तिलक होली का यह रोचक इतिहास!


हमीरपुर.विश्व के सबसे प्राचीन कटोच वंश के 481वें राजा महाराजा संसार चंद 300 वर्ष पहले तिलक होली खेलते थे। उस समय राजमहल में ही खास तरह के गुलाल को तैयार किया जाता था, जो आसानी से उतर भी जाता था। 

 
इस बात का खुलासा राष्ट्रीय शोध संस्थान नेरी की ओर से कटोच वंश के शासनकाल पर किए जा रहे शोध में हुआ है। हाल ही में हुए इस शोध में यह बात भी सामने आई है कि उस समय तीन दिन तक टीहरा के महलों में राजा और प्रजा दोनों गुलाल से तिलक होली खेलते थे। बाद में आम लोग इसे सात दिन तक मनाते थे। शोधकर्ता प्रो. आरसी शर्मा ने बताया कि उस समय भी तिलक होली का खास महत्व था।

टीहरा में दो छोटे-छोटे तालाबों के अवशेष भी मिले हैं, जो अलग से रानियों के लिए था। जिनमें रंगों को भर कर होली खेली जाती थी। यह बात भी सामने आई है कि पहले टीहरा गांव ही था, लेकिन 1795 में सुजानपुर अस्तित्व में आया। जहां अब राष्ट्रीय होली उत्सव मनाया जा रहा है। इस वर्ष 6 से 9 मार्च तक आयोजित होने वाले इस मेले का शुभारंभ मुख्यमंत्री प्रो. प्रेमकुमार धूमल करेंगे।

श्री कृष्ण की तर्ज पर खेली होली

शोध में यह बात भी सामने आई है कि संसार चंद भगवान श्रीकृष्ण के बाद होली खेलने में सबसे अव्वल माने गए हैं। यही कारण है कि 1795 को सुजानपुर में उन्होंने मुरली मनोहर मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसे उन्होंने जनार्दन पंडित को दान दिया था। अब सुजानपुर होली की शुरुआत इसी मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद होती है। यहां भी जनार्दन पंडित के वंशज ही पूजा करते हैं।

पंडित रविनंदन का कहना है कि यह परंपरा पिछले कई वर्षो से जारी है। सुजानपुर के सेवानिवृत प्रिंसिपल भुवनेश गुप्ता का कहना है कि उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि पहले टीहरा में ही होली खेली जाती थी। शोध में इनके विचार भी शामिल किए गए हैं। शोध में यह बात सामने आई थी कि कटोच वंश का इतिहास मंगोलिया से भी जुड़ा है। यही कारण था कि भारत में मंगोलिया के दूत ने सुजानपुर पहुंच कर वहां भी गंगा जल को पवित्र मानने की बात कही थी। कटोच वंश पर चल रहा शोध का कार्य जारी है।

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