आहार की शुद्धि


आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धिः सत्त्व शुद्धो ध्रुवा स्मृतिः
स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।
'आहार की शुद्धि से सत्त्व की शुद्धि होती है, सत्त्वशुद्धि से बुद्धि निर्मल और निश्चयी बन जाती है। फिर पवित्र एवं निश्चयी बुद्धि से मुक्ति भी सुगमता से प्राप्त होती है।'
(छान्दोग्योपनिषद् 7.26.2)
दाहिने स्वर भोजन करे, बाँये पीवै नीर।
ऐसा संयम जब करै, सुखी रहे शरीर।।
बाँयें स्वर भोजन करे, दाहिने पीवे नीर।
दस दिन भूखा यों करै, पावै रोग शरीर।।
शीतल जल में डालकर सौंफ गलाओ आप।
मिश्री के सँग पान कर मिटे दाह-संताप।।
सौंफ इलायची गर्मी में, लौंग सर्दी में खाय।
त्रिफला सदाबहार है, रोग सदैव हर जाय।।
वात-पित्त जब-जब बढ़े, पहुँचावे अति कष्ट।
सोंठ, आँवला, द्राक्ष संग खावे पीड़ा नष्ट।।
नींबू के छिलके सुखा, बना लीजिये राख।
मिटै वमन मधु संग ले, बढ़ै वैद्य की साख।।
स्याह नौन हरड़े मिला, इसे खाइये रोज।
कब्ज गैस क्षण में मिटै, सीधी-सी है खोज।।
खाँसी जब-जब भी करे, तुमको अति बैचेन।
सिंकी हींग अरु लौंग से मिले सहज ही चैन।।
छल प्रपंच से दूर हो, जन-मङ्गल की चाह।
आत्मनिरोगी जन वही गहे सत्य की राह।।

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