीवन के अनुभव लोगों को सुनाया करते हैं। प्रायः इनका गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। घूमने-फिरने का बड़ा शौक होता है।यह चलायमान (चर) राशि होने के कारण चंचल, केंकड़ा होने के कारण कठोरतम मैथुन प्रिय होता है और रात्रि बली (पृष्ठोदय) होने के कारण मैथुन हमेशा अन्धकार में करना पसन्द करते हैं। पद इसका कीट है, अतएव रेंगकर (लम्बा होकर) मैथुन करना पसन्द करते हैं। कीट में गणना के कारण सभी प्रकार के चलायमान मैथुन सभी आसनों में करना स्वभाव होता है। मैथुन करते समय कीट (पतंगों) के समान भुनभुनाते या सांस छोड़ते हैं। अत्यन्त क्रूर-कठोरतम मैथुन होता है। इस राशि के पुरूष के मैथुन से स्त्री पनाह मांगती है और स्त्री से पुरूष को पसीना आ जाता है। इसे सन्तुष्ट करना लोहे के चने चबाने जैसा है। जाति ब्राह्मण होने के बावजूद अपने स्वभाव कीट होने के कारण साफ-सफाई के साथ संभोग नहीं होता है। गन्दे ढ़ग से प्रायः मैथुन करता है। मैथुन के समय गति केकड़े के समान, किन्तु अत्यन्त कठोर होती है। अपनी चंचलता तथा कठोरता के कारण विपरीत लिंगी का कचुमर निकाल देते हैं। अंधकार इनको प्रिय होता है और मैथुन करते समय ध्वनि नहीं करते हैं। इनकी धड़कने चरम सीमा पर होती है और हांफते बहुत हैं। इनका मैथुन पूर्ण तृप्तिदायक होता है। अपने नक्षत्रों के कारण इस कार्य में क्रूर, भोगी और हर प्रकार से रूचि रखते हैं। इस राशि के जातक इस क्रिया के दौरान अपनी गरदन सिकोड़ते या चलायमान अवश्य करते हैं, यह इनका एक विशेष गुण होता है। अपने तत्त्व के जल के कारण विशेष गरम नहीं होती है ओर पसीना कम निकलता है। मैथुन करते समय यह जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं। क्रिया रोक देते हैं। किसी प्रकार का व्यवधान इनको पसन्द नहीं हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय या बाद में कुछ न कुछ खाने-पीने की इनकी आदत होती है। मुंह चलता रहता है। इनमें स्तम्भन शक्ति ज्यादा होती है। प्रायः शरीर सिकोड़कर केकड़े के समान आकृति बनाकर यह सम्भोग करते हैं। बीच बीच में रूक जाया करते हैं। इस क्रिया में सबसे अधिक समय इस राशि के जातकों को ही लगता हैं। इस राशि के जातक प्रायः भावुक बेहद होते हैं। मैथुन करते समय अन्य भावुकता भरी क्रियाएं और खूब प्यार करते हैं। प्यार से अपने प्रिय को तर-बतर कर देते हैं। स्खलन इनका कम मात्रा में होता हैं, यह बिना रूके होता है और मैथुन के उपरान्त भी यह शीघ्र अलग नहीं होते। स्खलित होकर उसी अवस्था में देर तक पड़े रहते हैं। सामान्य तौर पर इनका दाम्पत्य जीवन का यह पक्ष मधुर होता है, पर क्रोधी स्वभाव के कारण मन उखड़ गया तो फिर कई दिनों तक मैथुन नहीं करते हैं। दाम्पत्य जीवन सामान्यतः सुखमय होता है, किन्तु अपनी इस ‘कामलीला’ के कारण कभी-कभी तनाव या तलाक जैसी स्थिति भी इसी राशि में सबसे ज्यादा होती है।दक्षिण दिशा में मुख करके मैथुन कर इस राशि के जातक और भी सुख उठा सकते हैं। इसकी काम वासना का समय सबसे अधिक श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) है। इसी माह में प्रायः गर्भाधान-प्रसव करती है। अपने ग्रह देवता चन्द्रमा के प्रभाव के कारण शुक्ल पक्ष में काम वासना अधिक हो जाती है। स्त्रियां विशेष रूप से पूर्णिमा की रात बहुत बेचैन रहती है। इसकी कामात्तेजना और स्खलन के बिन्दु स्तन हैं। उनका मर्दन-चुम्बन, पान इसको उत्तेजना देता है और स्खलित करा देते हैं। निवास तालाब, झील होने के कारण इस राशि के जातक नदी या जलाशय के पास बसे आवास, नगर आदि में अत्यन्त सुख का अनुभव करते हैं। ऐसे स्थानों पर इस राशि की महिलाओं में भी का वासना अधिक होती है। गुलाबी रंग से उत्तेजना मिलती है। इस राशि की स्त्रियां वर्षा ऋतु में प्रायः गर्भाधान करती है। इनको मीठी वस्तुएं कम पसन्द आती है। प्रायः जातक के चेहरे गोल हुआ करते हैं। स्त्रियों के स्त्री अंग तथा स्तन भी गोलाकार होंते हैं। लम्बाई कम से कम होती है। पुरूषेन्द्रिय में कठोरता ज्यादा होती है। इस राशि की महिलाओं के चेहरे पर लावण्य अवश्य होता है। कुशल गृहिणी होती है। इस राशि के जातक बहुत गहरा प्यार करते हैं, यह प्यार अन्त तक निभाते हैं। आपस में तनाव बढ़ता है तो कई दिनों तक बात नहीं करते हैं। सन्तान अधिक उत्पन्न करते हैं और सन्तान के प्रति यह बहुत ध्यान रखते हैं।प्रेम के मामले में यह पक्के होते हैं और निभाते हैं, किन्तु इनके प्रेम प्रायः असफल होते हैं। बाहर से शांत दिखते हैं, अन्दर से बहुत भावुक होते हैं। संवेदनशीलता ज्यादा होती है। इनके प्रेम पत्र कभी बहुत प्रिय कभी बहुत कठोर होते हैं। अप्राकृतिक मैथुन इस राशि को अप्रिय लगता है।
Sign & Sex - Cancer
कर्क का अर्थ है, ‘केकड़ा’ इस राशि वाले केकड़े के समान हृष्ट-पुष्ट होता है और स्वभाव भी ‘मोटी खाल’ वाला, बकते-चीखते रहिये, उनपर कोई असर नहीं होगा। परले सिरे के बेशर्म, लड़की छेड़ेंगे, गालियां देंगी, चप्पल लेकर दौड़ेंगी, किन्तु इस राशि का आवारा युवक हंसता रहंगा और जूते खाकर भी नहीं मानेगा। सहनशीलता गजब की होती है। इस राशि की महिला के साथ मैथुन करिये या कठोरतम बलात्कार, ‘उफ’ तक नहीं करेगी, सब बरदाश्त कर जायेंगी। बुरा लगेगा, पीड़ा सहन कर लेंगी, बोलेंगी नहीं। झगड़ा हो, पति बेतरह पीटे, सब बरदाश्त कर लेंगी, खून का घूंट पीकर रह जायेंगी। अपनी मर्जी के बिना यह टस से मस नहीं होती। ज्योतिष में यह राशि चर (चलायमान) है, तत्त्व जल, पृष्ठोदय उदय, लिंग स्त्री, रंग गुलाबी, दिशा दक्षिण, अंक 2। ग्रह स्वामी चन्द्रमा जाति ब्राह्मण ऋतु वर्षा रत्न मोती स्वाद लवण धातु अस्थि और वीर्य आकार गोल शरीर में स्थान हृदय है तथा कीट में गणना होती है। ग्रहाधिपति देवता पार्वती है।लिंग स्त्री होने के बावजूद इस राशि के पुरूषों में पौरूष और स्त्रियों में सहनशक्ति गजब की होती है। इस राशि के पुरूष का शरीर नाजुक होता है, किन्तु पंजा मजबूत। स्त्रियों की चाल में मस्ती होती है। इस राशि के स्त्री-पुरूषों को गृहस्थ जीवन बड़ा अच्छा लगता है। अपने गृहस्थ जीवन के अनुभव लोगों को सुनाया करते हैं। प्रायः इनका गृहस्थ जीवन सुखमय होता है। घूमने-फिरने का बड़ा शौक होता है।यह चलायमान (चर) राशि होने के कारण चंचल, केंकड़ा होने के कारण कठोरतम मैथुन प्रिय होता है और रात्रि बली (पृष्ठोदय) होने के कारण मैथुन हमेशा अन्धकार में करना पसन्द करते हैं। पद इसका कीट है, अतएव रेंगकर (लम्बा होकर) मैथुन करना पसन्द करते हैं। कीट में गणना के कारण सभी प्रकार के चलायमान मैथुन सभी आसनों में करना स्वभाव होता है। मैथुन करते समय कीट (पतंगों) के समान भुनभुनाते या सांस छोड़ते हैं। अत्यन्त क्रूर-कठोरतम मैथुन होता है। इस राशि के पुरूष के मैथुन से स्त्री पनाह मांगती है और स्त्री से पुरूष को पसीना आ जाता है। इसे सन्तुष्ट करना लोहे के चने चबाने जैसा है। जाति ब्राह्मण होने के बावजूद अपने स्वभाव कीट होने के कारण साफ-सफाई के साथ संभोग नहीं होता है। गन्दे ढ़ग से प्रायः मैथुन करता है। मैथुन के समय गति केकड़े के समान, किन्तु अत्यन्त कठोर होती है। अपनी चंचलता तथा कठोरता के कारण विपरीत लिंगी का कचुमर निकाल देते हैं। अंधकार इनको प्रिय होता है और मैथुन करते समय ध्वनि नहीं करते हैं। इनकी धड़कने चरम सीमा पर होती है और हांफते बहुत हैं। इनका