गुरुद्वारा मणिकरन साहिब

 गुरुद्वारा मणिकरन साहिब


शिमला।हिमालय की गोद में बसे भुंटर के नजदीक गुरुद्वारा मणिकरन साहिब मौजूद है। जो अपने अविस्मर्णनीय चमत्कार के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। 
जी हां पार्वती नदी के किनारे पर बसा गुरुद्वारा मणिकरन साहिब हिन्दुओं और सिखों के लिए बड़ा तीर्थस्थान है। यहां मौजूद गर्म पानी का झरना आम झरनों जैसा नहीं है। क्योंकि यह इतना गर्म होता है, जिसमें आप सब्जियों और चावल को उबाल सकते हैं।
इसमें सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि यह गर्म पानी का स्त्रोत भीषण ठंड के दिनों में भी सक्रिय रहता है, फिर चाहे हिम शिखरों पर बर्फ भी जमीं हो। कहते हैं यहां के पानी में स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। 
यहां पर हमेशा चलने वाले लंगर में सब्जियां और चावल इसी पानी से उबाले जाते हैं। इस गर्म पानी के कई तरह की मान्यता प्रचलित है। कहते हैं कि यहां बाढ़ आने के बाद सब कुछ नष्ट हो गया था, लेकिन मनु ने यहां आकर फिर से इंसानों के रहने लायक जगह का निर्माण किया। 
सिख धर्म की मान्यताओं के अनुसार यहां गुरु नानकदेव जी अपने भक्तों भाई बाला और भाई मरदाना के साथ मणिकरन आए थे। भाई मरदाना को जब भूख लगी तो उन्होंने गुरु नानकदेव जी को बताया। गुरुजी ने उन्हें खाना इकट्ठा करने के लिए अपने एक मित्र के पास भेजा।
 
कुछ देर के बाद वह आटा और सब्जियां लेकर लौटे तो और समस्या थी कि खाना पकाने के लिए कोई आग वहां नहीं थी। गुरुजी ने मरदाना को एक पत्थर उठाने को कहा। जैसे ही मरदाना ने पत्थर उठाया, वहां से गर्म पानी का फब्वारा निकल पड़ा।
 
वहीं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब पार्वती और शिव भगवान यहां से गुजरे तो उन्हें यहां की खूबसूरती बहुत भा गई। उन्होंने कुछ समय इस स्थान पर गुजरने का फैसला किया। कहते हैं, उन्होंने यहां 1100 साल गुजरे।
 
उनके प्रवास काल के दौरान पार्वती की मणि पानी के निचली सतह में चली गई। कई प्रयास करने के बाद मणि न मिली तो उन्होंने शिव जी मदद मांगी। शिव ने अपने गणों को मणि लाने का आदेश दिया, लेकिन वे भी विफल रहे। इसके बाद शिव ने नाराज होकर अपनी तीसरी आंख खोल दी, जिससे ब्रह्मांड में हलचल हो गई।
 
सब जगह त्राही-त्राही मचने के बाद भगवान शेषनाग ने शिव जी को शांत किया और उस जगह अपना फन मारा जहां मणि खो गई थी। उनके फन मारते ही वहां से गर्म पानी का सोता फूट पड़ा और उसके बाद उस जगह से मणि जैसे कई कीमती पत्थर निकलने लगे। तब से इस जगह को मणिकरन कहा जाने लगा।
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