संसार-व्यवहार कब न करें ?


विवाहित दंपत्ति भी संयम-नियम से रहें, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए रहें।
सभी पक्षों की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी-इन सभी तिथियों में स्त्री समागम करने से नीच योनि एवं नरकों की प्राप्ति होती है।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, दानधर्म पर्वः 104.29.30)
दिन में दोनों संध्याओं के समय जो सोता है या स्त्री-सहवास करता है, वह सात जन्मों तक रोगी और दरिद्र होता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंडः 75.80)
निषिद्ध रात्रियाँ- पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चंद्रगहण, उत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं करना चाहिए। शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
माता-पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है।
जो लोग दिन में स्त्री-सहवास करते हैं वे सचमुच अपने प्राणों को ही क्षीण करते हैं।
(प्रश्नोपनिषद् 1.13)
परस्त्री सेवन से मनुष्य की आयु जल्दी ही समाप्त हो जाती है। इसलिए किसी भी वर्ण के पुरुष को परायी स्त्री से संसर्ग नहीं करना चाहिए। इसके समान आयु को नष्ट करने वाला संसार में दूसरा कोई कार्य नहीं है। स्त्रियों के शरीर में जितने रोमकूप होते हैं उतने ही हजार वर्षों तक व्यभिचारी पुरुषों को नरक में रहना पड़ता है।
यदि पत्नी रजस्वला हो तो उसके पास न जाय तथा उसे भी अपने निकट न बुलायें। शास्त्र की अवज्ञा करने से गृहस्थी अधिक समय तक सुखी जीवन नहीं जी सकते।

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