मैथुन पूर्ण तृप्तिदायक होता है। अपने नक्षत्रों के कारण इस कार्य में क्रूर, भोगी और हर प्रकार से रूचि रखते हैं। इस राशि के जातक इस क्रिया के दौरान अपनी गरदन सिकोड़ते या चलायमान अवश्य करते हैं, यह इनका एक विशेष गुण होता है। अपने तत्त्व के जल के कारण विशेष गरम नहीं होती है ओर पसीना कम निकलता है। मैथुन करते समय यह जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं। क्रिया रोक देते हैं। किसी प्रकार का व्यवधान इनको पसन्द नहीं हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय या बाद में कुछ न कुछ खाने-पीने की इनकी आदत होती है। मुंह चलता रहता है। इनमें स्तम्भन शक्ति ज्यादा होती है। प्रायः शरीर सिकोड़कर केकड़े के समान आकृति बनाकर यह सम्भोग करते हैं। बीच बीच में रूक जाया करते हैं। इस क्रिया में सबसे अधिक समय इस राशि के जातकों को ही लगता हैं। इस राशि के जातक प्रायः भावुक बेहद होते हैं। मैथुन करते समय अन्य भावुकता भरी क्रियाएं और खूब प्यार करते हैं। प्यार से अपने प्रिय को तर-बतर कर देते हैं। स्खलन इनका कम मात्रा में होता हैं, यह बिना रूके होता है और मैथुन के उपरान्त भी यह शीघ्र अलग नहीं होते। स्खलित होकर उसी अवस्था में देर तक पड़े रहते हैं। सामान्य तौर पर इनका दाम्पत्य जीवन का यह पक्ष मधुर होता है, पर क्रोधी स्वभाव के कारण मन उखड़ गया तो फिर कई दिनों तक मैथुन नहीं करते हैं। दाम्पत्य जीवन सामान्यतः सुखमय होता है, किन्तु अपनी इस ‘कामलीला’ के कारण कभी-कभी तनाव या तलाक जैसी स्थिति भी इसी राशि में सबसे ज्यादा होती है।दक्षिण दिशा में मुख करके मैथुन कर इस राशि के जातक और भी सुख उठा सकते हैं। इसकी काम वासना का समय सबसे अधिक श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) है। इसी माह में प्रायः गर्भाधान-प्रसव करती है। अपने ग्रह देवता चन्द्रमा के प्रभाव के कारण शुक्ल पक्ष में काम वासना अधिक हो जाती है। स्त्रियां विशेष रूप से पूर्णिमा की रात बहुत बेचैन रहती है। इसकी कामात्तेजना और स्खलन के बिन्दु स्तन हैं। उनका मर्दन-चुम्बन, पान इसको उत्तेजना देता है और स्खलित करा देते हैं। निवास तालाब, झील होने के कारण इस राशि के जातक नदी या जलाशय के पास बसे आवास, नगर आदि में अत्यन्त सुख का अनुभव करते हैं। ऐसे स्थानों पर इस राशि की महिलाओं में भी का वासना अधिक होती है। गुलाबी रंग से उत्तेजना मिलती है। इस राशि की स्त्रियां वर्षा ऋतु में प्रायः गर्भाधान करती है। इनको मीठी वस्तुएं कम पसन्द आती है। प्रायः जातक के चेहरे गोल हुआ करते हैं। स्त्रियों के स्त्री अंग तथा स्तन भी गोलाकार होंते हैं। लम्बाई कम से कम होती है। पुरूषेन्द्रिय में कठोरता ज्यादा होती है। इस राशि की महिलाओं के चेहरे पर लावण्य अवश्य होता है। कुशल गृहिणी होती है। इस राशि के जातक बहुत गहरा प्यार करते हैं, यह प्यार अन्त तक निभाते हैं। आपस में तनाव बढ़ता है तो कई दिनों तक बात नहीं करते हैं। सन्तान अधिक उत्पन्न करते हैं और सन्तान के प्रति यह बहुत ध्यान रखते हैं।प्रेम के मामले में यह पक्के होते हैं और निभाते हैं, किन्तु इनके प्रेम प्रायः असफल होते हैं। बाहर से शांत दिखते हैं, अन्दर से बहुत भावुक होते हैं। संवेदनशीलता ज्यादा होती है। इनके प्रेम पत्र कभी बहुत प्रिय कभी बहुत कठोर होते हैं। अप्राकृतिक मैथुन इस राशि को अप्रिय लगता है।
धनाधीश कुबेर
धनाधीश कुबेर
पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भरद्वाज की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेर जी की उत्पत्ति हुई। भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोक पाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है।श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्ट-दन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी पुरी में विराजते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। इनके पुत्र नल-कुबर और मणि-ग्रीव भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप रहते हैं।
प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू-गर्भ-स्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में `निधि´ सजीव मानी गई है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य-सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है। कुबेर धनपति हैं, जहाँ कहीं भी धन है, उसके ये स्वामी हैं। इनके नगर का नाम अलकापुरी है। ये एक आँख रखते हैं। एक बार भगवती उमा पर इनकी कु-दृष्टि गई, तो एक नेत्र नष्ट हो गया तथा दूसरा नेत्र पीला हो गया। अत: ये एक आँख वाले पिंगली कहे जाते हैं। इनकी पीठ पर कूबड़ है। अस्त्र गदा है, वाहन नर है अर्थात् पालकी पर बैठकर चलते हैं।रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य हुये और इनके वैश्रवण नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम कुबेर था। अपने पिता को छोड़कर ये अपने पितामह ब्रह्मा के पास चले गये और उनकी सेवा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया, साथ ही धन का स्वामी बनाकर लंका का अधिपति बना दिया। साथ ही पुष्पक विमान प्रदान किया।पुलस्त्य ऋषि ने अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र पैदा किया, जिसने अपने भाई कुबेर को बड़े क्रूर भाव से देखा। तब कुबेर ने अपने पिता को सन्तुष्ट करने के लिये तीन राक्षसियाँ भेंट की, जिनके नाम पुष्पोलट, मालिनी और रामा थे। पुष्पोलट से रावण और कुम्भकर्ण, मालिनी से विभीषण एवं रामा से खर, दूषण व सूर्पणखा उत्पन्न हुये। ये सभी सौतेले भाई कुबेर की सम्पत्ति देखकर उनसे द्वेष करने लगे। रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनसे मनचाहा रूप धारण करने एवं सिर कट जाने पर फिर से आ जाने का वर प्राप्त किया। वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। अन्त में कुबेर गन्धमादन पर्वत पर चले गये। कुबेर की पत्नी दानव मूर की कन्या की बेटी थी। उनके पुत्रों के नाम नल-कुबर और मणि-ग्रीव तथा पुत्री मिनाक्षी थी।बोद्ध ग्रन्थ `दीर्घ-निकाय´ के अनुसार कुबेर पुर्व जन्म में ब्राह्मण थे। वे ईख के खेतों के स्वामी थे। एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे। इस प्रकार वह 20 हजार वर्षों तक दान करते रहे, जिसके फल-स्वरूप इनका जन्म देवों के वंश में हुआ।`शतपथ-ब्राह्मण´ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और चोरों तथा दुष्टों का स्वामी बताया गया है। कुबेर यक्षों के नेता हैं। जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, वेद साहित्य में `कुबेर´ नाम से ही इनका उल्लेख है। ये उत्तर दिशा के दिक्-पाल हैं। इन्हें सोना बनाने की कला का मर्मज्ञ भी बताया जाता है। इनकी अलका पुरी, जो कैलास पर्वत पर बतायी जाती है, अत्यन्त मनोरम है। यहीं से अलकनंदा निकली है।कौटिल्य के अनुसार कूबेर की मुर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिये। कुबेर का निवास वट-वृक्ष कहा गया है। `वाराह-पुराण´ के अनुसार कुबेर की पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन की जाती है। वर्त्तमान में दीपावली पर धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है। कुबेर को प्रसन्न करने के लिये महा-मृत्युंजय मन्त्र का दस हजार जप आवश्यक है।
