माँ सरस्वती


सरस्वती माँ हमें विद्या और ज्ञान पाने के संदेश के अलावा जीवन-प्रबंधन के कुछ महत्त्वपूर्ण संकेत देती है, जिनका पालन कर हम अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हं।
माँ सरस्वती के श्वेत वस्त्रों से दो संकेत मिलते हैं। पहला हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो, महापुरुषों से सम्मत हो। दूसरा हमारा चरित्र उत्तम हो। विद्यार्थी-जीवन में कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। वह एकदम निर्मल हो।
माँ सरस्वती कमल के फूल द्वारा यह संकेत देती हैं कि जैसे कमल का फूल पानी में रहता है परंतु पानी की एक बूँद भी उस पर नहीं ठहरती, उसी प्रकार चंचलता, असंयम, झूठ-कपट, कुसंग लापरवाही आदि बुराईयों को जीवन में स्थान न दो।
सरस्वती माँ के हाथ में स्थित सदग्रंथ हमें संदेश देता है कि जीवन को यदि महान बनाना हो तो जीवन शास्त्रानुसारी होना चाहिए। हाथ कर्म के सूचक हैं और सत्शास्त्र सत्यस्वरूप के। हमारे हाथों से वही कर्म हों जो भगवान को प्रसन्न करें। इसके लिए हम प्रतिदिन सत्शास्त्रों का स्वाध्याय करते रहें।
दूसरे हाथ में माला है। माला 'मनन' की ओर संकेत करती है। यह हमें हमारे मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य की याद दिलाती है कि परमात्मा के साथ अपने अमिट संबंध की स्मृति और भगवदज्ञान का मनन करने के लिए हमें यह मनुष्य जन्म मिला है। जो ज्ञान सदगुरू एवं सदग्रंथों से अर्जित कर रहे हैं, उसका मनन भी करते रहें। मेधाशक्ति व बुद्धि के विकास के लिए किन्हीं ब्रह्मज्ञानी महापुरुष से सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा लेकर उसका जप करें।
दो हाथों से वीणा-वादन यह संकेत करता है कि जीवन एकांगी नहीं होना चाहिए। जैसे वीणा तो एक ही होती है परंतु उससे हर प्रकार के मधुर राग अलापे जाते हैं, उसी प्रकार हम अपनी सुषुप्त योग्यताओं को जगाकर जीवन में सफलता के गीत गुँजायें।
सात्त्विक संगीत एकाग्रता व यादशक्ति बढ़ाने में सहायक है। रॉक व पॉप म्यूजिक तामसी हैं, इनसे तो दूर ही रहना चाहिए। डॉ. डायमण्ड ने प्रयोगों से सिद्ध किया कि ऐसा संगीत बजाने वाले और सुनने वाले की जीवनशक्ति का ह्रास होता है। सच्चा संगीत वह है जो परमात्मा की स्मृति करा के उसमें शांत कर दे।
सरस्वती माता नदी के किनारे एकांत में बैठी हैं, यह इस बात का संकेत है कि विद्यार्जन के साथ-साथ अपनी दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों को जगाने के लिए कुछ समय एकांत में बैठकर जप-ध्यान, उपासना-अनुष्ठान करना भी आवश्यक है। स्थूल अर्थ में प्राकृतिक, शांत, निर्जन स्थान में बैठना भी एकांत कहा जाता है। परंतु एकांत का वास्तविक अर्थ है 'एक में अंत' अर्थात् एक परमात्मा में सभी वृत्तियों, कल्पनाओं का अंत हो जाय वही परम एकांत है।
मनमाने ढंग के एकांत-सेवन में निद्रा-तंद्रा, तमस आदि के घेर लेने की सम्भावना रहती है। अतः अनेक विद्यार्थी छुट्टियों में अपने गुरुदेव पूज्य बापू जी के आश्रमों में जाकर सारस्वत्य मंत्र का अनुष्ठान करते हैं और अपने भीतर छुपी महान सम्भावनाओं के भंडार के द्वार खोल देते हैं।
माँ सरस्वती के पीछे उगता हुआ सूरज दिखाई देता है, जो यह संकेत करता है कि विद्यार्थी को सूर्योदय के पहले ही बिस्तर का त्याग कर देना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व का समय 'अमृतवेला' कहलाता है। सुबह परमात्म-चिंतन में तल्लीन होकर फिर भगवत्प्रार्थना करके विद्याध्ययन करना सबसे उत्तम है।
माँ सरस्वती के निकट दो हंस हैं अर्थात् हमारी बुद्धि रचनात्मक और विशलेष्णात्मक दोनों होनी चाहिए। जीवन में जहाँ एक ओर दैवी सम्पदा का अर्जन कर महानता का सर्जन करना चाहिए, वहीं दूसरी ओर सुख-दुःख, राग-द्वेष आदि के आने पर उनके कारण, निवारण आदि का विश्लेषण भी करते रहना चाहिए। इस हेतु परमहंस (जीवन्मुक्त) पद को प्राप्त महापुरुषों के सत्संग-सान्निध्य में जाने की प्रेरणा भी ये हंस देते हैं। जैसे हंस दूध को पानी से अलग करके दूध को पी लेते हैं, वैसे ही विद्यार्थियों को अच्छे गुणों को लेकर दुर्गुणों को त्याग देना चाहिए।
विद्या की देवी माँ सरस्वती के निकट मोर है जो कला का प्रतीक है। हम विद्याध्ययन तो करें, साथ ही जीवन जीने की कला भी सीखें। जैसे-सुख-दुःख में सम रहना और विकारों के वेग में निर्विकारी नारायण की स्मृति करके भगवदबल से विकारों के चंगुल से बचे रहना। और यह कला आत्मा में जगे हुए महापुरुषों की शरण में जाने से ही सीखी जा सकती है।
इस प्रकार माँ सरस्वती का विग्रह विद्यार्थी-जीवन का सम्पूर्ण मार्गदर्शन करता है।

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