कुबेर मन्त्र -विनियोग - ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:।ऋष्यादि-न्यास - विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
षडग्-न्यास
कर-न्यास
अग्-न्यास
ॐ यक्षाय
अंगुष्ठाभ्यां नम:
हृदयाय नम:
ॐ कुबेराय
तर्जनीभ्यां स्वाहा
शिरसे स्वाहा
ॐ वैश्रवणाय
मध्यमाभ्यां वषट्
शिखायै वषट्
ॐ धन-धान्यधिपतये
अनामिकाभ्यां हुं
कवचाय हुं
ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे
कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ देही दापय स्वाहा
करतल करपृष्ठाभ्यां फट्
अस्त्राय फट्
ध्यान -
मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्।
शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।।
मन्त्र -
``ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्याधिपतये धन-धान्य-समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।´´
उक्त मन्त्र का एक लाख जप करने पर सिद्धि होती है।
पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भरद्वाज की कन्या इलविला का पाणिग्रहण किया। उसी से कुबेर जी की उत्पत्ति हुई। भगवान् ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। ये तप करके उत्तर दिशा के लोक पाल हुए। कैलास के समीप इनकी अलकापुरी है।श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्ट-दन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेरजी अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी पुरी में विराजते हैं। इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं। इनके पुत्र नल-कुबर और मणि-ग्रीव भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप रहते हैं।
प्राचीन ग्रीक भी प्लूटो नाम से धनाधीश को मानते हैं। पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेरजी हैं। इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू-गर्भ-स्थित निधि प्राप्त होती है। निधि-विद्या में `निधि´ सजीव मानी गई है, जो स्वत: स्थानान्तरित होती है। भगवान् शंकर ने इन्हें अपना नित्य-सखा स्वीकार किया है। प्रत्येक यज्ञान्त में इन वैश्रवण राजाधिराज को पुष्पांजलि दी जाती है। कुबेर धनपति हैं, जहाँ कहीं भी धन है, उसके ये स्वामी हैं। इनके नगर का नाम अलकापुरी है। ये एक आँख रखते हैं। एक बार भगवती उमा पर इनकी कु-दृष्टि गई, तो एक नेत्र नष्ट हो गया तथा दूसरा नेत्र पीला हो गया। अत: ये एक आँख वाले पिंगली कहे जाते हैं। इनकी पीठ पर कूबड़ है। अस्त्र गदा है, वाहन नर है अर्थात् पालकी पर बैठकर चलते हैं।रामायण के उत्तर काण्ड के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य हुये और इनके वैश्रवण नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम कुबेर था। अपने पिता को छोड़कर ये अपने पितामह ब्रह्मा के पास चले गये और उनकी सेवा करने लगे। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया, साथ ही धन का स्वामी बनाकर लंका का अधिपति बना दिया। साथ ही पुष्पक विमान प्रदान किया।पुलस्त्य ऋषि ने अपने शरीर से एक दूसरा पुत्र पैदा किया, जिसने अपने भाई कुबेर को बड़े क्रूर भाव से देखा। तब कुबेर ने अपने पिता को सन्तुष्ट करने के लिये तीन राक्षसियाँ भेंट की, जिनके नाम पुष्पोलट, मालिनी और रामा थे। पुष्पोलट से रावण और कुम्भकर्ण, मालिनी से विभीषण एवं रामा से खर, दूषण व सूर्पणखा उत्पन्न हुये। ये सभी सौतेले भाई कुबेर की सम्पत्ति देखकर उनसे द्वेष करने लगे। रावण ने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उनसे मनचाहा रूप धारण करने एवं सिर कट जाने पर फिर से आ जाने का वर प्राप्त किया। वर पाकर वह लंका आया और कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया। अन्त में कुबेर गन्धमादन पर्वत पर चले गये। कुबेर की पत्नी दानव मूर की कन्या की बेटी थी। उनके पुत्रों के नाम नल-कुबर और मणि-ग्रीव तथा पुत्री मिनाक्षी थी।बोद्ध ग्रन्थ `दीर्घ-निकाय´ के अनुसार कुबेर पुर्व जन्म में ब्राह्मण थे। वे ईख के खेतों के स्वामी थे। एक कोल्हू की आय वे दान कर देते थे। इस प्रकार वह 20 हजार वर्षों तक दान करते रहे, जिसके फल-स्वरूप इनका जन्म देवों के वंश में हुआ।`शतपथ-ब्राह्मण´ में कुबेर को राक्षस बताया गया है और चोरों तथा दुष्टों का स्वामी बताया गया है। कुबेर यक्षों के नेता हैं। जैन, बौद्ध, ब्राह्मण, वेद साहित्य में `कुबेर´ नाम से ही इनका उल्लेख है। ये उत्तर दिशा के दिक्-पाल हैं। इन्हें सोना बनाने की कला का मर्मज्ञ भी बताया जाता है। इनकी अलका पुरी, जो कैलास पर्वत पर बतायी जाती है, अत्यन्त मनोरम है। यहीं से अलकनंदा निकली है।कौटिल्य के अनुसार कूबेर की मुर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिये। कुबेर का निवास वट-वृक्ष कहा गया है। `वाराह-पुराण´ के अनुसार कुबेर की पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन की जाती है। वर्त्तमान में दीपावली पर धनतेरस को इनकी पूजा की जाती है। कुबेर को प्रसन्न करने के लिये महा-मृत्युंजय मन्त्र का दस हजार जप आवश्यक है।
कुबेर मन्त्र -विनियोग - ॐ अस्य मन्त्रस्य विश्रवा ऋषि:, वृहती छन्द:, कुबेर: देवता, सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोग:।ऋष्यादि-न्यास - विश्रवा-ऋषये नम: शिरसि, वृहती-छन्दसे नम: मुखे, कुबेर-देवतायै नम: हृदि। सर्वेष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
षडग्-न्यास
कर-न्यास
अग्-न्यास
ॐ यक्षाय
अंगुष्ठाभ्यां नम:
हृदयाय नम:
ॐ कुबेराय
तर्जनीभ्यां स्वाहा
शिरसे स्वाहा
ॐ वैश्रवणाय
मध्यमाभ्यां वषट्
शिखायै वषट्
ॐ धन-धान्यधिपतये
अनामिकाभ्यां हुं
कवचाय हुं
ॐ धन-धान्य-समृद्धिं मे
कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ देही दापय स्वाहा
करतल करपृष्ठाभ्यां फट्
अस्त्राय फट्
ध्यान -
मनुज बाह्य विमान स्थितम्, गरूड़ रत्न निभं निधि नायकम्।
शिव सखं मुकुटादि विभूषितम्, वर गदे दधतं भजे तुन्दिलम्।।
मन्त्र -
``ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्याधिपतये धन-धान्य-समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।´´
उक्त मन्त्र का एक लाख जप करने पर सिद्धि होती है।
राशि और सैक्स - मिथुन राशि
राशि और सैक्स - मिथुन राशि
Sign & Sex - Gemini
इस राशि का ग्रह बुध माना गया है। अधिपति देवता विष्णु है। लिंग पुरूष है। राषि उभयोदय है, तत्व आकाश, स्वभाव द्विस्वभाव, रंग हरा, निवास गांव या शयन कक्ष आकार त्रिभुज, दिशा दक्षिण पूर्व है। ऋतु शरद रत्न पन्ना प्रकृत्ति पित्त स्वाद अम्ल और मिश्रित रक्त और वीर्य धातु मूत्र मिश्र संज्जक है। वेद अथर्ववेद जाति वैश्य है। खगोल विज्ञान के अनुसार बुध को सूर्य का निकटतम ग्रह माना गया है। तापमान 770 डिग्री फारेनहाइट है। इसकी परिक्रमा गति सबसे तेज है। इस ग्रह पर पृथ्वी से 8 गुना अधिक धूप पड़ती है। इस राशि का जो खंड सौरमण्डल में है, उसमें ऐसा प्रतीत होता है, मानो एक आकृति वीणावादन कर रही है और दूसरी उसे ध्यान से सुन रही है। उक्त गुणों से ही इस राशि के जातकों का विवाह और दाम्पत्य जीवन और सैक्स का पता लग जाता है। मेष और वृष राशि की भांति इनका विवाह शीघ्र हो जाता है, किन्तु इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व अधिक और स्त्रियों में पुरूषत्व अधिक होता है। अधिकांश के दाढ़ी-मूंछ होते ही नहीं या वहां पर केवल रोम होते हैं। इस राशि के पुरूष ही प्रायः हिंजड़ा बनता है। पुरूषेन्द्रिय प्रायः अशक्त, लघु, पतली तथा सामान्य लम्बी होती है। स्त्री अंग त्रिकोण के समान होता है, नीचे से संकरा और ऊपर की ओर शनैः-शनैः बढ़ता जाता है। स्तन भी प्रायः त्रिभुजाकार होते हैं। इनका शरीर सामान्यतः सन्तुलित होता है। स्त्री की आंखों में लालिमा अधिक होती है। इस राशि की स्त्रियों में ही पुरूष की अपेक्षा आठ गुना अधिक कामाग्नि होती है। इनका विवाहित जीवन प्रचण्ड कामतुष्टि के साथ साथ हमेशा वाद-विवादमय रहता है। इस राशि का उत्तेजना केन्द्र गले और बांहों में कहीं भी हो सकता है। बांहें सहलाने, दबाने, या पकड़ने से इनको सुख मिलता है और उत्तेजित होते हैं। द्विस्वभाव के कारण एक बात पर टिक नहीं पाते हैं। इस राशि के जातक का मैथुन अत्यन्त चंचल है। मैथुन के दौरान पल-पल स्थिति बदलते रहते हैं। उभयोदय राशि के कारण एक दिशा से नहीं, उपदिशा, उलट पलट मैथुन इनका स्वभाव होता है। दिवा-रात्री बली होने के कारण दिन-रात कभी भी इनको मैथुन से सुख ही मिलता है। शयनकक्ष में बिस्तर जरूरी है। यह कुछ-न-कुछ बिछा जरूर लेते हैं। नंगी पृथ्वी पर मैथुन करना पसन्द नहीं है। इनकी कामवासना मेष-वृषभ से ज्यादा होती है। दक्षिण-पूर्व दिशा में मुख करके सम्भोग करने से अपने सुख को बढ़ा सकते हैं। इस राशि का जातक मौन मिथुन नहीं करता। (आकृति गुण) इसके मैथुन में नाना प्रकार की ध्वनियों, सीत्कारें, थपथपाहट होती है ताकि राशि गुण (शयनकक्ष, गांव) होने से (गांव वाले दूसरे लोग भी सुन लें) प्रभाव पड़ता है। व्यर्थ ध्वनियां बेहद करते हैं, जो सरलता से सुनायी पड़ जाती है। प्रारम्भिक क्रिया के दौरान, अन्त में इनका प्रेमालाप, प्रेम क्रियाएं चलती रहती है। निवास शयनकक्ष, गाँव होने से यह शयनकक्ष में या कहीं भी मैथुन कर सकता है। इनको इस बात की चिन्ता नहीं होती है कि कोई देख रहा है। इसके लिये लोकलाज नहीं के बराबर होती है। यह अपनी प्रेमिका / प्रेमी, पत्नी / पति से बहुत प्यार करते हैं और बड़ी भावुकता के साथ प्यार करते हैं। जल्दी छोड़ते नहीं हैं। मैथुन प्रेमालाप के समय के मध्य आंसू, मुस्कान का मेल बराबर होता है। अभी आंसू बहाया, अगले पल मुस्कराया; इनको सन्तोष नहीं होता। यह विवाह के प्रारम्भिक दिनों में रात-दिन मिलाकर चार-पाँच-सात बार भोग कर डालते हैं। सबके देखते देखते दरवाजा बंद कर क्रिया शुरू कर देंगे। इनको यह अहसास नहीं होता कि परिवार के अन्य सदस्य क्या सोच रहे होंगे। निर्लज्जता इनके मैथुन का गुण है।तत्त्व आकाश है, कल्पनायें ज्यादा करते हैं। जाति वैश्य होने से सैक्स में भी सौदेबाजी करते हैं, पहले यह करो, तब इच्छा पूर्ति होगी- इनकी साधारण आदत होती है। जब भी कोई नयी वस्तु पत्नी / प्रेमिका को देंगे, उतने ही मूल्य का, ज्यादा कीमती होने पर कठोर और देर तक, कम कीमती होने पर कुछ देर, साधारण मैथुन अवश्य करेंगे। उसी दिन अपना मूल्य वसूल लेंगे, छोड़ने वाले नहीं हैं। वेश्यागामी होने पर पूरी कीमत उसके शरीर से वसूल लेंगे।इनकी गति तेज होती हैं। मैथुन भी तेजी से करना कराना पसन्द करते हैं। इस राशि की स्त्रियां जून-जुलाई माह में विशेष रूप से गर्भवती होती है। रंग हरा होने के कारण यह सावन के अंधे की तरह हर जगह हरियाली ही देखते हैं। इस कारण प्रायः इनका प्रेम असफल रहता है। कल्पना खूब कर लेते हैं, हाथ नहीं लगा पाते। निवास शयन कक्ष है। अतएव रसिक बातें खूब करते है और मैथुन चर्चा में बड़ा आनन्द पाते हैं।इस राशि का दाम्पत्य जीवन कहा सुनी से भरा होने के बाद भी निभ जाता है। क्षण में माशा क्षण में तोला। इस राषि की स्त्रियां अत्यन्त भावुक होती है। इस राशि के जातकों के गुप्त सम्बन्ध प्रायः प्रकट हो जाते हैं। इनके प्रेम पत्र अत्यन्त लम्बे और खूब भावुकता पूर्ण होते हैं। प्रेमपत्रों में मैथुन-चर्चा अवश्य लिखते हैं। ‘तुम्हें बहुत-बहुत प्यार’ के स्थान पर ‘चुम्बन’ लिखना और संभोग की बातें करना जरूर रहता है।सन्तान के प्रति इनका व्यवहार बड़ा भावुकता पूर्ण होता है। उनको अनुशासन में नहीं रख पाते और प्रायः लाड़-प्यार में बिगाड़ दिया करते हैं। इनको सन्तान कम होती है। गुप्त रोग कम होते हैं। यह गर्भ के दिन पूरे होने पर भी संभोग करने से नहीं मानते हैं। प्रेम में अपनी भावुकता के कारण घर से भागना, आत्महत्या करना, परिवार की नेक सलाह को ठुकराना इनकी विषेषता है। इस राशि के जातकों का चरित्र प्रायः संदिग्ध दृष्टि से समाज में देखा जाता है।काफी उमर तक यह भोगी होते हैं। इस राशि की स्त्रियों का मासिक धर्म 48/52 के आसपास तक सक्रिय होता है। पुरूष 60/65 तक क्रियाशील रहता है। प्रायः इस राशि की महिला अपने पति को अपना उत्तेजना केन्द्र बतला देती है। आमतौर पर इसका दाम्पत्य जीवन सुखद होता है, पर कामुकता के कारण दूसरा पक्ष यदा-कदा बहुत घबरा जाता है और कलह की गुंजाइश हो जाती है। इस राशि के जातक की सन्तान भी ज्यादा होती है।
Sign & Sex - Gemini
इस राशि का ग्रह बुध माना गया है। अधिपति देवता विष्णु है। लिंग पुरूष है। राषि उभयोदय है, तत्व आकाश, स्वभाव द्विस्वभाव, रंग हरा, निवास गांव या शयन कक्ष आकार त्रिभुज, दिशा दक्षिण पूर्व है। ऋतु शरद रत्न पन्ना प्रकृत्ति पित्त स्वाद अम्ल और मिश्रित रक्त और वीर्य धातु मूत्र मिश्र संज्जक है। वेद अथर्ववेद जाति वैश्य है। खगोल विज्ञान के अनुसार बुध को सूर्य का निकटतम ग्रह माना गया है। तापमान 770 डिग्री फारेनहाइट है। इसकी परिक्रमा गति सबसे तेज है। इस ग्रह पर पृथ्वी से 8 गुना अधिक धूप पड़ती है। इस राशि का जो खंड सौरमण्डल में है, उसमें ऐसा प्रतीत होता है, मानो एक आकृति वीणावादन कर रही है और दूसरी उसे ध्यान से सुन रही है। उक्त गुणों से ही इस राशि के जातकों का विवाह और दाम्पत्य जीवन और सैक्स का पता लग जाता है। मेष और वृष राशि की भांति इनका विवाह शीघ्र हो जाता है, किन्तु इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व अधिक और स्त्रियों में पुरूषत्व अधिक होता है। अधिकांश के दाढ़ी-मूंछ होते ही नहीं या वहां पर केवल रोम होते हैं। इस राशि के पुरूष ही प्रायः हिंजड़ा बनता है। पुरूषेन्द्रिय प्रायः अशक्त, लघु, पतली तथा सामान्य लम्बी होती है। स्त्री अंग त्रिकोण के समान होता है, नीचे से संकरा और ऊपर की ओर शनैः-शनैः बढ़ता जाता है। स्तन भी प्रायः त्रिभुजाकार होते हैं। इनका शरीर सामान्यतः सन्तुलित होता है। स्त्री की आंखों में लालिमा अधिक होती है। इस राशि की स्त्रियों में ही पुरूष की अपेक्षा आठ गुना अधिक कामाग्नि होती है। इनका विवाहित जीवन प्रचण्ड कामतुष्टि के साथ साथ हमेशा वाद-विवादमय रहता है। इस राशि का उत्तेजना केन्द्र गले और बांहों में कहीं भी हो सकता है। बांहें सहलाने, दबाने, या पकड़ने से इनको सुख मिलता है और उत्तेजित होते हैं। द्विस्वभाव के कारण एक बात पर टिक नहीं पाते हैं। इस राशि के जातक का मैथुन अत्यन्त चंचल है। मैथुन के दौरान पल-पल स्थिति बदलते रहते हैं। उभयोदय राशि के कारण एक दिशा से नहीं, उपदिशा, उलट पलट मैथुन इनका स्वभाव होता है। दिवा-रात्री बली होने के कारण दिन-रात कभी भी इनको मैथुन से सुख ही मिलता है। शयनकक्ष में बिस्तर जरूरी है। यह कुछ-न-कुछ बिछा जरूर लेते हैं। नंगी पृथ्वी पर मैथुन करना पसन्द नहीं है। इनकी कामवासना मेष-वृषभ से ज्यादा होती है। दक्षिण-पूर्व दिशा में मुख करके सम्भोग करने से अपने सुख को बढ़ा सकते हैं। इस राशि का जातक मौन मिथुन नहीं करता। (आकृति गुण) इसके मैथुन में नाना प्रकार की ध्वनियों, सीत्कारें, थपथपाहट होती है ताकि राशि गुण (शयनकक्ष, गांव) होने से (गांव वाले दूसरे लोग भी सुन लें) प्रभाव पड़ता है। व्यर्थ ध्वनियां बेहद करते हैं, जो सरलता से सुनायी पड़ जाती है। प्रारम्भिक क्रिया के दौरान, अन्त में इनका प्रेमालाप, प्रेम क्रियाएं चलती रहती है। निवास शयनकक्ष, गाँव होने से यह शयनकक्ष में या कहीं भी मैथुन कर सकता है। इनको इस बात की चिन्ता नहीं होती है कि कोई देख रहा है। इसके लिये लोकलाज नहीं के बराबर होती है। यह अपनी प्रेमिका / प्रेमी, पत्नी / पति से बहुत प्यार करते हैं और बड़ी भावुकता के साथ प्यार करते हैं। जल्दी छोड़ते नहीं हैं। मैथुन प्रेमालाप के समय के मध्य आंसू, मुस्कान का मेल बराबर होता है। अभी आंसू बहाया, अगले पल मुस्कराया; इनको सन्तोष नहीं होता। यह विवाह के प्रारम्भिक दिनों में रात-दिन मिलाकर चार-पाँच-सात बार भोग कर डालते हैं। सबके देखते देखते दरवाजा बंद कर क्रिया शुरू कर देंगे। इनको यह अहसास नहीं होता कि परिवार के अन्य सदस्य क्या सोच रहे होंगे। निर्लज्जता इनके मैथुन का गुण है।तत्त्व आकाश है, कल्पनायें ज्यादा करते हैं। जाति वैश्य होने से सैक्स में भी सौदेबाजी करते हैं, पहले यह करो, तब इच्छा पूर्ति होगी- इनकी साधारण आदत होती है। जब भी कोई नयी वस्तु पत्नी / प्रेमिका को देंगे, उतने ही मूल्य का, ज्यादा कीमती होने पर कठोर और देर तक, कम कीमती होने पर कुछ देर, साधारण मैथुन अवश्य करेंगे। उसी दिन अपना मूल्य वसूल लेंगे, छोड़ने वाले नहीं हैं। वेश्यागामी होने पर पूरी कीमत उसके शरीर से वसूल लेंगे।इनकी गति तेज होती हैं। मैथुन भी तेजी से करना कराना पसन्द करते हैं। इस राशि की स्त्रियां जून-जुलाई माह में विशेष रूप से गर्भवती होती है। रंग हरा होने के कारण यह सावन के अंधे की तरह हर जगह हरियाली ही देखते हैं। इस कारण प्रायः इनका प्रेम असफल रहता है। कल्पना खूब कर लेते हैं, हाथ नहीं लगा पाते। निवास शयन कक्ष है। अतएव रसिक बातें खूब करते है और मैथुन चर्चा में बड़ा आनन्द पाते हैं।इस राशि का दाम्पत्य जीवन कहा सुनी से भरा होने के बाद भी निभ जाता है। क्षण में माशा क्षण में तोला। इस राषि की स्त्रियां अत्यन्त भावुक होती है। इस राशि के जातकों के गुप्त सम्बन्ध प्रायः प्रकट हो जाते हैं। इनके प्रेम पत्र अत्यन्त लम्बे और खूब भावुकता पूर्ण होते हैं। प्रेमपत्रों में मैथुन-चर्चा अवश्य लिखते हैं। ‘तुम्हें बहुत-बहुत प्यार’ के स्थान पर ‘चुम्बन’ लिखना और संभोग की बातें करना जरूर रहता है।सन्तान के प्रति इनका व्यवहार बड़ा भावुकता पूर्ण होता है। उनको अनुशासन में नहीं रख पाते और प्रायः लाड़-प्यार में बिगाड़ दिया करते हैं। इनको सन्तान कम होती है। गुप्त रोग कम होते हैं। यह गर्भ के दिन पूरे होने पर भी संभोग करने से नहीं मानते हैं। प्रेम में अपनी भावुकता के कारण घर से भागना, आत्महत्या करना, परिवार की नेक सलाह को ठुकराना इनकी विषेषता है। इस राशि के जातकों का चरित्र प्रायः संदिग्ध दृष्टि से समाज में देखा जाता है।काफी उमर तक यह भोगी होते हैं। इस राशि की स्त्रियों का मासिक धर्म 48/52 के आसपास तक सक्रिय होता है। पुरूष 60/65 तक क्रियाशील रहता है। प्रायः इस राशि की महिला अपने पति को अपना उत्तेजना केन्द्र बतला देती है। आमतौर पर इसका दाम्पत्य जीवन सुखद होता है, पर कामुकता के कारण दूसरा पक्ष यदा-कदा बहुत घबरा जाता है और कलह की गुंजाइश हो जाती है। इस राशि के जातक की सन्तान भी ज्यादा होती है।
राशि और सैक्स - वृष राशि
राशि और सैक्स - वृष राशि
Sign & Sex - Taurus
इस राशि की आकृति बैल के समान है। इस राशि के जातक में ज्येष्ठ (मई-जून) में अधिक वासना रहती है। स्त्रियों में गर्भाधान या प्रसव का यही समय है। इस राशि के जातकों के चेहरे प्रायः कांतिवान होते हैं। रूपरंग विशेष न होने के बावजूद चेहरा मोहक होता है। इस राशि के पुरूषांग बैल के समान होता है। स्त्री अंग आम के पत्ते के समान होता है। इस राशि के स्त्री-पुरूष विशेष सुन्दर नहीं होते हैं, किन्तु इनके जीवन साथी प्रायः सुन्दर मिलते हैं। सन्तानवान् होते हैं। जीवन साथी के प्रति वफादार होते हैं। कामुकता ज्यादा होती है, किन्तु प्रेम स्थायी होता है।यह एक स्थिर राशि है, इस कारण इस राशि के जातक स्थिर भाव से मैथुन करते हैं, बार-बार आसन नहीं बदलते। रात्रिबली राशि होने से रात्री में ही सम्भोग करना इसे अच्छा लगता है। निवास स्थान खेत या मैदान होने के कारण इनको खुले में ज्यादा सुख मिलता है, कमरे की खिड़की आदि अवश्य खुली रखेंगे। तत्त्व पृथ्वी होने से बिस्तर पर कम, जमीन, फर्श पर अथवा नंगी भूमि पर इनको विशेष सुख मिलता है।इस राशि के जातक का उत्तेजना केन्द्र चेहरे या गले में कहीं भी हो सकता है। प्रायः कंधे पर दाँतों का प्रयोग विशेष प्रिय है। इस राशि का पुरूष प्रायः इस क्रिया में अपनी पत्नी के कंधों को मजबूती से पकड़ता है। चुम्बन प्रयोग से जिस स्थान के स्पर्श से जातक आकुल-व्याकुल हो जाये वही उत्तेजना स्थल हो सकता है। प्रायः इस राशि की स्त्रियों के कुचाग्र चूसने पर यह शीघ्र उत्तेजित और स्खलित हो जाती है।राशि ब्राह्मण होने के कारण उसकी क्रिया शांत, हौले-हौले चलती है। मारकाट या युद्ध वाली स्थिति नहीं रहा करती है। मेष राशि के ही समान इस राशि को अपनी दिशा पूर्व की ओर मुख करके इस कार्य को करना चाहिये। इस राशि के जातकों को चतुष्पद जीवन अत्यन्त प्रिय होता है। इनका यह कर्म बड़ा प्यार और धीमी गति से (बैल गति) चलता है। पहले, क्रिया के दौरान और अन्त में आलिंगन-चुम्बन बराबर करते हैं। इस राशि के जातक के नथुने क्रियारत दशा में तेजी के साथ फूलते-पिचकते हैं। साथ ही यह लम्बी-लम्बी सांसें छोड़ते हैं। बैल का यह गुण अवश्य होता है। वह शांति और धैर्य के साथ मैथुन करते हैं। स्तम्भन शक्ति क्षीण होती है। स्तम्भन शक्ति की क्षीणता के कारण पुरूष बार बार मैथुन करने का आदी होता है। इस राशि के जातकों की स्खलन की मात्रा भी रूक-रूककर अधिक होती है।नक्षत्र गुण (कृतिका, रोहिणी व मृगशिरा) चंचलता, किन्तु सुन्दरता के साथ, धैर्य के साथ क्रिया करते हैं। कृतिका के (3 चरण) के कारण इनकी क्रिया में थोड़ी अशुचिता (मेष से कुछ अधिक) होती है। इसके बावजूद यह पवित्रता का ध्यान रखते हैं। इस राशि के पुरूष को अपने पौरूष बड़ा घमण्ड होता है तथा अपने मित्रों के सम्मुख अपना पौरूष खुब बढ़ा-चढ़ाकर बतलाता है। इस राशि की स्त्री भी अपने पति के गुण बढ़ा-चढ़ाकर सहेलियों को बतलाती है।इस राशि के जातक गुप्तेन्द्रिय और मुख का प्रायः सम्बन्ध बना लेते हैं, यह इनकी आकृति का स्वभाव है। यह सहजता के साथ इस क्रिया को करते हैं। सामान्यतः यह परस्पर पूर्ण तृप्त होकर ही विलग होते हैं। भिन्न राशि से मिलन के बावजूद इस राशि का दूसरी राशि का चतुराई के साथ मेल बैठ जाता है।दाम्पत्य जीवन के सुख में बाधा नहीं पड़ने देते हैं। अधिकतर परस्त्रीगामी होते हैं। विवाहित स्त्रियों की ओर इनका विशेष झुकाव होता है। यह कलह और शौर-शराबे से दूर रहते हैं। विलासिता की वस्तुओं के प्रति इनके मन में बड़ा लगाव होता है। बनाव श्रृगांर इनको विशेष प्रिय होता है। मनोरंजन में इनका बड़ा मन लगता है। तांक-झांक करने और निरर्थक सुन्दर स्त्रियों का पीछा करने की इनको आदत होती है। अवैध सम्बन्ध अत्यन्त सावधानी के साथ करते हैं। अपयश से बचते हैं।इस राशि के स्त्री-पुरूषों को नाच गाने में विशेष रूचि रखते हैं। इस गुण का उपयोग यह सम्भोग से पूर्व अथवा दौरान अवश्य करते हैं। ऐसे अवसर पर इनको संगीतमय वातावरण विशेष प्रिय होता है। इस राशि का मैथुन जीवन प्रायः सुखद रहता है। पत्नी इस राशि के पुरूष से संतुष्ट रहती है और स्त्री वृष हो, पुरूष अन्य राशि का हो तो अपना तालमेल बैठा लेती हैं। अनुकूल बना लेना इस राशि का स्वभाव है। लिंग से यह स्त्री राशि है, किन्तु अपने में पूरा पौरूष रखती है।इस राषि की महिलाओं के स्तन बैल के सीगों के समान नुकीले और ऊर्ध्वगामी होते हैं। कमर विशेषतः मोटी होती है। पनीली आंखें इनकी विषेषता है। बनाव श्रृगांर में सबसे अधिक समय लगता है। अशुभ प्रभाव में हो तो विवाहित पुरूष या अपने से कम आयु के युवक के साथ सम्बन्ध इनको रूचिकर लगता है अन्यथा पति के प्रति वफादार होती हैं। इनका काम उग्र होता है। घर गृहस्थी के कामों में कुशल तथा अधिकतर नौकरीपैशा होती हैं। पुरूषों की तरह उपार्जन करना इनका विशेष गुण होता है। अधिकतर स्वभाव उग्र होता है और हाथ उठाने में पहल करती हैं। विशेष चिन्ह् या प्रभाव न हो तो यावज्जीवन पति को सुख देती हैं। अधिकतर पुत्र पैदा करती है। कन्याओं की संख्या कम होती है।अपने परिश्रम और रूचि से इस राशि की महिलाएं घर को स्वर्ग बना देती है। इस राशि की महिलाओं के चरण शुभ माने गये हैं। यह विवाह के बाद ससुराल का कायाकल्प कर देती है। इस राशि के पुरूषों में गजब का धैर्य और सहनशीलता होती है। प्रसव के समय स्त्री और संकट के समय पुरूष अत्यन्त साहस से काम लेते हैं।पुरूषों को गुर्दों का रोग होता है। गुप्त रोग विशेष रूप से होता है। धातु दौर्बल्य, मूत्ररोग प्रमुख होते हैं। महिलाओं को मुहांसों की बीमारी ज्यादातर होती है। माहवारी अक्सर अनियमित होती है। उदर पीड़ा, शूल, गले और नैत्र, नाक के रोग प्रायः होते हैं। इससे इनका सैक्स दुर्बल होता है। इस राशि की महिलायें मैथुन में प्रायः कम रूचि रखती हैं। सहजता से तैयार हो जाती हैं, किन्तु उसमें रस नहीं लेती। सहजता के साथ अपनी दिनचर्या मान लेती हैं। रसिकता भरी बातों में इनको कोई रूचि नहीं होती। इनके प्रेम पत्र कामकाजी ज्यादा होते हैं। प्यार के उद्गार कम लिखा करती हैं। अपने श्रृगांर के प्रति सतर्क रहती हैं। किसी के यहां शोक प्रकट करने जाने के समय भी बन संवर कर जाना नहीं भूलेंगी।अपने सन्तान के प्रति बहुत ममता होती है। प्रौढावस्था में उत्पन्न पुत्र से इस राशि के जातकों को विशेष लगाव होता है। यह इनकी भाग्यशाली सन्तान होती है। अपने उग्र स्वभाव, हठवादिता और कामुकता के बावजूद दोनों का दाम्पत्य जीवन निभ जाता है। इस राशि की महिलाएं बहुत कम तलाक या दूसरी शादी जैसी स्थिति से गुजरती हैं। यह पति का साथ निभा ले जाती है।
Sign & Sex - Taurus
इस राशि की आकृति बैल के समान है। इस राशि के जातक में ज्येष्ठ (मई-जून) में अधिक वासना रहती है। स्त्रियों में गर्भाधान या प्रसव का यही समय है। इस राशि के जातकों के चेहरे प्रायः कांतिवान होते हैं। रूपरंग विशेष न होने के बावजूद चेहरा मोहक होता है। इस राशि के पुरूषांग बैल के समान होता है। स्त्री अंग आम के पत्ते के समान होता है। इस राशि के स्त्री-पुरूष विशेष सुन्दर नहीं होते हैं, किन्तु इनके जीवन साथी प्रायः सुन्दर मिलते हैं। सन्तानवान् होते हैं। जीवन साथी के प्रति वफादार होते हैं। कामुकता ज्यादा होती है, किन्तु प्रेम स्थायी होता है।यह एक स्थिर राशि है, इस कारण इस राशि के जातक स्थिर भाव से मैथुन करते हैं, बार-बार आसन नहीं बदलते। रात्रिबली राशि होने से रात्री में ही सम्भोग करना इसे अच्छा लगता है। निवास स्थान खेत या मैदान होने के कारण इनको खुले में ज्यादा सुख मिलता है, कमरे की खिड़की आदि अवश्य खुली रखेंगे। तत्त्व पृथ्वी होने से बिस्तर पर कम, जमीन, फर्श पर अथवा नंगी भूमि पर इनको विशेष सुख मिलता है।इस राशि के जातक का उत्तेजना केन्द्र चेहरे या गले में कहीं भी हो सकता है। प्रायः कंधे पर दाँतों का प्रयोग विशेष प्रिय है। इस राशि का पुरूष प्रायः इस क्रिया में अपनी पत्नी के कंधों को मजबूती से पकड़ता है। चुम्बन प्रयोग से जिस स्थान के स्पर्श से जातक आकुल-व्याकुल हो जाये वही उत्तेजना स्थल हो सकता है। प्रायः इस राशि की स्त्रियों के कुचाग्र चूसने पर यह शीघ्र उत्तेजित और स्खलित हो जाती है।राशि ब्राह्मण होने के कारण उसकी क्रिया शांत, हौले-हौले चलती है। मारकाट या युद्ध वाली स्थिति नहीं रहा करती है। मेष राशि के ही समान इस राशि को अपनी दिशा पूर्व की ओर मुख करके इस कार्य को करना चाहिये। इस राशि के जातकों को चतुष्पद जीवन अत्यन्त प्रिय होता है। इनका यह कर्म बड़ा प्यार और धीमी गति से (बैल गति) चलता है। पहले, क्रिया के दौरान और अन्त में आलिंगन-चुम्बन बराबर करते हैं। इस राशि के जातक के नथुने क्रियारत दशा में तेजी के साथ फूलते-पिचकते हैं। साथ ही यह लम्बी-लम्बी सांसें छोड़ते हैं। बैल का यह गुण अवश्य होता है। वह शांति और धैर्य के साथ मैथुन करते हैं। स्तम्भन शक्ति क्षीण होती है। स्तम्भन शक्ति की क्षीणता के कारण पुरूष बार बार मैथुन करने का आदी होता है। इस राशि के जातकों की स्खलन की मात्रा भी रूक-रूककर अधिक होती है।नक्षत्र गुण (कृतिका, रोहिणी व मृगशिरा) चंचलता, किन्तु सुन्दरता के साथ, धैर्य के साथ क्रिया करते हैं। कृतिका के (3 चरण) के कारण इनकी क्रिया में थोड़ी अशुचिता (मेष से कुछ अधिक) होती है। इसके बावजूद यह पवित्रता का ध्यान रखते हैं। इस राशि के पुरूष को अपने पौरूष बड़ा घमण्ड होता है तथा अपने मित्रों के सम्मुख अपना पौरूष खुब बढ़ा-चढ़ाकर बतलाता है। इस राशि की स्त्री भी अपने पति के गुण बढ़ा-चढ़ाकर सहेलियों को बतलाती है।इस राशि के जातक गुप्तेन्द्रिय और मुख का प्रायः सम्बन्ध बना लेते हैं, यह इनकी आकृति का स्वभाव है। यह सहजता के साथ इस क्रिया को करते हैं। सामान्यतः यह परस्पर पूर्ण तृप्त होकर ही विलग होते हैं। भिन्न राशि से मिलन के बावजूद इस राशि का दूसरी राशि का चतुराई के साथ मेल बैठ जाता है।दाम्पत्य जीवन के सुख में बाधा नहीं पड़ने देते हैं। अधिकतर परस्त्रीगामी होते हैं। विवाहित स्त्रियों की ओर इनका विशेष झुकाव होता है। यह कलह और शौर-शराबे से दूर रहते हैं। विलासिता की वस्तुओं के प्रति इनके मन में बड़ा लगाव होता है। बनाव श्रृगांर इनको विशेष प्रिय होता है। मनोरंजन में इनका बड़ा मन लगता है। तांक-झांक करने और निरर्थक सुन्दर स्त्रियों का पीछा करने की इनको आदत होती है। अवैध सम्बन्ध अत्यन्त सावधानी के साथ करते हैं। अपयश से बचते हैं।इस राशि के स्त्री-पुरूषों को नाच गाने में विशेष रूचि रखते हैं। इस गुण का उपयोग यह सम्भोग से पूर्व अथवा दौरान अवश्य करते हैं। ऐसे अवसर पर इनको संगीतमय वातावरण विशेष प्रिय होता है। इस राशि का मैथुन जीवन प्रायः सुखद रहता है। पत्नी इस राशि के पुरूष से संतुष्ट रहती है और स्त्री वृष हो, पुरूष अन्य राशि का हो तो अपना तालमेल बैठा लेती हैं। अनुकूल बना लेना इस राशि का स्वभाव है। लिंग से यह स्त्री राशि है, किन्तु अपने में पूरा पौरूष रखती है।इस राषि की महिलाओं के स्तन बैल के सीगों के समान नुकीले और ऊर्ध्वगामी होते हैं। कमर विशेषतः मोटी होती है। पनीली आंखें इनकी विषेषता है। बनाव श्रृगांर में सबसे अधिक समय लगता है। अशुभ प्रभाव में हो तो विवाहित पुरूष या अपने से कम आयु के युवक के साथ सम्बन्ध इनको रूचिकर लगता है अन्यथा पति के प्रति वफादार होती हैं। इनका काम उग्र होता है। घर गृहस्थी के कामों में कुशल तथा अधिकतर नौकरीपैशा होती हैं। पुरूषों की तरह उपार्जन करना इनका विशेष गुण होता है। अधिकतर स्वभाव उग्र होता है और हाथ उठाने में पहल करती हैं। विशेष चिन्ह् या प्रभाव न हो तो यावज्जीवन पति को सुख देती हैं। अधिकतर पुत्र पैदा करती है। कन्याओं की संख्या कम होती है।अपने परिश्रम और रूचि से इस राशि की महिलाएं घर को स्वर्ग बना देती है। इस राशि की महिलाओं के चरण शुभ माने गये हैं। यह विवाह के बाद ससुराल का कायाकल्प कर देती है। इस राशि के पुरूषों में गजब का धैर्य और सहनशीलता होती है। प्रसव के समय स्त्री और संकट के समय पुरूष अत्यन्त साहस से काम लेते हैं।पुरूषों को गुर्दों का रोग होता है। गुप्त रोग विशेष रूप से होता है। धातु दौर्बल्य, मूत्ररोग प्रमुख होते हैं। महिलाओं को मुहांसों की बीमारी ज्यादातर होती है। माहवारी अक्सर अनियमित होती है। उदर पीड़ा, शूल, गले और नैत्र, नाक के रोग प्रायः होते हैं। इससे इनका सैक्स दुर्बल होता है। इस राशि की महिलायें मैथुन में प्रायः कम रूचि रखती हैं। सहजता से तैयार हो जाती हैं, किन्तु उसमें रस नहीं लेती। सहजता के साथ अपनी दिनचर्या मान लेती हैं। रसिकता भरी बातों में इनको कोई रूचि नहीं होती। इनके प्रेम पत्र कामकाजी ज्यादा होते हैं। प्यार के उद्गार कम लिखा करती हैं। अपने श्रृगांर के प्रति सतर्क रहती हैं। किसी के यहां शोक प्रकट करने जाने के समय भी बन संवर कर जाना नहीं भूलेंगी।अपने सन्तान के प्रति बहुत ममता होती है। प्रौढावस्था में उत्पन्न पुत्र से इस राशि के जातकों को विशेष लगाव होता है। यह इनकी भाग्यशाली सन्तान होती है। अपने उग्र स्वभाव, हठवादिता और कामुकता के बावजूद दोनों का दाम्पत्य जीवन निभ जाता है। इस राशि की महिलाएं बहुत कम तलाक या दूसरी शादी जैसी स्थिति से गुजरती हैं। यह पति का साथ निभा ले जाती है।
राशि और सैक्स - मेष राशि
राशि और सैक्स - मेष राशि
Sign & Sex- Aries
इस राशि के पुरूष की इन्द्रिय भेड़ के समान होती है। स्त्री अंग आंवले के आकार का होता है। इस राशि की महिलाओं का चेहरा अधिक लम्बोतरा होता है। इसके स्तन भेड़ के खुर के समान फैले चकले होते हैं। उनमें उठान नहीं होता है। कमर अधिकतर स्थुल होती है।
पुरूष ज्यादातर लम्बे-चौड़े, स्वस्थ होते हैं। इनका विवाह प्रायः शीघ्र हो जाता है। यह रूक रूक कर समागम करते हैं, प्रायः पुरूष होते हैं। स्वभाव में उग्रता के कारण दाम्पत्य जीवन में कलह, मारपीट प्रायः कर डालते हैं। इसके बावजूद भी इनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है। परिवार का ध्यान रखते हैं। पत्नी का साथ निभाते हैं, पर सौन्दर्य प्रेमी और स्त्रियों को आकर्षित करने की क्षमता के कारण प्रायः अवैध सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इस राशि की स्त्रियों को यदि नियन्त्रण में नहीं रखा जाये तो प्रायः पथ-भ्रष्ट हो जाती हैं। सौन्दर्य प्रियता और कला के प्रति इनके रूझान होने के कारण इनको सरलता से बहकाया जा सकता है। अधिक देर तक मैथुन इनको अच्छा लगता है। इस राशि के स्त्री पुरूष प्रेम प्रसंग प्रायः गोपनीय रखते हैं।
पृष्ठोदय राशि के कारण पीठ पीछे इनके दाम्पत्य जीवन और प्रेम प्रसंगों की लोग चर्चा करते हैं, किन्तु सामने कोई नहीं कहता। फिर यह भी गुप्त रूप से कार्य करते हैं। सतर्कता प्यारी होती है। इस राशि के जातक प्रेमपत्र बड़ी संयत और सतर्क भाषा में लिखे होते हैं। अवसर आने पर प्रेमपत्र प्रमाणित नहीं भी हो सकते हैं। प्रायः अपने इच्छित स्त्री-पुरूष से इनका प्रेम सम्बन्ध बन जाया करता है। प्रेम के मामले में ईर्ष्यालु भी होते हैं। प्रेम सम्बन्धी प्रकरणों में यह हिंसक भी हो सकते हैं। पृष्ठोदय राशि एवं गुणचार होने के कारण इनको पृष्ठ भाग से किया गया मैथुन प्रिय होता है। रात्रिबली राशि होने के कारण रात में ही मैथुन सुख अच्छा लगता है। दिन के समय किया गया मैथुन इसको अप्रिय हाता है। उसमें यह रस नहीं लेते।
चर राशि होने से यह चलायमान अर्थात् चंचल होते हैं। इस राशि की स्त्री को शरीर आघातों द्वारा या कंधे पकड़कर, निरन्तर स्तन मंथन करके हिलाते रहना चाहिये। इस राशि के पुरूष को भी इसी प्रकार की लीला में सुख मिलता है। इसी गुण के (चर) कारण इनका प्रेम किसी एक पर स्थिर नहीं रहता। इस राशि का निवास वन है अतः इसे सर्वथा एकान्त चाहिये। घर में कोई जागता रहे, भले ही न देख सके पर उसे इसका आभास होगा तो मन खट्टा हो जायेगा।जाति क्षत्रिय होने के कारण ‘लड़ाकु’ मैथुन प्रिय होता है। अपने सम्पूर्ण हथियारों के साथ एक-दूसरे पर हमला करना इनका विशेष गुण है। चतुष्पद राशि होने के कारण पशु आसन या पृष्ठ भाग से किया गया मैथुन अच्छा लगता है तथा तृप्ति अनुभव करते हैं। तत्व अग्नि होने के कारण काम दम्य रहते हैं तथा पसीना बहुत आता है। मंगल में जल है अतः यह ‘गीले’ बहुत होते हैं अर्थात् क्षण में कामोत्तेजित हो जाते हैं और इनका स्खलन अधिक मात्रा में होता है। कृतिका नक्षत्र का केवल प्रथम चरण (अ) होने के कारण इनका मैथुन कर्म बहुत कम विकृत होता हैं। प्रायः शुचिता का ध्यान रखते हैं। अश्विनी और भरणी के पूरे चारों चरण होने के कारण कुशलतापुर्वक और दृढ़ता के साथ मैथुन कर्म करते हैं।
ग्रह अधिपति गणपति (गणेश) के कारण बड़ी ही चतुराई से कामसुख भोगते हैं। धातु मज्जा होने के कारण इस राशि के पुरूष स्त्री को गर्भवती शीघ्र बनाते हैं। उसमें शुक्राणु अधिक होते हैं। इस राशि का ललाट पर अधिकार होने से उत्तेजना केन्द्र ललाट है, वैसे इस स्त्री को ललाट के अलावा अन्य स्थान (पलक, कपोल, होंठ, नाक, कान, बाल, भौहें आदि) पर भी हो सकते हैं, किन्तु चेहरे से नीचे नहीं। इस राशि की स्त्रियां यदि दशा अनुकूल हो तो प्रायः ग्रीष्म-ऋतु (वैषाख; अप्रेल-मई) में गर्भवती होती हैं। इसकी ऋतु ग्रीष्म है, अतः इस मौसम में इनमें वासना की मात्रा अधिक होती है। प्रायः गर्भाधान व प्रसव का इस राशि की स्त्री का यही समय है।इस राशि की स्त्री के केश, रोम अगर शरीर पर हुए तो बहुत मुलायम होते हैं। आकृति भेड़ होने के कारण स्त्री की त्वचा सुचिक्कण होती है और क्रिया के समय भेड़ के समान सीधेपन का व्यवहार करती है। इस राशि की महिला को सम्भोग के समय धूम्रपान करना अच्छा नहीं लगता और न ही धूम्रपान करना पसन्द करती है। इस राशि के जातक का इन्द्रियज्ञान नैत्र है, अतएव आँखों ही आँखों में यह बहुत कुछ कह डालते हैं। जिह्वा के बदले आँखों से अधिक काम लेते हैं। राशि की उच्चता के कारण अपने से अधिक श्रेष्ठ स्त्री-पुरूष की ओर विशेष झुकाव रखते हैं। आकार ढोल होने के कारण इस राशि की महिलाओं के नितम्ब बड़े होते हैं तथा पुरूषों की प्रायः तोंद निकल आती है। उमर के साथ कामुकता बढ़ती जाती है।इस राशि के जातक दोनों अश्लील वार्ता कम करते हैं और गम्भीरता ओढ़े रखते हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के दौरान या उपरान्त किसी प्रकार के विकृत शब्द नहीं निकालते, इनकी क्रिया सित्कारहीन होती है, ध्वनी नहीं करते हैं। बन्द कमरे के बाहर कान लगाकर सुनना चाहें तो उसको आभास भी नहीं हो सकता है कि अन्दर क्या हो रहा है। इस क्रिया के पूर्व आलिंगन-चुम्बन भी प्रायः काम-चलाऊ ही करते हैं। समाप्ति पर चुपचाप हट जाते हैं, फिर कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है कि इस बात का अनुमान करना कठिन है कि अभी कुछ हुआ है। यह एकदम सामान्य हो जाते हैं।इस राशि की महिलाओं का मासिक धर्म 50 की उमर के बाद तक भी जारी रह सकता है। उन्हें प्रदर रोग आदि कम ही होते हैं। गुप्त रोग या यौन रोग प्रायः इनको नहीं होता।सन्तानों से बड़ा प्यार करते है, अनुशासन इनको प्रिय होता है। फूहड़ हंसी-मजाक इनको अच्छे नहीं लगते, किन्तु पेशाबघरों, सार्वजनिक स्थानों, रेल के डिब्बों, सैलानी स्थानों आदि पर यह गंदे शब्द और चित्र बड़ी तेजी से लिख बना देते हैं, यह इनका विशेष स्वभाव होता है। इस राशि की महिलाओं को अधिक शब्द सुनकर कान बन्द कर लेने की आदत होती है, किन्तु होठों पर मुस्कान होती है।
Sign & Sex- Aries
इस राशि के पुरूष की इन्द्रिय भेड़ के समान होती है। स्त्री अंग आंवले के आकार का होता है। इस राशि की महिलाओं का चेहरा अधिक लम्बोतरा होता है। इसके स्तन भेड़ के खुर के समान फैले चकले होते हैं। उनमें उठान नहीं होता है। कमर अधिकतर स्थुल होती है।
पुरूष ज्यादातर लम्बे-चौड़े, स्वस्थ होते हैं। इनका विवाह प्रायः शीघ्र हो जाता है। यह रूक रूक कर समागम करते हैं, प्रायः पुरूष होते हैं। स्वभाव में उग्रता के कारण दाम्पत्य जीवन में कलह, मारपीट प्रायः कर डालते हैं। इसके बावजूद भी इनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है। परिवार का ध्यान रखते हैं। पत्नी का साथ निभाते हैं, पर सौन्दर्य प्रेमी और स्त्रियों को आकर्षित करने की क्षमता के कारण प्रायः अवैध सम्बन्ध बनाये रखते हैं। इस राशि की स्त्रियों को यदि नियन्त्रण में नहीं रखा जाये तो प्रायः पथ-भ्रष्ट हो जाती हैं। सौन्दर्य प्रियता और कला के प्रति इनके रूझान होने के कारण इनको सरलता से बहकाया जा सकता है। अधिक देर तक मैथुन इनको अच्छा लगता है। इस राशि के स्त्री पुरूष प्रेम प्रसंग प्रायः गोपनीय रखते हैं।
पृष्ठोदय राशि के कारण पीठ पीछे इनके दाम्पत्य जीवन और प्रेम प्रसंगों की लोग चर्चा करते हैं, किन्तु सामने कोई नहीं कहता। फिर यह भी गुप्त रूप से कार्य करते हैं। सतर्कता प्यारी होती है। इस राशि के जातक प्रेमपत्र बड़ी संयत और सतर्क भाषा में लिखे होते हैं। अवसर आने पर प्रेमपत्र प्रमाणित नहीं भी हो सकते हैं। प्रायः अपने इच्छित स्त्री-पुरूष से इनका प्रेम सम्बन्ध बन जाया करता है। प्रेम के मामले में ईर्ष्यालु भी होते हैं। प्रेम सम्बन्धी प्रकरणों में यह हिंसक भी हो सकते हैं। पृष्ठोदय राशि एवं गुणचार होने के कारण इनको पृष्ठ भाग से किया गया मैथुन प्रिय होता है। रात्रिबली राशि होने के कारण रात में ही मैथुन सुख अच्छा लगता है। दिन के समय किया गया मैथुन इसको अप्रिय हाता है। उसमें यह रस नहीं लेते।
चर राशि होने से यह चलायमान अर्थात् चंचल होते हैं। इस राशि की स्त्री को शरीर आघातों द्वारा या कंधे पकड़कर, निरन्तर स्तन मंथन करके हिलाते रहना चाहिये। इस राशि के पुरूष को भी इसी प्रकार की लीला में सुख मिलता है। इसी गुण के (चर) कारण इनका प्रेम किसी एक पर स्थिर नहीं रहता। इस राशि का निवास वन है अतः इसे सर्वथा एकान्त चाहिये। घर में कोई जागता रहे, भले ही न देख सके पर उसे इसका आभास होगा तो मन खट्टा हो जायेगा।जाति क्षत्रिय होने के कारण ‘लड़ाकु’ मैथुन प्रिय होता है। अपने सम्पूर्ण हथियारों के साथ एक-दूसरे पर हमला करना इनका विशेष गुण है। चतुष्पद राशि होने के कारण पशु आसन या पृष्ठ भाग से किया गया मैथुन अच्छा लगता है तथा तृप्ति अनुभव करते हैं। तत्व अग्नि होने के कारण काम दम्य रहते हैं तथा पसीना बहुत आता है। मंगल में जल है अतः यह ‘गीले’ बहुत होते हैं अर्थात् क्षण में कामोत्तेजित हो जाते हैं और इनका स्खलन अधिक मात्रा में होता है। कृतिका नक्षत्र का केवल प्रथम चरण (अ) होने के कारण इनका मैथुन कर्म बहुत कम विकृत होता हैं। प्रायः शुचिता का ध्यान रखते हैं। अश्विनी और भरणी के पूरे चारों चरण होने के कारण कुशलतापुर्वक और दृढ़ता के साथ मैथुन कर्म करते हैं।
ग्रह अधिपति गणपति (गणेश) के कारण बड़ी ही चतुराई से कामसुख भोगते हैं। धातु मज्जा होने के कारण इस राशि के पुरूष स्त्री को गर्भवती शीघ्र बनाते हैं। उसमें शुक्राणु अधिक होते हैं। इस राशि का ललाट पर अधिकार होने से उत्तेजना केन्द्र ललाट है, वैसे इस स्त्री को ललाट के अलावा अन्य स्थान (पलक, कपोल, होंठ, नाक, कान, बाल, भौहें आदि) पर भी हो सकते हैं, किन्तु चेहरे से नीचे नहीं। इस राशि की स्त्रियां यदि दशा अनुकूल हो तो प्रायः ग्रीष्म-ऋतु (वैषाख; अप्रेल-मई) में गर्भवती होती हैं। इसकी ऋतु ग्रीष्म है, अतः इस मौसम में इनमें वासना की मात्रा अधिक होती है। प्रायः गर्भाधान व प्रसव का इस राशि की स्त्री का यही समय है।इस राशि की स्त्री के केश, रोम अगर शरीर पर हुए तो बहुत मुलायम होते हैं। आकृति भेड़ होने के कारण स्त्री की त्वचा सुचिक्कण होती है और क्रिया के समय भेड़ के समान सीधेपन का व्यवहार करती है। इस राशि की महिला को सम्भोग के समय धूम्रपान करना अच्छा नहीं लगता और न ही धूम्रपान करना पसन्द करती है। इस राशि के जातक का इन्द्रियज्ञान नैत्र है, अतएव आँखों ही आँखों में यह बहुत कुछ कह डालते हैं। जिह्वा के बदले आँखों से अधिक काम लेते हैं। राशि की उच्चता के कारण अपने से अधिक श्रेष्ठ स्त्री-पुरूष की ओर विशेष झुकाव रखते हैं। आकार ढोल होने के कारण इस राशि की महिलाओं के नितम्ब बड़े होते हैं तथा पुरूषों की प्रायः तोंद निकल आती है। उमर के साथ कामुकता बढ़ती जाती है।इस राशि के जातक दोनों अश्लील वार्ता कम करते हैं और गम्भीरता ओढ़े रखते हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के दौरान या उपरान्त किसी प्रकार के विकृत शब्द नहीं निकालते, इनकी क्रिया सित्कारहीन होती है, ध्वनी नहीं करते हैं। बन्द कमरे के बाहर कान लगाकर सुनना चाहें तो उसको आभास भी नहीं हो सकता है कि अन्दर क्या हो रहा है। इस क्रिया के पूर्व आलिंगन-चुम्बन भी प्रायः काम-चलाऊ ही करते हैं। समाप्ति पर चुपचाप हट जाते हैं, फिर कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है कि इस बात का अनुमान करना कठिन है कि अभी कुछ हुआ है। यह एकदम सामान्य हो जाते हैं।इस राशि की महिलाओं का मासिक धर्म 50 की उमर के बाद तक भी जारी रह सकता है। उन्हें प्रदर रोग आदि कम ही होते हैं। गुप्त रोग या यौन रोग प्रायः इनको नहीं होता।सन्तानों से बड़ा प्यार करते है, अनुशासन इनको प्रिय होता है। फूहड़ हंसी-मजाक इनको अच्छे नहीं लगते, किन्तु पेशाबघरों, सार्वजनिक स्थानों, रेल के डिब्बों, सैलानी स्थानों आदि पर यह गंदे शब्द और चित्र बड़ी तेजी से लिख बना देते हैं, यह इनका विशेष स्वभाव होता है। इस राशि की महिलाओं को अधिक शब्द सुनकर कान बन्द कर लेने की आदत होती है, किन्तु होठों पर मुस्कान होती है।